डॉ. कक्कड़ कहती हैं, हम उस दौर से आगे निकल चुके हैं। अब अगर कोई हमें हीरो कहता है, तो मैं अपने में ही कहती हूं...अब इसे बंद कीजिए। अब इससे कुछ हो नहीं रहा। मोटिवेशनल लेक्चर्स की भी एक सीमा होती है। वो कहती हैं, सीनियर्स हमें कहते हैं कि यह एक मैराथन है ना कि छोटी रेस। द्वैपायन बनर्जी मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में एक मेडिकल एंथ्रोपोलॉजिस्ट हैं। उनके मुताबिक़, ये किसी नई महामारी का नतीजा नहीं बल्कि थकान और फिर उससे उबरने की कोशिश भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं।