गुप्त नवरात्रि विशेष: देवी काली के 12 मंत्र देंगे जीवन की हर समस्या से मुक्ति

Devi Kali Mantra 
 
HIGHLIGHTS
 
* तुरंत होते हैं सिद्ध ये काली मंत्र।
* गुप्त नवरात्रि में पढ़ें मां कालका के मंत्र।
* जीवन में मौजूद हर संकटों से निजात देती हैं ये देवी। 
 
Devi Kali ke Mantra : प्रतिवर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है। वर्ष 2024 में 10 फरवरी, शनिवार से यह नवरात्रि शुरू हो गई है तथा इन दिनों दस महाविद्याओं का पूजन, आराधना, मंत्र जाप आदि गुप्त रूप से किए जाते हैं। ये 10 महाविद्याएं 1. मां काली, 2. तारा देवी, 3. त्रिपुरा सुंदरी, 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता देवी, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. देवी धूमावती, 8. मां बगलामुखी, 9. देवी मातंगी और 10. देवी कमला मानी गई है। इनके मंत्रों के जाप से वे जहां तुरंत सिद्ध हो जाते हैं, वहीं मां अपने भक्तों के जीवन सभी प्रकार के दुख और संकट तुरंत दूर कर देती हैं। 
 
यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं देवी मां काली के खास मंत्र- 
 
1. मां काली का मंत्र : 
- ॐ श्री कालिकायै नम:
 
2. महाकाली बीज मंत्र : 
- ॐ क्रीं कालिकायै नमः
 
3. काली बीज मंत्र
- ॐ क्रीं काली
 
4. काली पूजा मंत्र : 
'कृन्ग कृन्ग कृन्ग हिन्ग कृन्ग दक्षिणे कलिके कृन्ग कृन्ग कृन्ग हरिनग हरिनग हुन्ग हुन्ग स्वा:'
 
5. काली मां का मंत्र : 
- ॐ हरिं श्रीं कलिं अद्य कालिका परम् एष्वरी स्वा:
 
6. तीन अक्षरी काली मंत्र
- ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं
 
7. पांच अक्षरों वाला मंत्र :
- ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूं फट्
 
8. सात अक्षरों वाला मंत्र : 
- ॐ हूं ह्रीं हूं फट् स्वाहा
 
9. मां भद्रकाली मंत्र
ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥
 
10. काली मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥
 
11. काली गायत्री मंत्र : 
- ॐ महा काल्यै छ विद्यामहे स्स्मसन वासिन्यै छ धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात
 
12. दक्षिण काली मंत्र : 
- ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं।।
 
क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा।।
 
ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।।
 
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा।।
 
13. स्वप्न दर्शन का बुरा फल नष्ट करने वाला मंत्र : 
- ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।
 
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