''हैलो, सर ! चरणस्पर्श...आपको जन्मदिन पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं...आप हमेशा सेहतमंद रहें। आपकी कविताएँ हमेशा की तरह अंधेरों की तहों में दबी कसमसाहटों की आवाज़...
फिर से पुराना साल बिदा कर
फिर से नया साल लाए हैं,
कुछ उम्मीदें और कुछ सपने
अबकी बार भी सजाए हैं...
वो डायरेक्टर के केबिन में बैठे थे और मैं सामने के कमरे में, एक मुलाज़िम की हैसियत से। तारीख़ और दिन वगैरह तो याद नहीं। हां, इतना ज़रूर याद है कि उस रोज़ "गुरु...
अभी मौसम करवट बदल ही रहा था। सूरज की आँच तमाम दरख़्तों की पत्तियों को झुलसा ही रही थी। हर शाख़ के जिस्म पर मुस्कुराती शादाब पत्तियाँ अब ज़र्द होने ही वाली...
इस दौर की उर्दू शायरी का एक चमकता हुआ नाम है मुनव्वर राना। 'माँ' सहित तमाम रिश्तों को लेकर उन्होंने पर जिस गहराई से शे'र लिक्खे हैं, उनका कोई सानी नहीं।...
बात उन दिनों से क़रीब 11 बरस पहले की है, जब हिंदुस्तान को चीरकर दो हिस्सों में तक़्सीम नहीं किया गया था। तब चिनाब, झेलम, सिंधु और रावी का पानी बिना किसी...
फ़िल्म 'अनुरोध' के लिए गीतकार आनंद बक्षी द्वारा लिक्खे इस गीत की ये पंक्तियाँ, उस वक़्त बरबस ही होठों पर आ गईं, जब ममता सांगते की ही ज़ुबानी, उनके माज़ी...