अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और 7 पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यह प्राचीन नगर रामायण काल से भी पुराना है। अयोध्या ने बहुत कुछ देखा और भोगा है। आओ जानते हैं अयोध्या के बारे में 10 महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर।
1.किसने स्थापित की थी अयोध्या?
सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। माथुरों के इतिहास के अनुसार वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु थे। स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।
अयोध्या रघुवंशी राजाओं की कौशल जनपद की बहुत पुरानी राजधानी थी। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों ने इस नगर पर राज किया था। इस वंश में राजा दशरथ 63वें शासक थे। इसी वंश के राजा भारत के बाद श्रीराम ने शासन किया था। उनके बाद कुश ने एक इस नगर का पुनर्निर्माण कराया था। कुश के बाद बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इस पर रघुवंश का ही शासन रहा। फिर महाभारत काल में इसी वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों महाभारत के युद्ध में मारा गया था। बृहद्रथ के कई काल बाद तक यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की और उसके बाद से ही अयोध्या के लिए लड़ाइयां शुरु हो गई। उसके बाद तैमूर, तैमूर के महमूद शाह और फिर बाबर ने इस नगर को लूटकर इसे ध्वास्त कर दिया था।
वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है। उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी। संभवतः उसने बौद्ध अनुयायियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो। आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। नगर की लंबाई, चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं- 'यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं।' -(1/5/7)
4.अयोध्या के दर्शनीय स्थल कौन-कौन से हैं?
अयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है। सरयू नदी यहां से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्त द्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। अयोध्या में मुख्य रूप से राम जन्मभूमि के दर्शन किए जाते हैं, जहां रामलला विराजमान हैं। अयोध्या के बीचोंबीच हनुमान गढ़ी में रामभक्त हनुमानजी का विशाल मंदिर है। इसी क्षेत्र में दन्तधावन कुंड है जहां श्रीराम अपने दांतों की सफाई करते थे।
अयोध्या का कनक भवन मंदिर भी देखने लायक है जहां राम और जानकी की सुंदर मुर्तियां रखी हैं। यहां राजा दशरथ का महल भी बहुत ही प्राचीन और विशाल है। अयोध्या में एक दिगंबर जैन मंदिर है जहां ऋषभदेवजी का जन्म हुआ था। इसके अलावा अयोध्या के मणि पर्वत पर बौद्ध स्तूपों के अवशेष हैं। अयोध्या से 16 मील दूर नंदिग्राम हैं जहां रहकर भरत ने राज किया था। यहां पर भरतकुंड सरोवर और भरतजी का मंदिर है।
इसके अलावा सीता की रसोई, चक्र हरजी विष्णु मंदिर, त्रेता के ठाकुर, राम की पौढ़ी, जनौरा, गुप्तारघाट, सूर्यकुंड, सोनखर, सरयू पार छपैया गांव, सरयू तट पर दशरथ तीर्थ, नागेश्वर मंदिर, दर्शनेश्वर मंदिर, मोती महल-फैजाबाद, गुलाब बाड़ी-फैजाबाद और तुलसी चौरा आदि स्थान भी देखने लायक हैं।
5.कितने धर्मों का तीर्थ स्थल है अयोध्या?
अयोध्या हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म का संयुक्त तीर्थ स्थल है। अयोध्या जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभनाथ की जन्मभूमि भी है। अयोध्या में आदिनाथ के अलावा अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ का भी जन्म हुआ था। ऐसा कहते हैं कि भगवान बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने बुद्ध के सानिध्य में अयोध्या में धम्म की दीक्षा ली थी। इसी के स्मृतिस्वरूप में विशाखा ने अयोध्या में मणि पर्वत के समीप बौद्ध विहार की स्थापना करवाई थी। यह भी कहते हैं कि बुद्ध के माहापरिनिर्वाण के बाद इसी विहार में बुद्ध के दांत रखे गए थे। दरअसल, यहां पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर था।
6.ईश्वर के नगर अयोध्या का अर्थ क्या है?
स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रह्मा, 'य' कार विष्णु है तथा 'ध' कार रुद्र का स्वरूप है। इसका शाब्दिक अर्थ है जहां पर युद्ध न हो। यह अवध का हिस्सा है। अवध अर्थात जहां किसी का वध न होता हो। अयोध्या का अर्थ -जिसे कोई युद्ध से जीत न सके। राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से जाना जाता था। बौद्ध ग्रन्थों में इन नगरों के पहले अयोध्या और बाद में साकेत कहा जाने लगा। कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है।
7.अयोध्या में राम मंदिर किसने बनाया था?
महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा। ऐसा कहा जाता है कि यहां जन्मभूम पर कुश ने एक मंदिर बनवाया था। इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी। विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।
8.किसने तोड़ा था अयोध्या में राम मंदिर?
विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां भव्य मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1527-28 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सेनापति मीर बकी ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।
9.राम जन्मभूमि विवाद कब से हैं?
कुछ लोग मानते हैं कि यह विवाद 1813 का नहीं है जब पहली बार हिन्दू संगठनों ने दावा किया कि यह भूमि हमारी है। यह विवाद तब का भी नहीं है जब 1853 में इस स्थान के आसपास पहली बार सांप्रदायिक दंगे हुए। यह विवाद तब का भी नहीं है जब 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की अनुमति दी गई थी। यह विवा तब का भी नहीं है जब फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर कर मंदिर बनाने की इजाजत मांगी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली।
कुछ लोग मानते हैं कि यह विवाद 1949 का भी नहीं है जबकि बाबरी ढांचे के गुम्बद तले कुछ लोगों ने मूर्ति स्थापित कर दी थी। यह विवाद तब का (1992) का भी नहीं है जबकि भारी भीड़ ने विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया था। वस्तुत: यह विवाद 1528 ईस्वी का है, जब एक मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचे का निर्माण कराया गया था।
10.इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला क्या था?
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित भूमि को 3 हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा रामलला के पक्षकारों को मिला। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को, जबकि तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मिला। उच्चतम न्यायालय ने 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इस बहुचर्चित मामले की सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 तक लगातार सुनवाई हुई और अब फैसला है।