संजय पटेल

लगता था अभयजी बहुत मितभाषी हैं लेकिन जब वे आपके हुनर से वाक़िफ़ हो जाते तो लगता कि उनसे बेहतर बतियाने वाला व्यक्ति शहर में दूसरा नहीं हो सकता। आप कोई भी...
रेशमा के गाने में एक जुदा अंदाज़ था। उनके कंठ का खरज वह रियाज़ और उस्तादों का तराशा हुआ नहीं था, वह कहीं रेगिस्तानों की उस बालू की तरह था जिसमें ऊपरी तपिश...