विनोद वर्मा 'दुर्गेश'

वह घूम रही उपवन-उपवन पुष्पों-सी नजाकत अधरों पर, नवनीत-सा कोमल उर थामे। एक पाती प्रेम भरी लेकर वह घूम रही उपवन-उपवन। सुर्ख कपोलों पर स्याह लटें धानी...