भाषा जब सहज बहती, संस्कृति, प्रकृति संग चलती। भाषा-सभ्यता की संपदा, सरल रहती अभिव्यक्ति सर्वदा।
हिन्दी दिवस कविता- क्षेत्रीयता से ग्रस्त है। राजनीति से त्रस्त है।। हिन्दी का होता अपमान। घटता है भारत का मान।।
कम्प्यूटर के युग के दौर में, थोपी जा रही अंग्रेजी शोर में। आधुनिकता की कहते इसे जान, छीन रहे हैं हिन्दी का रोज मान।
साहित्य की फुलवारी, सरल-सुबोध पर है भारी। अंग्रेजी से जंग जारी, सम्मान की है अधिकारी।
'आचमन, प्रेम जल से' काव्य संग्रह की रचनाकार ई. अर्चना नायडू हैं। यह इनका द्वितीय काव्य संग्रह है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाओं का प्रकाशन लगातार...
'सफ़र संघर्षों का' काव्य संग्रह प्रथम काव्य 'वह बजाती ढोल' का द्वितीय भाग है जिसमें मां के संघर्ष की व्यथा को शाब्दिक काव्यात्मक रूप में अपनी भावना को बड़े...
सोशल मीडिया पर रोज नई-नई खिचड़ी पकती रहती है। अब असल में ही खिचड़ी पकाकर राष्ट्रीय व्यंजन बना दिया गया। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा रही कि पारंपरिक...