क्या किसानों ने तिरंगा उतारकर लाल किले पर फहराया ‘खालिस्तानी झंडा’?
बुधवार, 27 जनवरी 2021 (10:38 IST)
- सुमनदीप कौर, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली में मंगलवार को गणतंत्र दिवस की परेड के बाद ट्रैक्टर रैली के दौरान आंदोलित भीड़ में से कुछ लोग लाल किले की प्राचीर पर चढ़ गए। ये लोग कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसान संगठनों से जुड़े बताए जा रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों ने लाल किले की प्राचीर पर कुछ झंडे फहरा दिए। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने दावा किया है कि इन लोगों ने लाल किले की प्राचीर से भारतीय झंडे को उतारकर खालिस्तानी झंडा फहरा दिया। इसके बाद से लोग इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग कर रहे हैं।
ट्विटर यूज़र श्याम झा ने लिखा है, “गाँव का बच्चा भी जानता था कि क्या होने जा रहा है। और हम किसी अदृश्य मास्टरस्ट्रोक का इंतज़ार कर रहे थे। इतिहास हमेशा याद रखेगा कि मोदी जी के राज में लाल किले में लोग घुसे और खालिस्तानी झंडा फहराया गया।”
Oh bhai even the kid of village knew whats going to happen and we were waiting for some non existent #Masterstroke. History will always remember that during #Modi ji #lalqila was breached and #Khalistan flag was hoisted there.
लाल किले पर लोगों के घुसने और झंडे फहराए जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इन वीडियो में लाल किले पर कुछ लोग झंडे फहराते नज़र आ रहे हैं। पहली नज़र में ये झंडे केसरिया और पीले रंग के नज़र आ रहे हैं।
ट्विटर पर एक महिला श्वेता शालिनी ने लाल किले पर फहराए गए दो झंडों में फर्क बताया है।
उन्होंने लिखा, “कुछ लोगों के लिए ये जानकारी है - कृपया दो झंडे देखिए, एक झंडा केसरिया निशान साहिब जो कि आपको सभी गुरुद्वारों में भगवा रंग में मिलेगा। दूसरा झंडा चौकोर पीले रंग का झंडा है, कृपया तीसरी तस्वीर में देखिए कि इसका क्या मतलब है। #KHALISTANIflag”
Some knowledge for a select few:
Please note the two flags
1. One the saffron #nishansahib (as in the second pic) you will find it in all gurudwaras in Bhagwa.
2. Second square yellow flag, please see what it denotes in the third picture.#KHALISTANIflagpic.twitter.com/MuJMHebo81
वहीं, समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी इस घटना की निंदा की है।
आरएसएस ने कहा है कि लाल किले पर जो कुछ हुआ है, वो उन लोगों का अपमान है जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान दी। लेकिन कई वरिष्ठ पत्रकारों ने लाल किले पर फहराए गए झंडे के खालिस्तानी झंडा होने से इनकार किया है।
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, “निशान साहिब झंडा एक खालिस्तानी झंडा नहीं है। ये सिख धर्म में पूज्यनीय झंडा है। लेकिन गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर जबरन इसे फहराने की कोई ज़रूरत नहीं थी।”
A Nishan Sahib flag is NOT a flag of Khalistan: it is a flag of great reverence in Sikhism. BUT it has absolutely NO place to be forcibly put on Red Fort on Republic or any other day.
वहीं, बीबीसी को उपलब्ध वीडियो में कहीं भी प्रदर्शनकारी तिरंगा हटाते नहीं दिख रहे हैं। वास्तव में, जब वे लाल किले की प्राचीर पर चढ़े, तो उन्होंने कई स्थानों पर भगवा और किसानी झंडे फहराए।
अब आपको बताते हैं कि खण्डे के चिन्ह के साथ भगवा झंडा असल में क्या है।
बीबीसी पंजाबी ने इस बारे में पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के श्री गुरु ग्रंथ साहिब विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सरबजिंदर सिंह से इस बारे में जानकारी ली।
सरबजिंदर सिंह ने बीबीसी को बताया कि निशान शब्द एक फ़ारसी शब्द है। सिख धर्म में सम्मान स्वरूप इसके साथ साहिब शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
निशान साहिब को पहली बार सिख धर्म के छठे गुरु द्वारा सिख धर्म में स्थापित किया गया था जब लाहौर में जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी की हत्या कर दी गई थी।
सिख परंपरा के अनुसार, पांचवें गुरु ने बाल हरगोबिंद को एक संदेश भेजा, जिसे “गुरु अर्जन देव जी के अंतिम संदेश” के रूप में जाना जाता है।
आदेश था, “जाओ और उसे कहो कि शाही सम्मान से कलगी पहने, सेना रखे और सिंहासन पर बैठकर निशान स्थापित करे ।”
जब बाल हरगोबिंद को पारंपरिक रूप से बाबा बुड्ढा जी द्वारा गुरुगद्दी की रसम निभाई जा रही थी, उस समय वह बोले, “ इन सभी चीजों को राजकोष में रखो, मैं शाही धूमधाम के साथ कलगी धारण करूंगा और निशान स्थापित करूँगा, सिंहासन पर बैठा मैं सेना को रखूंगा, मैं भी शहीद हो जाऊंगा, लेकिन उनका रूप पांचवें बातशाह से अलग होगा । शहादतें अब जंग के मैदान में दी जाएंगी।”
पहली बार मीरी पीरी की दो तलवारें पहनी और श्री हरमंदिर साहिब के बिलकुल सामने 12 फीट ऊंचे मंच की स्थापना की। (दिल्ली राजशाही का सिंहासन 11 फीट था और भारत में इससे ऊंचे सिंहासन का निर्माण करना दंडनीय था)। इसे 12 फीट ऊंचा रखके सरकार को चुनौती दी गई थी।
यह तख्त भाई गुरदास और बाबा बुड्ढा जी द्वारा बनवाया गया था। इसके पहले जत्थेदार, भाई गुरदास जी को, खुद छठे बादशाह द्वारा नियुक्त किया गया था। इसके सामने दो निशान स्थापित किए गए थे।
जिन्हें पीरी और मीरी के निशान कहा जाता है। पीरी का निशान अभी भी मीरी से सवा फुट ऊँचा है।
गुरु बादशाह के समय, इसका रंग भगवा (केसरी) था, लेकिन 1699 में खालसा के निर्माण के बाद, नीले निशान का भी इस्तेमाल किया गया था। इसे उस समय अकाल ध्वज भी कहा जाता था।
केसरी निशान साहिब वास्तव में सिख धर्म के स्वतंत्र व्यक्तित्व का प्रतीक है। यह एक धार्मिक प्रतीक है और प्रत्येक गुरुद्वारा या सिख इतिहास से जुड़े स्थानों पर स्थापित किया जाता है।
जो केसरी निशान लाल किले पर लहराया गया है वह किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक आंदोलन का झंडा नहीं है। बल्कि यह सिख धर्म का प्रतीक है।