सुबोध श्रीवास्तव
परिचय : जन्म- 4 सितंबर 1966, शिक्षा- परास्नातक। 'आज' (हिन्दी दैनिक), कानपुर में कार्यरत। कई पुस्तकों का प्रकाशन, देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। दूरदर्शन, आकाशवाणी से प्रसारण। गणेश शंकर विद्यार्थी अतिविशिष्ट सम्मान प्राप्त तथा 'काव्ययुग' ई-पत्रिका का संपादन।
चारों तरफ छिड़ी हुई है, जंग/तबाह हो रहे हैं, शहर-दर-शहर
मारे जा रहे हैं अनगिनत, बेकसूर नागरिक। घरों में कैद हैं/डरे-सहमे लोग, खिड़कियों से झांक रहा है......
Mahatma Gandhi Poem अहिंसा के पुजारी गांधी पर कविता- तुम,
सिर्फ एक दिन जीने के लिए, क्यों जिए बापू और/ क्यों शहीद हुए?
क्यों शहीद हुए? तुम्हारे ही देश में-जहां देखा था तुमने रामराज्य का स्वप्न,
तुम, सिर्फ एक दिन जीने के लिए क्यों जिए बापू और/ क्यों शहीद हुए?
तुम्हारे ही देश में-जहां देखा था
हाथ मिलाने की जगह,करें नमस्ते आप।
मुझे नहीं चाहिए चांद/और न ही तमन्ना है कि सूरज कैद हो मेरी मुट्ठी में
गली के नुक्कड़ पे बारिश की रिमझिम के बाद उस छोर से आती छोटी सी नदी में छपाक-छपाक करते
इसमें तुम्हारा दोष कतई नहीं है कि तुम आदमियत से हैवानियत की ओर मुड़ते
तुम, सचमुच महान हो शिल्पकार- तुम्हारे हाथ नहीं दुलारते बच्चों को
चिड़िया अब नहीं लाती दाना घोंसले में छिपे बच्चों के लिए जो, अब लगने लगे हैं
तुम्हें
भले ही भाती हों
अपने खेतों में खड़ी
बंदूकों की फसल
लेकिन -
तुमने प्रकृति का वरदहस्त पाकर पाया अपना अस्तित्व पहाड़ के रूप में और/ प्रस्तुत किया खुद को अपने स्वभाव की तरह।