क्या स्मृति ईरानी होंगी गुजरात की अगली मुख्यमंत्री?
बुधवार, 20 दिसंबर 2017 (10:46 IST)
अभिमन्यु कुमार साहा
गुजरात में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। भाजपा ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की है। जनता का अखाड़ा जीतने के बाद अब दंगल पार्टी के भीतर शुरू हो चुका है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा, इसके लिए जोड़-तोड़ और कयास लगाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह दो लोग, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तय करते हैं। चुनाव से पहले अमित शाह ने यह घोषणा की थी कि मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रुपानी ही अगले मुख्यमंत्री होंगे।
लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। भाजपा को अपेक्षा से कम सीटें मिली हैं। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल के मुताबिक मुख्यमंत्री तय किए जाने से पहले कई ऐसे फैक्टर हैं, जिस पर भाजपा विचार कर रही हैं।
प्रशांत दयाल कहते हैं, "विजय रुपानी जैन समुदाय से आते हैं, जिसकी संख्या गुजरात में एक से दो प्रतिशत ही है। दूसरी बात ये है कि गुजरात का जो सौराष्ट्र इलाका है, यहां भाजपा बुरी तरह पराजित हुई है।"
वो आगे कहते हैं, "इस स्थिति को सुधारने के लिए मैं मानता हूं कि गुजरात के अगले मुख्यमंत्री सौराष्ट्र से हो सकते हैं। और ज्यादा संभावना ये है कि पटेल समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं।"
प्रशांत के मुताबिक भाजपा में उनके सूत्र बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के नाम पर भी चर्चा हो रही है।
वो कहते हैं, "मेरे अंदर के सूत्रों के अनुसार केंद्रीय मंत्री स्मृति के नाम पर भी चर्चा हो रही है। यह संभावना तब बन सकती है जब भाजपा मुख्यमंत्री पद किसी खास जाति को नहीं सौंपना चाहेगी।"
जाति कार्ड बनाम स्मृति ईरानी
प्रशांत कहते हैं कि स्मृति ईरानी पर हो रही चर्चा का मतलब ये है कि गुजरात में पटेलों की मांग होती है कि मुख्यमंत्री पटेल ही होना चाहिए। ठाकोर की मांग होती है कि उनकी जाति से मुख्यमंत्री बनें।
वोट बैंक के मद्देनजर ये दोनों समुदाय अहम हैं। ऐसी स्थिति में जाति कार्ड को दरकिनार कर स्मृति ईरानी को कुर्सी पर बिठाया जाता है तो दोनों जाति नाराज नहीं होंगे।
वो तर्क देते हैं कि अगर किसी को नाराज़ नहीं करना है तो स्मृति ईरानी विकल्प में होंगी। जब आनंदीबेन पटेल को हटाकर विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब भी यही फैक्टर काम आया था। रुपानी से पहले ये तय हो चुका था कि नितिन पटेल को मुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा। लेकिन आखिरी वक्त में फेरबदल कर दिया गया।
स्मृति ही क्यों?
स्मृति ईरानी गुजरात से नहीं आती हैं, फिर उनके नाम पर चर्चा क्यों, इस सवाल पर प्रशांत दयाल कहते हैं, "गुजरात की वर्तमान स्थिति भाजपा के लिए बहुत अच्छी नहीं है। पहला तो ये कि शासन चलाने के लिए पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि विधानसभा में विपक्ष का संख्याबल मजबूत हुआ है।"
दूसरा ये कि गुजरात विधानसभा में कांग्रेस की तरफ से 15 नए चेहरे आए हैं, जिसमें अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी फायरब्रांड नेता हैं। इस स्थिति में कांग्रेस को विधानसभा के अंदर और बाहर रोकने के लिए एक पावरफुल नेता की जरूरत है। स्मृति ईरानी इसमें बेहतर साबित हो सकती हैं।
मोदी की तरफ से इशारा?
भाजपा की इच्छाशक्ति स्मृति ईरानी को कुर्सी सौंपने में कितनी हो सकती है, इस पर प्रशांत कहते हैं- स्मृति ईरानी में जो राजनीतिक दंभ वो प्रधानमंत्री मोदी को पसंद हैं।
"मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं जो सरकार और पार्टी, दोनों पर नियंत्रण कर सके।" क्या स्मृति गुजरातियों के बीच लोकप्रिय हैं, इस सवाल के जवाब में प्रशांत दयाल कहते हैं, "देखिए उनको देखने के लिए भीड़ तो आती है। हालांकि वो गुजरात से नहीं है।"
"लेकिन मैं पिछले कई महीनों से देख रहा हूं कि स्मृति ईरानी गुजराती में ट्वीट कर रही हैं। और मुझे लगता है कि मोदी और शाह की तरफ से उन्हें कोई इशारा तो मिला होगा कि वो ये बदलाव ला रही हैं।" प्रशांत बताते हैं कि स्मृति भाजपा के 2019 के सपने को भी साकार करने के लिए जी-जान लगा सकती हैं।
दौड़ में और कौन
कुर्सी की दौड़ में आनंदीबेन पटेल भी हैं। हालांकि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन वो प्रबल दावेदार हैं। प्रशांत दयाल के सूत्र बताते हैं कि विजय रुपानी के शासन में वोट शेयर घटा है।
ऐसी स्थिति में अगर दोबारा पटेल को कुर्सी सौंपनी होगी तो आनंदीबेन पटेल या नितिन पटेल भी हो सकते हैं। अगर ओबीसी को कुर्सी सौंपने पर विचार किया गया तो कर्नाटक के राज्यपाल वजूभाई रुदाभाई वाला पर कई दिनों से चर्चा हो रही है।
हालांकि इसमें तकनीकी परेशानियां ज्यादा हैं। रूदाभाई वाला कर्नाटक के राज्यपाल हैं और उन्हें दोबारा सक्रिय राजनीति में लाना आसान नहीं होगा। रूदाभाई वाला गुजरात से हैं और उनकी ओबीसी में अच्छी पकड़ है। वो सौराष्ट्र से भी हैं। ऐसे में ओबीसी वोटरों के लिए उन्हें कुर्सी दी जा सकती है।