NDA Meeting : साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिहाज से बीजेपी अपने गठबंधन एनडीए को मज़बूत करने में जुटी है। इस बीच एलजेपी (लोक जनशक्ति पार्टी) के नेता चिराग पासवान ने हाजीपुर सीट पर अपना दावा पेश कर दिया है। इससे उनके चाचा और हाजीपुर के सांसद पशुपति पारस भड़के हुए हैं।
आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर एक तरफ़ बेंगलुरु में विपक्षी दलों की मीटिंग चल रही है। वहीं इसी मक़सद से मंगलवार को दिल्ली में एनडीए की बैठक भी हो रही है। सोमवार को एलजेपी नेता चिराग पासवान ने केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अमित शाह से मुलाक़ात की है।
चिराग पासवान ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि गठबंधन के मुद्दे पर मुलाक़ात के दौरान सकारात्मक बातचीत हुई है।
बिहार में बीजेपी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल और एलजेपी के चिराग पासवान के गुट को एनडीए से जोड़कर गठबंधन की ताक़त बढ़ाने में लगी है।
इससे पहले चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने अगले लोकसभा चुनावों में सीटों के बँटवारे को लेकर अपनी शर्त रख दी है।
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, ''पिछले चुनाव में रामविलास पासवान ने भी छह लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने और अपने लिए एक राज्यसभा सीट की मांग की थी। अब चिराग पासवान भी उसी मांग को दोहरा रहे हैं।”
हालांकि चिराग की इस शर्त से बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है क्योंकि एलजेपी अब दो गुटों में बँट चुकी है और इसके पाँच लोकसभा सांसद पशुपति कुमार पारस के साथ हैं। ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव के लिए चिराग पासवान गुट ने एलजेपी कोटे की सभी सीटों पर अपना दावा पेश कर दिया है।
चिराग पासवान की शर्त
दरअसल, राम विलास पासवान के निधन के बाद साल 2021 में लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में टूट गई थी। इसका एक धड़ा 'राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी' उनके भाई पशुपति कुमार पारस के साथ है, जबकि दूसरा धड़ा उनके बेटे चिराग पासवान के पास।
एलजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता धीरेंद्र कुमार मुन्ना के मुताबिक़, “हाजीपुर सीट से तो हम चुनाव लड़ेंगे ही। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने कह दिया है कि हाजीपुर सीट से हम चुनाव लड़ेंगे इसमें कोई शक नहीं है।”
फ़िलहाल हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस सांसद हैं। वो एनडीए के साथ भी हैं और केंद्रीय मंत्री भी है। वहीं चिराग पासवान ख़ुद बिहार की जमुई सीट से सांसद हैं।
हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान लंबे समय तक सांसद रहे हैं। इस सीट पर चिराग के दावे के बाद पशुपति कुमार पारस ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
पत्रकारों से बातचीत में पशुपति पारस ने कहा है, “कौन है चिराग पासवान? मैं नहीं जानता चिराग पासवान कौन है। हाजीपुर के सांसद हम हैं। मैं वहां से चुनाव लड़ूंगा और जीतकर फिर से भारत सरकार का मंत्री बनूंगा। मेरा गठबंधन भाजपा के साथ है, चिराग पासवान से साथ नहीं।”
पशुपति पारस ने कहा, ''चिराग पासवान अभी असमंजस में है, चिराग ने कभी लालू यादव या तेजस्वी का विरोध नहीं किया है, मैं हाजीपुर का सांसद हूं और यह सीट किसी भी क़ीमत पर नहीं छोड़ूंगा।''
बीजेपी की मुश्किल
अब चाचा भतीजे के रिश्तों की यह तल्ख़ी बीजेपी के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकती है। कन्हैया भेलारी के मुताबिक़ ज़मीन पर चिराग पासवान की ताक़त ज़्यादा दिखती है और इसलिए बीजेपी के लिए चिराग को साथ रखना ज़्यादा ज़रूरी है।
कन्हैया भेलारी कहते हैं, “बीजेपी या कोई भी पार्टी अपने सर्वे के मुताबिक़ फ़ैसला करती है। बीजेपी को पता चला होगा कि ज़मीन पर चिराग पासवान का असर ज़्यादा है, इसलिए हो सकता है कि ज़रूरत पड़ने पर वो पशुपति पारस को एनडीए से बाहर कर दे।”
पार्टी में टूट के बाद भले ही चिराग पासवान एनडीए से अलग हो गए थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में चिराग पासवान ने कई विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी का साथ दिया था। मुज़फ़्फ़रपुर की कुढ़नी सीट पर हुए उपचुनाव में चिराग ने बीजेपी के लिए प्रचार भी किया था।
पटना के एनएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और राजनीतिक मामलों के जानकार डीएम दिवाकर का मानना है कि चिराग पासवान ने बीजेपी के लिए सबकुछ किया लेकिन बीजेपी ने उनके चाचा को मंत्री बनाया हुआ है।
डीएम दिवाकर कहते हैं, “बीजेपी अपना काम निकालती है। ऐसा नहीं लगता है कि वो चिराग पासवान को बहुत महत्व देगी। बीजेपी केवल इसलिए चिराग को साथ जोड़ना चाहती है ताकि वो महागठबंधन के साथ न चले जाएं। अगर ऐसा होता है तो इससे बीजेपी को ज़्यादा नुक़सान होगा।”
वोट किसके पास?
एलजेपी में टूट के बाद चिराग पासवान अपने धड़े में अकेले सांसद रह गए हैं। लेकिन इस दौरान वो लगातार राज्य के दौरे पर रहे हैं और उनकी सभाओं में अच्छी भीड़ी भी देखी गई है।
एलजेपी में टूट के बाद साल 2021 के अंत में कुशेश्वरस्थान और तारापुर विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में चिराग पासवान ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इसमें चिराग पासवान के उम्मीदवारों को क़रीब छह फ़ीसदी वोट मिले थे।
वहीं पुराने चुनावों में भी रामविलास पासवान के समय से ही बिहार में एलजेपी के पास क़रीब 6-7 फ़ीसदी वोट माना जाता है। यह वोट अब चिराग पासवान के पास नज़र आता है। जबकि पार्टी में टूट के बाद पशुपति कुमार पारस के गुट ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है, इसलिए उनकी ताक़त का अंदाज़ा लगा पाना आसान नहीं है।
साल 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए विपक्ष जिस तरह से एकजुट होने की कोशिश कर रहा है, अगर वह सफल होता है तो नरेंद्र मोदी को एक संगठित विपक्ष का सामना करना पड़ सकता है। यह बीजेपी और एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
किसकी कितनी ताक़त?
साल 2015 के राज्य विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने पहली बार जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और कुछ अन्य दलों से साथ महागठबंधन बनाया था।
उन चुनावों में केवल आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने ही राज्य की 243 में 178 विधानसभा सीटों पर कब्ज़ा कर लिया था। जबकि बीजेपी महज़ 53 सीटों पर सिमट गई थी।
वहीं साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बिखरे विपक्ष के सामने बीजेपी ने बड़ी दर्ज की थी। साल 2019 के लोकसभा चुनावों में तो एनडीए को राज्य की 40 में 39 सीटों पर जीत मिली थी।
साल 2019 के चुनावों में बीजेपी ने 24 फ़ीसदी वोट के साथ राज्य की 17 लोकसभा सीटें जीती थीं। हालांकि उस वक्त जेडीयू भी बीजेपी के साथ थी।
उन चुनावों में जेडीयू को 22 फीसदी वोट के साथ 16 सीटें, कांग्रेस को आठ फीसदी वोट और एक सीट; जबकि आरजेडी को सीट भले एक भी नहीं मिली थी, लेकिन उसे 16 फीसदी वोट मिले थे।
माना जाता है कि महागठबंधन के पास बिहार में क़रीब 45 फ़ीसदी वोट हैं, जबकि बीजेपी के पास इसके मुक़ाबले क़रीब आधे ही वोट हैं। हालांकि छोटे दलों को साथ जोड़कर बीजेपी इस कमी को पाटने में लगी है।
बिहार में महागठबंधन से मुक़ाबले के लिए ज़रूरी है कि बीजेपी छोटी पार्टियों को अपने साथ जोड़कर रखे। देखना होगा कि बीजेपी छोटे दलों की बड़ी महात्वाकांक्षा किस तरह पूरा कर पाती है।