'जिन्हें डर लग रहा है वो पार्टी से जा सकते हैं। कई निडर लोग हैं, जो कांग्रेस में नहीं हैं, ऐसे लोगों को आना चाहिए और वैसे कांग्रेसी जो बीजेपी से डरे हुए हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत नहीं है, जो आरएसएस की सोच में विश्वास रखते हैं। हमें निडर लोगों की ज़रूरत है। ये हमारी विचारधारा है।'
राहुल गांधी ने यह बयान 16 जुलाई 2021 को कांग्रेस के सोशल मीडिया सेल के वॉलंटियर्स को संबोधित करते हुए दिया था। तब से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी में कई बड़े बदलाव देखने को भी मिले हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह का पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा
चरणजीत सिंह चन्नी का मुख्यमंत्री बनना
बिहार के पूर्व सीपीएम नेता कन्हैया कुमार का कांग्रेस में शामिल होना
गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी का कांग्रेस में शामिल होना
राजस्थान में सत्ता हस्तांतरण पर चुप्पी
छत्तीसगढ़ में पार्टी में समस्या
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की सार्वजनिक नाराज़गी
कांग्रेस के इन बदलावों को सीधे तौर पर राहुल गांधी की सोच का नतीजा बताया जा रहा है।
'नेतृत्वहीन' कांग्रेस में फ़ैसले लेते राहुल गांधी
राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं और अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। बावजूद इसके पार्टी में हर एक बदलाव, घमासान पर हर पक्ष के नेता राहुल गांधी से मिलने के बाद ही अंतिम फ़ैसला ले रहे हैं।
पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कुछ दिन पहले इस बात को लेकर अपना दर्द भी बयां किया था। उन्होंने कहा था, "कांग्रेस में अब कोई निर्वाचित अध्यक्ष नहीं है। हम नहीं जानते कि कौन निर्णय ले रहा है।"
कपिल सिब्बल ने भले ही स्पष्ट तौर पर नेतृत्व का नाम नहीं लिया, लेकिन हालिया घटनाक्रम यह समझने के लिए काफ़ी हैं कि 'बिना निर्वाचित अध्यक्ष वाली कांग्रेस पार्टी के भीतर' फ़ैसले कौन ले रहा है। जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया को पार्टी के सदस्य बनने के दौरान राहुल गांधी मौजूद रहे।
अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने जो बयान दिया, उसमें उन्होंने कहा कि वे हमेशा राहुल और प्रियंका गांधी के साथ खड़े रहेंगे। सचिन पायलट बीते महीने 10 दिन के भीतर तीन बार राहुल गांधी से मिलने पहुँचे।
इसके अलावा 24 अगस्त को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव अपना विवाद सुलझाने के लिए भी राहुल गांधी से ही मिले थे।
ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि पार्टी अध्यक्ष ना होते हुए भी राहुल गांधी 'भूमिका' वही अदा कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस का चेहरा बदलने की कोशिश कर रहे हैं?
बदलाव की बात
कांग्रेस की राजनीति को क़रीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई मानते हैं कि निश्चित तौर पर राहुल गांधी कांग्रेस में बदलाव के लिए कोशिश कर रहे हैं।
वह कहते हैं, "पार्टी में बदलाव की बात राहुल गांधी ने जनवरी 2014 में जयपुर में ही कह दी थी। उस समय वह कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने थे और उस दौरान अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि मैं कांग्रेस का मूल्यांकन करना चाहता हूँ।"
रशीद किदवई कहते हैं, "कांग्रेस पार्टी में दो तरह के नेताओं की बहुतायत हैं। एक जो वफ़ादारी की दुहाई देते हैं और जो चुनावी राजनीति में बहुत कामयाब नहीं हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी पर नज़र डाली जाए, तो अधिकांश सदस्य लोकसभा या फिर राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य नहीं हैं। जिसका सबूत 2014 और 2019 में मिल भी गया। ऐसे में राहुल गांधी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन वह शुरुआत से ही बाहरी लोगों को ज़्यादा महत्व देते रहे हैं।"
हालांकि कांग्रेस पार्टी का युवा चेहरा और पार्टी की प्रवक्ता शमा मोहम्मद ये तो मानती हैं कि राहुल गांधी पार्टी में बदलाव की कोशिश कर रहे हैं। नए चेहरों को, ख़ासतौर पर महिलाओं को पार्टी प्रोत्साहित कर रही है। जिनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है, उन्हें भी मौक़ा दे रही है।
लेकिन वरिष्ठ नेताओं की नाराज़गी पर वह कहती हैं, "हर पार्टी में उथल-पुथल मचती है। बदलाव होते हैं तो कुछ उथल-पुथल तो होती है। बीजेपी में भी तो उथल-पुथल मची थी। यह बेहद सामान्य बात है किसी भी पार्टी में। हमारी पार्टी एक लोकतांत्रिक पार्टी है और इसी कारण लोग नाराज़गी भी जता सकते हैं।"
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता भी मानती हैं कि राहुल गांधी पार्टी में बदलाव तो करना चाहते हैं और कर भी रहे हैं। ख़ासतौर पर नई पीढ़ी को मौक़े देकर।
वह कहती हैं, "यह साफ़ है कि राहुल गांधी पुरानी जेनेरेशन को हटाकर एक नई जेनेरेशन को सामने लाना चाहते हैं। क्योंकि फिर अमरिंदर सिंह को हटाने का कोई मतलब ही नहीं हैं। अमरिंदर सिंह कांग्रेस के सफल नेता थे। राहुल गांधी के संदर्भ में यह तो स्पष्ट है कि वो जेनेरेशनल चेंज लाना चाहते हैं।"
हालांकि स्मिता यह भी कहती हैं कि एक ओर जहाँ राहुल गांधी नई पीढ़ी को लाना चाह रहे हैं, वहीं इस बात को नहीं भूलना चाहिए कई नए चेहरे रहे हैं, जो हाल में ही कांग्रेस पार्टी छोड़कर भी गए हैं। वह कहती हैं कि कहीं ना कहीं राहुल गांधी कन्फ़्यूज़ भी नज़र आ रहे हैं।
स्मिता कहती हैं, "कुछ लोग राहुल गांधी के बदलाव भरे इन फ़ैसलों की तुलना इंदिरा गांधी के तात्कालिक बदलाव के फ़ैसले से कर रहे हैं लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि इंदिरा गांधी तब सत्ता में थीं। उन्होंने पार्टी के सीनियर लीडर्स को लेकर जो बदलाव किए, वो वैचारिक आधार पर थे, यहाँ राहुल के संदर्भ में कोई विशेष मतभेद तो दिखाई नहीं पड़ता है। क्योंकि राहुल गांधी को हम आइडियलिस्टिक कह सकते हैं लेकिन आइडियोलॉजिकल वो कितने क्लीयर हैं, यह पता नहीं लगता है।"
वरिष्ठ नेता
कांग्रेस का एक धड़ा हालिया घटनाक्रमों से क्षुब्ध है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने अपना दुख और नाराज़गी ज़ाहिर भी की है।
रशीद किदवई कहते हैं कि जी23 (कांग्रेस के 23 नेता जिन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी) के खाने के दाँत कुछ और हैं और दिखाने के कुछ और।
वह कहते हैं, "वे कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। जब कांग्रेस फ़ोरम पर मुद्दे उठाए जाते हैं तो वे सर्वसम्मति से कह देते हैं कि सोनिया गांधी जो निर्णय लेना चाहे लें, लेकिन बाहर आकर वे दूसरी बातें करते हैं।"
सोनिया गांधी को जी23 नेताओं की लिखी चिट्ठी का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं कि उन्होंने अभी तक कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती देने का जो उनका संवैधानिक अधिकार है, उसका प्रयोग नहीं किया है।
रशीद किदवई कहते हैं कि जी23 के नेता चाहते हैं कि पार्टी के जो बड़े और अहम पद हैं, इनकी 'निर्णय प्रक्रिया' में वह ख़ुद रहना चाहते हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। यही चीज़ें उन्हें फूटी आँख नहीं सुहा रही हैं। राहुल गांधी की खीझ यही है।
"राहुल गांधी की खीझ यही है कि पार्टी के भीतर कोई उनसे यह कहता है कि उसने उनकी दादी के साथ काम किया।कोई कहता है कि उसने उनके पिता के साथ काम किया। कोई कहता है कि उसने उनकी मां के साथ काम किया तो राहुल गांधी ऐसे ही चाचाओं-मामाओं के बीच घिरे हुए हैं और उन्हें अपनी राजनीति दिखाने का मौक़ा ही नहीं मिल रहा है"
कोशिश
रशीद किदवई इस बात से सहमति जताते हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी में क़द के अनुसार नहीं बल्कि लोकतांत्रिक तरीक़े से आगे बढ़ने के पक्षधर रहे हैं।
वह कहते हैं, "राहुल गांधी पहले भी लोकतांत्रिक तरीक़े से मुख्यमंत्रियों का चुनाव करना चाहते थे लेकिन तब उन्होंने मुँह की खाई। मध्य प्रदेश में उन्होंने लोकतांत्रिक आधार पर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया, तो सिंधिंया नाराज़ हो गए, पार्टी से चले गए और सरकार भी गिर गई।राजस्थान और पंजाब में भी यही स्थिति रही है।"
हालाँकि स्मिता गुप्ता हालिया घटनाक्रम को लोकतांत्रिक तरीक़े से लिए गए फ़ैसलों के तौर पर नहीं देखतीं।
भूमिका स्पष्ट नहीं
स्मिता गुप्ता कहती हैं कि राहुल गांधी जो फ़िलहाल कर रहे हैं, वो लोकतांत्रिक तो नहीं है। वह कहती हैं "घोषित तौर पर तो नहीं लेकिन कांग्रेस पार्टी में लोग मानते हैं ही कि कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष कोई गांधी परिवार से ही होगा। राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया भी गया। आपने ख़ुद ही पद छोड़ा। आपके नेतृत्व में दो लोकसभा चुनाव भी पार्टी हार गई बावजूद इसके उन्हें अध्यक्ष बनने को कहा जा रहा है, लेकिन वह ना तो ख़ुद बन रहे हैं और किसी को बना रहे हैं लेकिन फ़ैसले तो सारे कर रहे हैं। लेकिन जब आप अध्यक्ष नहीं हैं तो फ़ैसले क्यों ले रहे हैं।"
रशीद किदवई मानते हैं कि राहुल गांधी जो भी कर रहे हैं, उसमें कोई शक़ नहीं है कि वह कांग्रेस की बेहतरी के लिए ही कर रहे हैं लेकिन सबसे अहम है कि वह पहले अपनी ख़ुद की भूमिका स्पष्ट करें।
वह कहते हैं, "राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं हैं। ऐसे में वह किस आधार पर निर्णय ले रहे हैं, इस बात में वज़न है। कांग्रेस पार्टी अगर गांधी परिवार की धरोहर है, तो वह अध्यक्ष पद के लिए आनाकानी क्यों कर रहे हैं, यह समझ से परे है। अगर वह अध्यक्ष पद पर रहते हुए निर्णय लेंगे तो उनकी सार्थकता कहीं अधिक होगी।"
राहुल गांधी की भूमिका के सवाल पर कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता शमा कहती हैं, "जेपी नड्डा किस पार्टी के अध्यक्ष हैं? लेकिन फ़ैसले कौन ले रहा है, अमित शाह।"
वह मीडिया पर आरोप लगाते हुए कहती हैं कि यह सब कुछ मीडिया का फैलाया हुआ है। सोनिया गांधी जी को हर एक घटनाक्रम की जानकारी है। उन्हें मदद करने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हैं।
संजय गांधी के नक़्शे-क़दम पर चल रहे हैं राहुल
संजय गांधी ने अपने समय में कांग्रेस में पूरा उलट-फेर कर दिया था और अब राहुल गांधी भी कुछ-कुछ वैसा ही करते दिख रहे हैं।
रशीद किदवई कहते हैं कि उनके चाचा ने उलटफ़ेर तो किया था, लेकिन उनके समय में और अब के समय में अंतर यह है कि तब कांग्रेस सत्ता में थी और अब कांग्रेस सत्ता में नहीं है।
वह कहते हैं, "युवराज की भूमिका में जब कोई सत्ता में आता है तो पार्टी का सत्ता में होना ज़रूरी है। जब इंदिरा गांधी ने संजय गांधी को पद सौंपा था तब वह सत्ता में थीं। राजीव गांधी के समय भी वह सत्ता में थीं, लेकिन राहुल के समय में परिस्थितियाँ बहुत अलग हैं और राहुल गांधी के आगे चुनौतियाँ भी इसीलिए अधिक हैं।"
स्मिता गुप्ता मानती हैं कि राहुल गांधी ने हाल-फ़िलहाल में जो कुछ फ़ैसले किए हैं, वो रणनीतिक तौर पर बिल्कुल सही हैं लेकिन उनका परिणाम इतनी जल्दी नहीं मिलेगा।
वह कहती हैं कि पार्टी में कन्हैया, जिग्नेश मेवाणी को लेकर आना पार्टी के पक्ष में जा सकता है, बशर्ते उन्हें वो एक्सपोज़र मिले। उन्हें उनकी राजनीति करने का अवसर मिले।
वह कहती हैं, "पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया है। लेकिन चन्नी उतना बड़ा नाम नहीं हैं। राज्य में कुछ ही महीनों में चुनाव हैं, ऐसे में चन्नी के पास समय भी कम है और अगर कांग्रेस को दलितों को साधना है तो उसे सत्ता में रहना होगा। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि आप सत्ता में रहकर ही किसी वर्ग के लिए विशेष तौर पर काम कर पाएँगे। लेकिन क्योंकि चन्नी के पास समय कुछ महीनों का ही है तो ऐसे में यह फ़ैसला कितना सही साबित होगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएँगे।"