छत्तीसगढ़ में अडाणी समूह को काम दिए जाने के मुद्दे पर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपनी सभाओं में लगातार आरोप लगा रहे हैं कि अडाणी समूह को छत्तीसगढ़ में खदान नहीं देने के कारण ईडी और आईटी छत्तीसगढ़ में छापामारी कर रही हैं।
पिछले महीने संसद में महिला और बाल बाल विकास तथा अल्पसंख्यक कार्य मंत्री स्मृति इरानी ने अडाणी के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी को घेरते हुए सवाल उठाए थे।
उन्होंने पूछा था, ''छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने अडाणी को काम, आदिवासियों ने मना किया, फिर भी क्यों दिया?'' इसके बाद से अडाणी को लेकर सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया है।
एक तरफ़ भाजपा आरोप लगा रही है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने अडाणी को काम दिया, दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी कह रही है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने अडाणी को काम दिया। कांग्रेस पार्टी ने उनके काम को रोकने का काम किया है।
हालाँकि अडाणी समूह के प्रवक्ता ने बीबीसी से कहा कि छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार या केंद्र सरकार, किसी की भी राजनीतिक तरफ़दारी और बिना पक्षपात के अडाणी समूह ने खुली प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से सभी अनुबंध प्राप्त किए हैं।
अडाणी समूह को लेकर होने वाले ये विवाद असल में छत्तीसगढ़ की कोयला खदानों से जुड़े हुए हैं, जिनको लेकर पिछले एक दशक से स्थानीय आदिवासी विरोध कर रहे हैं।
अडाणी समूह और एमडीओ
देश में कोयला खदानों का आबंटन या नीलामी केंद्र सरकार करती है।
लेकिन किसी कोयला खदान को लेकर राज्य सरकार आपत्ति करती है, तो आम तौर पर उसकी नीलामी या आबंटन नहीं किया जाता।
छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में भी कई खदानों को राज्य सरकार की आपत्ति के बाद नीलामी या आबंटन की प्रक्रिया से बाहर किया गया है।
इन खदानों के लिए अनिवार्य, पर्यावरण स्वीकृति और वन स्वीकृति राज्य सरकार जारी करती है।
इसी तरह पंचायत क़ानून के अंतर्गत पाँचवीं अनुसूची के इलाक़े में ग्राम सभा की स्वीकृति भी स्थानीय स्तर पर जारी की जाती है।
यहाँ तक कि भूमि अधिग्रहण का काम भी राज्य सरकार ही करती है।
अडाणी समूह का दावा है कि उन्होंने पूरे देश में पहली बार खनन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए 'माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर' यानी एमडीओ मॉडल की स्थापना की।
इसके अंतर्गत सभी तरह की स्वीकृतियों से लेकर खनन तक का काम अडाणी समूह ही करता है।
मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने राजस्थान सरकार को आबंटित परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान से एमडीओ मॉडल पहली बार लागू किया गया।
उस समय छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी।
राजस्थान सरकार ने अपने इस खदान के लिए अडाणी समूह के साथ एमडीओ समझौता किया। इसके बाद यह खदान अडाणी समूह को सौंप दिया गया।
अडाणी समूह की वेबसाइट पर जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार देश भर में इस तरह की नौ कोयला खदानों का एमडीओ समझौता अडाणी समूह के पास है।
इसमें से एक-एक कोयला खदान ओडिशा और मध्य प्रदेश में हैं, जबकि शेष सात कोयला खदानें छत्तीसगढ़ में हैं।
इन सात में से 18 मिलियन टन वार्षिक क्षमता वाले परसा ईस्ट केते बासन और केते एक्सटेंशन कोयला खदान मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में आबंटित किया गया था।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से देश की 204 कोयला खदानों को निरस्त किए जाने के बाद, छत्तीसगढ़ की पाँच अन्य कोयला खदानें, केंद्र की भाजपा सरकार ने आबंटित कीं।
क्या अडाणी समूह पर मेहरबान है कांग्रेस सरकार?
यह सही है कि राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी समेत भूपेश बघेल और दूसरे नेता, इन कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध करते रहे हैं, जिनका एमडीओ अडाणी समूह के पास है।
यहाँ तक कि राहुल गांधी ने तो हसदेव अरण्य में अपनी सभा करके आदिवासियों को भरोसा दिया था। लेकिन दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पार्टी का रुख़ बदला हुआ सा लगता है। सरकार बनने के 5 महीने के भीतर ही भूपेश बघेल की सरकार ने अडाणी के साथ एमडीओ अनुबंध किया।
राज्य सरकार के दस्तावेज़ बताते हैं कि सत्ता में आने के पांँच महीने के भीतर ही 1 मई 2019 को, भूपेश बघेल की सरकार ने छत्तीसगढ़ को आबंटित हसदेव अरण्य की पतुरिया-गिदमुड़ी कोयला खदान, अडाणी समूह को सौंपने के लिए अनुबंध किया।
इस कोयला खदान के लिए कोल-बेयरिंग एक्ट के तहत कांग्रेस सरकार ने ही 31 मई 2021 को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया की अधिसूचना जारी की। हसदेव अरण्य के ही इलाक़े में परसा कोयला खदान का एमडीओ भी अडाणी समूह के पास है।
कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद चार मार्च 2021 को छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने परियोजना के लिए स्थापना और संचालन की अनुमति और 7 अप्रैल 2022 को खनन परियोजना संचालन की सहमति जारी की।
इसी तरह छह अप्रैल 2022 को राज्य सरकार के वन विभाग ने खनन के लिए अंतिम वन अनुमति जारी की। जिसके आधार पर 19 और 21 अप्रैल 2022 को इस खदान के लिए पेड़ों की कटाई की अनुमति जारी की गई।
कोयला खदानों के आबंटन में राज्य सरकार की भूमिका
भूपेश बघेल लगातार यह कहते रहे हैं कि कोयला खदानों में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती।
लेकिन अडाणी के एमडीओ वाले परसा ईस्ट केते बासन कोयला खदान के दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले साल 25 मार्च को एकाएक रायपुर पहुँचे।
उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि वे भूपेश बघेल से इस कोयला खनन को अनुमति देने का अनुरोध करने के लिए आए हैं।
कांग्रेस के दोनों मुख्यमंत्रियों की लगभग चार घंटे तक बैठक चली और उसी दिन यानी 25 मार्च 2022 को ही अडाणी के एमडीओ वाले परसा ईस्ट केते बासन की वन स्वीकृति का अंतिम आदेश राज्य सरकार ने जारी कर दिया।
अडाणी के ही एमडीओ वाले गारे-पेलमा सेक्टर-2 कोयला खदान के लिए तो जनसुनवाई की कार्रवाई ही भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में 27 सितंबर 2019 को हुई।
पिछले साल 19 अप्रैल को राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर इस कोयला खदान के लिए वन मंजूरी देने की सिफ़ारिश की।
गारे-पेलमा और रायगढ़ में नियम विरुद्ध खदानों की मंजूरी के ख़िलाफ़ पिछले कई सालों से आंदोलन कर रहे जनचेतना मंच के राजेश त्रिपाठी ने बीबीसी से कहा, ''गारे-पेलमा की खदानों के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में चुनाव से पहले भूपेश बघेल भी शामिल होते रहे हैं। उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो वे इस खदान की स्वीकृति रद्द करेंगे। लेकिन इसके उलट सत्ता में आते ही उन्होंने अडाणी के एमडीओ वाले इस खदान के लिए ज़रूरी स्वीकृतियाँ जारी करनी शुरू कर दीं। हालाँकि इस इलाक़े के गाँव वालों की लड़ाई जारी है।''
इस बीच पिछले सप्ताह यह ख़बर पहली बार सार्वजनिक हुई कि केंद्र सरकार की कोल इंडिया ने गारे-पेलमा की एक खदान के लिए अडाणी समूह के साथ एमडीओ समझौता किया है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कहते हैं, ''अपनी खदानें छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने ख़ुद अडाणी को एमडीओ के तहत दे रखी हैं। ऐसे में नैतिक रूप से कांग्रेस पार्टी या सरकार के लिए मुश्किल है कि केंद्र के इस क़दम का विरोध कर पाएँ। मतलब साफ़ है कि दोनों ही पार्टियाँ अडाणी के साथ गलबहियाँ किए हुए खड़ी हैं। जनता को भ्रम में रखने के लिए, अडाणी के विरोध का दिखावा कर रही हैं।''
छत्तीसगढ़ में भाजपा के महामंत्री ओपी चौधरी का आरोप है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच राहुल गांधी ने मध्यस्थता करा कर, हसदेव की खदान अडाणी समूह को दी है।
ओपी चौधरी ने बीबीसी से कहा, "मैं चुनौती देता हूँ, भूपेश बघेल राजस्थान सरकार का आबंटन रद्द कर दें। उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने एक डंगाल भी कटने पर गोली खाने की बात की थी, लेकिन वे भी आज दस जनपथ के कहने पर चुप हैं। छत्तीसगढ़ की जनता जानती है कि 10 जनपथ के हाथ में खेलते हुए भूपेश बघेल यहाँ की खदानों को किसे सौंप रहे हैं।"
लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रभारी सुशील आनंद शुक्ला इस बात से इनकार करते हैं कि उनकी सरकार में, छत्तीसगढ़ में अडाणी समूह का कामकाज तेज़ी से बढ़ा है।
उन्होंने बीबीसी से कहा, "किसी औद्योगिक घराने के नियमानुसार कामकाज से हमें दिक़्क़त नहीं है। उसे अतिरिक्त या क़ानून से परे जा कर सहूलियत देने के हम ख़िलाफ़ हैं। हमने तो हसदेव की खदानों से लेकर नंदराज पहाड़ तक को रद्द करने के लिए केंद्र को चिट्ठी भेजी है। लेकिन केंद्र सरकार अडाणी को बचाने का काम कर रही है।"
लोहा खदान और पावर प्लांट
छत्तीसगढ़ में केवल कोयला ही नहीं, सौर ऊर्जा, सड़क निर्माण, निजी कोयला परिवहन के रैक और लोहा खनन की प्रक्रिया में भी पहली बार अडाणी समूह ने हाथ आजमाए हैं।
देश में अडाणी के पास लौह अयस्क की दो खदानें हैं, जिसमें से एक खदान बस्तर के बैलाडिला में है।
इस लौह अयस्क के खदान के लिए लिए ज़रूरी स्वीकृतियों के फ़र्ज़ी होने का आरोप लगाते हुए आदिवासियों ने बड़ा आंदोलन खड़ा किया, तो भूपेश बघेल की सरकार ने इस लौह अयस्क की खनन प्रक्रिया पर जाँच होने तक रोक लगा दी। इसके बाद जब भूपेश बघेल की सरकार ने मामले की जाँच की, तो ग्रामीणों के आरोप सही पाए गए।
जाँच रिपोर्ट के आधार पर छत्तीसगढ़ सरकार ने छह मार्च 2020 को नोटिस जारी किया कि क्यों नहीं इस खदान को जारी स्वीकृतियाँ रद्द कर दी जाएँ?
लेकिन उसके बाद से इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस खदान में 49 फ़ीसदी की साझेदारी छत्तीसगढ़ सरकार की है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस क़रार को भी रद्द नहीं किया है।
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अडाणी समूह ने छत्तीसगढ़ में खनन के अलावा अपने दूसरे कारोबार में भी हाथ बढ़ाए।
देश में अडाणी समूह के पास अभी कोयला आधारित सात बिजली संयंत्र हैं। जिनमें से एक-एक संयंत्र गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में हैं।
छत्तीसगढ़ अकेला ऐसा राज्य है, जहाँ अडाणी समूह के दो बिजली संयंत्र हैं। एक रायपुर के रायखेड़ा में और दूसरा रायगढ़ में।
कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल में ही रायपुर स्थित जीएमआर छत्तीसगढ़ एनर्जी लिमिटेड के पावर प्लांट को अडाणी समूह ने ख़रीदा और 20 अगस्त 2019 से कंपनी अडाणी पावर लिमिटेड के पास आई।
इसी तरह रायगढ़ की कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड का प्रबंधन भी 20 जुलाई 2019 से अडाणी समूह के प्रभाव में आया।
विरोध, समर्थन और विरोध
विपक्ष में रहते हुए हसदेव अरण्य में अडाणी के एमडीओ वाले कोयला खदानों के ख़िलाफ़ आंदोलनों में लगातार शामिल होने वाले भूपेश बघेल ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने कोयला संकट का हवाला देते हुए एक भी खदान की अनुमति रद्द करने से इनकार कर दिया। उलटे उसी इलाक़े में नए खदानों की स्वीकृति जारी कर दी।
हसदेव बचाओ आंदोलन के नेता उमेश्वर आर्मो कहते हैं, ''सरकार आने के बाद हम आदिवासियों को 300 किलोमीटर की पदयात्रा करके, भूपेश बघेल को उनका वादा याद दिलाना पड़ा। लेकिन वे साफ़ मुकर गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भारतीय वन्यजीव संस्थान ने शोध के बाद कहा कि हसदेव में एक भी खदान खोलना विनाशकारी होगा। लेकिन भूपेश बघेल की सरकार ने नए खदानों को स्वीकृति दी।''
हसदेव के आदिवासी पिछले 500 दिनों से भी अधिक समय से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। लेकिन एक भी स्वीकृति रद्द नहीं की गई। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी मामले में हस्तक्षेप करने की बात कही लेकिन इसके उलट हसदेव में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई।
पिछले साल 26 जुलाई को कांग्रेस के विधायक धर्मजीत सिंह के प्रस्ताव पर छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया कि हसदेव अरण्य में सभी कोयला खदानों को रद्द किया जाए।
लेकिन इस बात को एक साल गुज़र जाने के बाद भी, आज तक छत्तीसगढ़ सरकार ने एक भी स्वीकृति रद्द नहीं की है।
छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क था कि हसदेव अरण्य में अगर कोल खदानों की स्वीकृति रद्द की गई तो राजस्थान में कोयला संकट पैदा हो जाएगा। लेकिन चुनावी साल में कांग्रेस पार्टी और सरकार के सुर फिर से बदलने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा
पिछले ही महीने छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दे कर कहा है कि राजस्थान को पहले से संचालित खदान से अगले 20 सालों तक कोयले की आपूर्ति की जा सकती है।
ऐसे में हसदेव अरण्य में किसी नए खदान शुरू करने की ज़रूरत नहीं है। अपने हलफ़नामे में छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों के विरोध और विधानसभा के संकल्प से लेकर, नए खदान शुरू किए जाने पर विनाशकारी मानव-हाथी संघर्ष की भारतीय वन्यजीव संस्थान की चेतावनी का भी हवाला दिया है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि उनकी सरकार अडाणी समूह के ख़िलाफ़ है, इसलिए कांग्रेस नेताओं और राज्य के अफ़सरों पर ईडी-आईटी की कार्रवाई हो रही है।
भूपेश बघेल ने पत्रकारों से कहा, ''भारतीय जनता पार्टी को वोट देना, सीधी-सीधी बात है कि अडाणी को छत्तीसगढ़ को सौंप देना। चाहे कोयला खदान हो, चाहे वो आयरन ओर हो, चाहे ट्रेन हो, चाहे वो एयरपोर्ट हो, सबके लिए स्थिति यही बन रही है। आज जो कार्रवाई हो रही है, केवल इसलिए क्योंकि इसको कोयला खदान हम दे नहीं पाए, दिए नहीं। एक राजस्थान का जो चल रहा है, वही चल रहा है। बचा जितना कोयला खदान रमन सिंह ने एलॉट किया था, वो एक भी नहीं चल पा रहा है। शुरू नहीं हुआ। उसी प्रकार से आयरन ओर हम नहीं चलने दे रहे हैं।''
लेकिन इन खदानों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले बिलासपुर के वकील सुदीप श्रीवास्तव का कहना है कि मुख्यमंत्री इस मामले में ग़लत बयानी कर रहे हैं।
सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं, ''राज्य सरकार अगर सच में इन मामलों में ईमानदार है तो उसे वन, पर्यावरण की स्वीकृतियाँ रद्द करनी चाहिए। महज केंद्र के पाले में गेंद फेंकने की कार्रवाई केवल राजनीतिक दिखावा भर है।''
अडाणी समूह का क्या कहना है?
दूसरी ओर अडाणी समूह इन दावों को ख़ारिज़ कर रहा है। अडाणी समूह के प्रवक्ता ने बीबीसी से कहा- हमारी नीति है कि हम राजनीतिक दलों की ओर से लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी नहीं करते हैं। ये दावे माने नहीं रखते हैं।
प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, ''अडाणी समूह अपना कारोबार भारत में 22 से अधिक राज्यों में करता है, जिसमें राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, हिमाचल, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। ये सभी विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा शासित हैं। अडाणी समूह का कॉर्पोरेट प्रशासन काफ़ी मज़बूत है। इसके साथ ही ग्रुप अपने द्वारा संचालित विभिन्न बाजारों में सभी क़ानूनों और विनियमों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।"
प्रवक्ता ने अपने लिखित जवाब में कहा, "छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार या केंद्र सरकार किसी की भी राजनीतिक तरफ़दारी और बिना पक्षपात के अडाणी समूह ने खुली प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से सभी अनुबंध प्राप्त किए हैं। हमने सभी नियमों, विनियमों आदि का नैतिकता पूर्वक पालन किया है। अडाणी समूह छत्तीसगढ़ को निवेश और विकास के लिए सबसे आशाजनक राज्यों में से एक मानता है। हज़ारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा करने के अलावा, समूह भीतरी इलाक़ों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की दिशा में काम कर रहा है।"