किताबों की भीड़ में सिर्फ वही किताबें टिकने की आश्वस्ति दे सकती हैं जो सच के करीब हों और सटीक भी। उदय सहाय की संपादित किताब- बोधगया दी लैंड ऑफ एन्लाइट्नमेंट-...
बधाई। खुशी के इस मौके पर वेबदुनिया को मुबारकबाद। वेबदुनिया के साथ मेरा पहला जुड़ाव कुछ साल पहले हुआ। वैसे भी कौन ऐसा पत्रकार होगा जो वेबदुनिया को नहीं...
पिछले कई सालों से साइबर अपराधों को देखते सुलझाते ये बात सामने आई कि हिंदी में साइबर अपराध पर कोई ऐसी किताब नहीं है जो हमारी आपकी भाषा में साइबर दुनिया...
संयुक्त राष्ट्र संघ की 70 वर्षगांठ के दौरान, पोप फ्रांसिस के संबोधन की पूर्व संध्या पर परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष, ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलांयस के...
करीब 15 साल पहले दिल्ली की गीता कालोनी के थाने में एक बंदर घुस आया। बंदर थाने के अंदर ऐसा आया कि उसने बाहर जाने से इंकार कर दिया। दिल्ली पुलिस के सिपाही...
औरत होना मुश्किल है या चुप रहना जीना या किसी तरह बस, जी लेना शब्दों के टीलों के नीचे छिपा देना उस बस पर चिपकी चीखें, कराहें, बेबसी, क्ररता, छीलता अट्टाहास...
पत्रकारिता के क्षेत्र में राजेश बादल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे मानते हैं कि पेड न्यूज पत्रकारिता का कलंक है। बादल ने अपनी पत्रकारिता यात्रा से...
पेड़ पर दो लड़कियों के शव लटके हुए मिले उनके साथ बलात्कार हुआ था फिर उन्हें मार डाला गया –यह टीवी और अखबार की खबर है कोई भी खबर असल में खबर का सिर्फ सिरा...
सत्ता बदल गई है
आवाजें भी, चेहरे भी
शब्दनाद भी, शंखनाद भी
सत्ता के गलियारे में
दिल्ली के लोधी रोड के स्पेशल सेल के दफ्तर में दिल्ली पुलिस अक्सर आतंकवादियों से पूछताछ करती है। एक समय पर चुस्ती और फुर्ती का आलम यह था कि पत्रकार अक्सर...
पुणे। फिल्म और टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन इंस्टिट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में ख्यात प्रभात स्टूडियो में नेशनल स्टूडेंट्स...
धर्मेंद्र जे. नारायण (डीजे नारायण) प्रसिद्ध फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूणट ऑफ इंडिया के निदेशक हैं। 1990 की बैच के सिविल सर्विसेज ऑफिसर नारायण थिएटर,...
धुले-धुले बालों को अपने हाथ से झटकती, चांद के साथ किसी चांदनी की तरह सिमटी और शाल ओढ़े मुस्कुराती उस बेहद सुंदर फिजा के बारे में मैं चंडीगढ़ के अपने दोस्तों...
इबादत के लिए उठे भीगे हाथ उसमें सूखे पत्ते अपमान धर्म कर्म और शर्म को भर लेने के बाद जो जगह बची थी उसमें भर दी औरत ने एक छोटी सी उम्मीद महिला दिवस यहीं...
जुबां बंद है पलकें भीगीं सच मुट्ठी में पढ़ा आसमान ने मैं अपने पंख खुद बनूंगी हां, मैं थी. मैं हूं..मैं रहूंगी..
एक थी भंवरी देवी, एक थी प्रिदर्शिनी मट्टू, एक थी नैना साहनी। इनका नाम हम जानते थे। लेकिन एक थी वो, एक थी यह। देश में एक मिनट में होने वाले कम से कम तीन...
देखिए मैं यह बात साफ तौर पर कह देना चाहती हूं कि मैं अगर मर जाऊं या मारी जाऊं तो उसकी जांच पुलिस से न कराई जाए। जांच करवा कर कुछ होगा नहीं। बेवजह ऊपर बैठे...
'हिन्दी हमारी राजभाषा ही नहीं, जनभाषा भी है। हमारे संस्कारों से जुड़कर यह परिष्कार की भाषा हो जाती है। हालांकि देश का आभिजात्य वर्ग अंग्रेजी को ही अपनी...
मेरा सवाल सीधा है– क्या हमें महिला आयोग जैसे चिंता जताने वाले आयोगों की जरूरत है। क्या हम अपराध से जूझने के लिए तैयार हैं। क्या हम अपराध को लेकर संवेदनशील...
नीला आसमान वाकई सो गया है। यह बात फिल्मी नहीं है। यह बात सच का वह सिलसिला है, जो हर रोज दिखाई दे रहा है। जिस देश की सत्ता को अपनी सत्ता बचाने में ही अपनी...