कोरोना वायरस से भारत की आर्थिक परेशानियाँ कितनी बढ़ीं?

शुक्रवार, 13 मार्च 2020 (11:50 IST)
निधी राय, बीबीसी संवाददाता, मुंबई से
कोरोना वायरस का असर क्या भारतीय बाज़ार पर पड़ेगा? इस सवाल का छोटा सा जवाब है, हाँ। संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवेलपमेंट (UNCTAD) ने ख़बर दी है कि कोरोना वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है।
 
चीन में उत्पादन में आई कमी का असर भारत से व्यापार पर भी पड़ा है और इससे भारत की अर्थव्यवस्था को क़रीब 34.8 करोड़ डॉलर तक का नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
 
यूरोप के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन यानी ओईसीडी ने भी 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की गति का पूर्वानुमान 1.1 प्रतिशत घटा दिया है।
 
ओईसीडी ने पहले अनुमान लगाया था कि भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.2 प्रतिशत रहेगी लेकिन अब उसने इसे कम करके 5.1 प्रतिशत कर दिया है। कोरोना वायरस का असर क्या भारतीय बाज़ार पर पड़ेगा? इस सवाल का छोटा सा जवाब है, हाँ।
 
संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवेलपमेंट (UNCTAD) ने ख़बर दी है कि कोरोना वायरस से प्रभावित दुनिया की 15 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत भी है।
 
किन सेक्टरों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा?
दवा कंपनियाँ
ये केवल फार्मा कंपनियों की आमदनी का मामला नहीं है। किसी भी बुरे प्रभाव की एक मानवीय क़ीमत भी होती है। मेडिकल स्टोर में दवाओं की कमी हो रही है। तमाम बड़े शहरों में केमिस्ट, सैनिटाइज़र और मास्क के ऑर्डर तो दे रहे हैं लेकिन उन्हें एक हफ़्ते से माल की डिलिवरी नहीं मिल पा रही है।
 
अब जब बहुत से भारतीय अपने यहां दवाएं, सैनिटाइज़र और मास्क जमा कर रहे हैं, तो ये सामान अधिकतम खुदरा मूल्य से भी अधिक दाम पर बिक रहे हैं।
 
मुंबई के मलाड इलाक़े में स्थित जे के मेडिकल के हेमंत येवाले ने बीबीसी को बताया, "हमने एन-95 मास्क के ऑर्डर पिछले हफ़्ते ही दिए थे लेकिन हमें वो मास्क अब तक नहीं मिल सके हैं। यही हाल सैनिटाइज़र्स का है। हमारे पास छोटी बोतलें नहीं हैं। इस हफ़्ते सैनिटाइज़र्स और मास्क की मांग और बढ़ गई है और मुझे लगता है कि आने वाले समय में ये मांग और बढ़ेगी।"
 
मुंबई के खार इलाक़े में स्थित नोबल प्लस फ़ार्मेसी के बिछेंद्र यादव भी हमें यही बातें बताते हैं। बिछेंद्र यादव कहते हैं, "हमारे पास मास्क तो हैं लेकिन इन पर ये नहीं लिखा है कि ये एन-95 मास्क हैं। फिर भी लोग इन्हें ख़रीद रहे हैं। हमारे पास सैनिटाइज़र्स की 500 मिलीलीटर की बोतले हैं लेकिन, नया स्टॉक आ नहीं रहा है। हमने बहुत-सा स्टॉक बेच दिया है। फिर भी, लोगों की मांग कम नहीं हो रही है।"
 
मुंबई के ही धवल जैन ने शुक्रवार को दोपहर बाद का पूरा समय बांद्रा इलाक़े में स्थित तमाम मेडिकल स्टोर्स में मास्क तलाशने में ही ख़र्च किया।
 
धवल कहते हैं, "मैं आम तौर पर ख़ुद को प्रदूषण से बचाने के लिए मास्क पहनता हूं। लेकिन अब वही मास्क मुझे तीन गुनी ज़्यादा क़ीमत पर मिल रहे हैं। मैं ये कीमत भी देने को तैयार हूं, पर मुझे वो मास्क नहीं मिल रहे हैं। किसी मेडिकल स्टोर पर मास्क है ही नहीं। मैंने एन-95 मास्क का ऑर्डर ऑनलाइन दिया था। उन्होंने कहा था कि ये सोमवार को पहुंचेगा लेकिन अब ये हफ़्ता ख़त्म होने को है और मुझे वो मास्क अब तक नहीं मिला है।"
 
थोक ऑनलाइन कारोबार की सबसे बड़ी भारतीय कंपनी ट्रेड इंडिया डॉट कॉम (TradeIndia।com) के अनुसार, पिछले तीन महीनों में सैनिटाइज़र और मास्क की मांग में 316 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हो गया है। ट्रेड इंडिया के सीओओ संदीप छेत्री ने बीबीसी को बताया, "भारत के मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग ने इस मांग को पूरा करने के लिए अपना उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे अन्य निजी सुरक्षात्मक उत्पादों की मांग भारत में भी बढ़ रही है और बाक़ी दुनिया में भी। तो मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।"
 
भारत, जेनेरिक दवाओं का दुनिया भर में सबसे बड़ा सप्लायर है। चीन में उत्पादन बंद होने से भारत ने ऐहतियाती क़दम उठाते हुए कुछ दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है ताकि भारत को अपनी ज़रूरत पूरी करने में कोई कमी न हो।
 
इसीलिए पैरासेटामॉल, विटामिन B1, B6 और B12 के साथ-साथ अन्य एपीआई और फ़ॉर्मूलों की दवाओं के निर्यात पर पाबंदियां लगाई गई हैं।
 
केंद्रीय जहाज़रानी, रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा, "देश में दवाओं की कमी होने से रोकने के लिए एक टास्क फ़ोर्स बनाने का सुझाव दिया गया है। मंत्रियों का एक स्थायी समूह लगातार स्थितियों का आकलन कर रहा है। हम एक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएंट्स (API) और इंटरमीडियरी का निर्यात भी करते हैं और आयात भी।"
 
"अगर निर्यात जारी रहता है, तो कुछ एपीआई के मामलों में भविष्य में भारत में संकट खड़ा होने की आशंका है। इसीलिए हमने थोड़े समय के लिए ऐसे एपीआई के निर्यात पर पाबंदियां लगाई हैं, जो कोरोना वायरस के इलाज में काम आ सकती हैं।"
 
वित्तीय वर्ष 2019 में भारत ने अपने कुल एपीआई का 68 प्रतिशत हिस्सा चीन से आयात किया था।
 
पर्यटन उद्योग
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते, जब से आने-जाने में पाबंदियां लगी हैं, एहतियात के लिए दिशा-निर्देश और एडवाइज़री जारी की गई हैं, तब से अश्विनी कक्कड़ का फ़ोन बजना बंद नहीं हुआ है।
 
उन्हें लगातार कॉरपोरेट ग्राहकों और व्यक्तिगत कस्टरमर के फ़ोन आ रहे हैं। फ़ोन करने वाले या तो अपना सफ़र रद्द करना चाहते हैं या फिर आगे के लिए स्थगित करना चाहते हैं।
 
अश्विनी कक्कड़ पिछले तीस बरस से पर्यटन के कारोबार में हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने कभी भी अपने कारोबार में इतना बुरा वक़्त नहीं देखा।
 
वो बताते हैं, "मैंने अपनी ज़िंदगी में इससे बड़ी मेडिकल इमरजेंसी अब तक नहीं देखी। इसके आगे सार्स (SARS), मार्स (MARS) और स्वाइन फ्लू का संकट कुछ भी नहीं है। जितना बुरा असर कोरोना वायरस का हुआ है, उतना किसी बीमारी के प्रकोप से नहीं हुआ। बाहर जाने वाले कम से कम 20 प्रतिशत टूर या तो कैंसिल कर दिए गए हैं या फिर आगे के लिए टाल दिए गए हैं। आने वाले तीन महीनों में 30 फ़ीसद कॉरपोरेट यात्राओं पर इसका प्रभाव पड़ना तय है। इनमें से अधिकतर या तो अपनी यात्राएं रद्द कर देंगे, या अभी स्थगित कर देंगे। इसके बाद हमें और भी कोशिशें करनी पड़ेंगी।"
 
अश्विनी कक्कड़ ने ये भी कहा, "भारत आने वाले पर्यटकों की यात्राओं का अनुमान लगाना भी बहुत मुश्किल है। क्योंकि सरकार हर रोज़ नई नीति की घोषणा कर रही है और हमें पता नहीं है कि आगे किन और देशों के नागरिकों के भारत आने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।"
 
एहतियात के तौर पर सरकार ने कोरिया और इटली से आने वाले लोगों को कहा है कि वो अपनी यहां कि आधिकारिक लैब से इस बात का प्रमाणपत्र लेकर आएं कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हैं।
 
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज़ के अनुसार, "इटली, ईरान, दक्षिण कोरिया और जापान के नागरिकों को जो भी वीज़ा और ई-वीज़ा 3 मार्च 2020 या उससे पहले जारी किए गए हैं और जिन्होंने अभी भारत में प्रवेश नहीं किया है, वो सभी वीज़ा तत्काल प्रभाव से निलंबित किए जाते हैं। सरकार ने नागरिकों को ये भी सलाह दी है कि वो चीन, इटली, ईरान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, जापान, फ्रांस, स्पेन और जर्मनी की यात्रा तब तक न करें, जब तक ये बहुत ज़रूरी न हो।"
 
सरकार नियमित रूप से यात्रा से जुड़े दिशा-निर्देश अपडेट कर रही है। इससे सफ़र पर निकलने वालों के बीच अनिश्चितता का माहौल है।
 
अश्विनी कक्कड़ ने बताया, "होटलों के कमरों की ऑक्यूपैंसी में 20 से 90 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई है। दुनिया भर में बहुत से अंतरराष्ट्रीय आयोजन रद्द किए जा रहे हैं। सबसे बुरा असर तो डेस्टिनेशन वेडिंग पर पड़ा है।"
 
हाल ही में शादी करने वालीं पीआर अधिकारी अनु गुप्ता, लंबे हनीमून पर थाईलैंड जाने की योजना बना रही थीं लेकिन वायरस के प्रकोप के चलते उन्हें अपनी योजना रद्द करनी पड़ी।
 
अनु कहती हैं, "मेरी ये पहली विदेश यात्रा होती। हमने सभी टिकट बुक कर लिए थे। होटल में बुकिंग कर ली थी। घूमने जाने का प्लान बना लिया था। लेकिन अब हम नहीं जा सकते। और मुझे तो ये भी नहीं पता कि हमारा पैसा वापस भी आएगा या नहीं।"
 
ट्रैवेल ऐंड टूरिज़्म काउंसिल और ऑक्सफ़ोर्ड इकोनॉमिक्स, विश्व के पर्यटन उद्योग पर कोरोना वायरस के प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। उनके शुरुआती आकलन इशारा करते हैं कि कोरोना वायरस की महामारी से दुनिया के पर्यटन उद्योग को क़रीब 22 अरब डॉलर का नुक़सान होगा।
 
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) का अनुमान है कि विमानन उद्योग को यात्रियों से होने वाले कारोबार में कम से कम 63 अरब डॉलर का नुक़सान हो सकता है। इस अनुमान में माल ढुलाई के व्यापार को होने वाला नुक़सान शामिल नहीं है।
 
पर्यटन उद्योग पर कोरोना वायरस का जो एक और बुरा प्रभाव पड़ रहा है, वो है कि वायरस के संक्रमण के डर से बहुत से आयोजन रद्द हो रहे हैं, बहुत से जश्न टाले जा रहे हैं। बाहर से आने वाले यात्री और यहां से बाहर जाने वाले लोग, दोनों ही अपनी यात्राएं रद्द कर रहे हैं।
 
सीएआईटी (CAIT) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा, "अलग-अलग व्यापार संगठनों द्वारा देश भर में आयोजित किए जाने वाले क़रीब 10 हज़ार कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं।"
 
ऑटोमोबाइल उद्योग
सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स (SIAM) का कहना है कि भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग में क़रीब 3.7 करोड़ लोग काम करते हैं। भारत में ऑटो उद्योग पहले से ही आर्थिक सुस्ती का शिकार था। अब चीन में मंदी के कारण भारत के ऑटो उद्योग को भी कल-पुर्ज़ों की किल्लत हो रही है।
 
निर्मल गर्ग, पश्चिम बंगाल में एक ऑटो डीलर हैं। राज्य भर में उनके चार शो-रूम हैं। निर्मल गर्ग कहते हैं, "हर गुज़रते दिन के साथ हालत बिगड़ती ही जा रही है। हम पहले ही मंदी के दौर से गुज़र रहे थे और अब तो लोग भविष्य को लेकर और भी आशंकित हैं। इसीलिए वो एक नई कार में पैसा नहीं लगाना चाहते हैं।"
 
ऑटोमोटिव कम्पोनेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के महानिदेशक विनी मेहता ने बीबीसी को बताया कि अभी तो घबराहट की स्थिति नहीं है।
 
विनी मेहता कहते हैं, "हम अभी तो घबराहट के शिकार नहीं हैं लेकिन चिंतित ज़रूर है। बाज़ार के बड़े खिलाड़ियों ने हमें बताया है कि उनके पास अभी मार्च तक का स्टॉक है। अगर अप्रैल में चीन से सामान की सप्लाई नहीं शुरू होती, तो हालात चिंताजनक हो सकते हैं। तब हमें स्थानीय स्तर पर अपने लिए नए विकल्प तलाशने शुरू करने होंगे।"
 
ऑटो उद्योग की कई बड़ी कंपनियों ने कहा है कि उन्हें कल-पुर्ज़ों की आपूर्ति में परेशानी उठानी पड़ रही है। टाटा मोटर्स, टीवीएस मोटर्स, हीरो मोटर कॉर्प और बजाज ऑटो ने कहा है कि वो कोरोना वायरस के प्रभावों पर अपनी नज़र बनाए हुए हैं।
 
जूलरी कारोबार पर प्रभाव
 
एक और उद्योग जो कोरोना वायरस के प्रकोप से प्रभावित है, वो है जवाहरात और जूलरी का कारोबार। कोरोना वायरस से इस सेक्टर को क़रीब सवा अरब डॉलर का नुक़सान होने की आशंका है।
 
भारत के तराशे और पॉलिश किए हुए हीरों के निर्यात के सबसे बड़े केंद्र चीन और हॉन्ग कॉन्ग हैं और इन दोनों ही जगहों पर वायरस का बहुत बुरा असर पड़ा है।
 
कीर्ति शाह, सूरत स्थित हीरा तराशने वाली कंपनी, 'नेकलेस डायमंड' के संस्थापक हैं।
 
कीर्ति शाह ने बीबीसी को बताया, "हमारे पास ऐसे बहुत से छोटे-मोटे कारोबारी हैं, जो हीरे और जवाहरात तराश कर हमें देते हैं और हम उन्हें भुगतान करते हैं। हमें चीन और हॉन्ग-कॉन्ग से कोई भुगतान नहीं मिल रहा है। हम इन जगहों पर अपने ग्राहकों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं। ये बहुत बड़ी चुनौती है। हम अपने छोटे सप्लायर्स को भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। दोनों ही तरफ़ पैसा अटका हुआ है।"
 
कीर्ति शाह ने कहा कि कारोबारियों के पास अपने कर्मचारियों को देने के लिए भी बहुत पैसा नहीं है। अगर बाज़ार के ऐसे ही हालात रहे, तो उनके लिए धंधा करना बहुत मुश्किल होगा।
 
इसी तरह जेम ऐंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (GJEPC) के उपाध्यक्ष कॉलिन शाह ने बीबीसी को बताया, "इन परिस्थितियों के चलते भारत के हीरे और जवाहरात के पूरे उद्योग को एक अरब डॉलर का और भी घाटा उठाना पड़ सकता है क्योंकि इनके निर्यात के प्रमुख केंद्र वायरस के प्रकोप के शिकार हैं।"

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