बुर्के और इस्लाम पर यूरोप में बहस

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011 (13:30 IST)
BBC
फ्रांस में सार्वजनिक जीवन में अब कोई भी मुसलमान महिला नकाब या बुर्के पहनकर बाहर नहीं निकल सकेगी और ऐसा करने पर जुर्माना लगेगा। लंबी बहस के बाद ये कानून अब लागू हो गया है। फ्रांस में करीब 60 लाख मुसलमान हैं यानी कुल आबादी का 10 फीसदी हिस्सा।

महिलाओं के बुर्का पहनने को लेकर या कहें कि धार्मिक चिन्ह पहनने को लेकर फ्रांस में बहस कोई नहीं है। पिछले कुछ सालों से इन मुद्दों को लेकर चर्चा गर्म है। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सार्कोजी ने दो साल पहले बयान दिया था महिलाओं को ढँकने वाला बुर्का गुलामी का प्रतीक है और उनकी गरिमा की अनदेखी करता है।

पिछले साल ऐसा किस्सा भी सामने आया था जब फ्रांस की सरकार ने एक विदेशी व्यक्ति को नागरिकता देने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि उसने अपनी 'पत्नी को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया।'

बहस केवल मुसलमानों के बुर्के तक ही सीमित नहीं है। फ्रांस के स्कूलों में सभी धार्मिक चिन्हों के पहनने पर पाबंदी है। इसमें सिख धर्म में पहनी जाने वाली पगड़ी भी शामिल है। 2005 में फ्रांस में तीन सिख छात्रों को एक स्कूल से निकालने का आदेश भी दिया गया था क्योंकि वे पटका पहनकर आते थे।

फ्रांस में ये आदेश भी आ चुका है कि सिखों को ड्राइविंग लाइसेंस और परिचय पत्र के लिए बिना पगड़ी के तस्वीर खिंचवानी पड़ेगी।

बांग्लादेश-बुर्का बाध्य नहीं : फ्रांस के अलावा यूरोप के अन्य देशों में बुर्के को लेकर ही नहीं इस्लाम को लेकर भी बहस तेज हुई है। स्विट्जरलैंड में 2009 में लोगों ने मतदान कर इस बात का समर्थन किया था कि वहाँ मीनारों का निर्माण नहीं होना चाहिए। वहाँ करीब चार लाख मुसलमान हैं और केवल तीन मीनारे हैं।

इसी साल फरवरी में जर्मनी के एक प्रांत ने जनता से सीधे संपर्क रखने वाली सरकारी कर्मचारियों के बुर्का पहनने पर रोक लगाई है। आदेश है कि कोई भी सिविल सेवा अधिकारी, जो सीधे जनता से संपर्क में आती हैं, उन्हें बुर्का पहनने की अनुमति नहीं होगी। जर्मनी के अन्य हिस्सों में इस पर पाबंदी लगाने पर विचार किया जा रहा है।

उधर स्पेन के शहर बार्सिलोना में सार्वजनिक उपयोग में आने वाली इमारतों में पूरे चेहरे को ढँकने वाले बुर्के पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह प्रतिबंध म्यूनिसिपल कार्यालय, बाजार और लाइब्रेरी आदि जगहों पर लागू है।

वहीं बेल्जियम के संसद में ऐसा विधेयक पारित हो चुका है, नीदरलैंड्स में भी कुछ पार्टियों ने ऐसे प्रतिबंध का समर्थन किया है। जबकि इटली की राइट विंग पार्टी भी ऐसी माँग करती रही है।

अगर मुस्लिम बहुल आबादी वाले देशों की बात करें तो बांग्लादेश में पिछले अगस्त में दिलचस्प मामला आया था। वहाँ अदालत ने निर्देश दिया है कि किसी महिला को शिक्षण संस्थानों या दफ्तरों में बुर्का पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

दुविधा : वहीं सऊदी अरब के एक धार्मिक चैनल अवतान टीवी ने नियम बनाया हुआ है कि महिला एंकर नकाब पहनें। जब महिलाएँ कार्यक्रम पेश कर रही होती हैं तो स्टूडियों में पुरुष तकनीकी कर्मचारियों को घुसने की इजाजत नहीं होती है।

बुर्के को लेकर अलग-अलग दुविधाएँ सामने आती रही हैं। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के एक जज के सामने जब धोखाधड़ी का एक मामला आया तो उन्होंने आदेश दिया कि मुस्लिम महिला गवाही देने के लिए अपने चेहरे से नकाब हटाएँ। जज का कहना था कि ये उचित नहीं होगा कि गवाह का चेहरा ढँका रहे।

ईरान में भी बुर्के को लेकर दिलचस्प किस्सा हो चुका है। दरअसल ईरानी लड़कियों की फुटबॉल टीम को युवा ओलिम्पिक खेलों में भाग लेना थे, लेकिन उसका कहना था कि वे हिजाब पहनकर खेलेंगी जिस पर फीफा राजी नहीं था। बाद में फीफा ने बालों को पूरी तरह से ढँकने वाले हिजाब के स्थान पर सिर को ढँकने वाले एक विशेष कैप की पेशकश की ताकि बीच का रास्ता निकल सके।

*फ्रांस में करीब 60 लाख मुसलमान हैं यानी कुल आबादी का 10 फीसदी हिस्सा।
*फ्रांस में सार्वजनिक तौर पर बुर्का पहनने पर पाबंदी।
*स्विट्जरलैंड में और मिनारों का निर्माण रोकने के पक्ष में मतदान।
*फ्रांस के स्कूलों में सभी धार्मिक चिन्हों के पहनने पर पाबंदी।
*बांग्लादेश हाई कोर्ट- बुर्का पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
*स्पेन के शहर बार्सिलोना में सार्वजनिक उपयोग में आने वाली इमारतों में पूरे चेहरे को ढँकने वाले बुर्के पर प्रतिबंध।

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