पुलवामा CRPF हमले के बाद पाकिस्तान पर कार्रवाई के लिए किस हद तक जा सकता है भारत: नज़रिया
शनिवार, 16 फ़रवरी 2019 (11:03 IST)
- अजय शुक्ला (सामरिक विशेषज्ञ)
भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुए हमले के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उन्होंने जवाबी कार्रवाई के लिए सेना को पूरी छूट दी है। यह हमला बीते तीन दशक में भारत पर हुआ सबसे ख़तरनाक चरमपंथी हमला है।
इस हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि "चरमपंथी संगठन और उनके मददगारों" को "बड़ी क़ीमत" चुकानी होगी। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए "करारा जवाब" देने की धमकी भी दी है। मीडिया में भी आक्रामकता के सुर हैं और कुछ प्रभावी टीवी चैनल तो बदला लेने के लिए उतावले दिख रहे हैं।
आत्मघाती कार से हमला करने की ज़िम्मेदारी पाकिस्तानी ज़मीन से चलने वाले संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) ने ली है। संयुक्त राष्ट्र सहित कई देशों ने इस संगठन को चरमपंथी संगठन के तौर पर मान्यता दी हुई है।
इसके संस्थापक नेता मौलाना मसूद अज़हर को भारतीय सुरक्षा बलों ने 1990 के दशक में गिरफ़्तार कर जेल में रखा था। 1999 में दिल्ली आ रहे विमान को अपहृत कर करके कंधार ले जाया गया था और यात्रियों की रिहाई के बदले जिन चरमपंथियों को भारत सरकार ने रिहा किया था, अज़हर उनमें शामिल थे। भारतीय प्रशासन हमेशा से उस विमान अपहरण कांड के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराता आया है।
जैश के कारण तनाव
बीते कई साल से अज़हर को 'ग्लोबल टेररिस्ट' के तौर पर चिन्हित किए जाने के लिए भारत, संयुक्त राष्ट्र पर दबाव डालता आया है। वहीं पाकिस्तान के सहयोगी देश के तौर पर चीन हमेशा इस पहल का विरोध करता आया है।
बहरहाल, पुलवामा हमले में जैश ए मोहम्मद की संलिप्तता से हमले में पाकिस्तान का सीधा संबंध भी ज़ाहिर होता है। 2001 में, भारतीय संसद पर हमले के लिए जैश को जिम्मेदार ठहराया गया, इस हमले में नौ सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी।
इसके बाद दोनों देशों के बीच हालात इतने तनावपूर्ण रहे कि कई महीनों तक युद्ध जैसी स्थिति बनी रही थी। 2016 में पठानकोट और उड़ी के भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला किया गया, जिसके बाद भारतीय सेना ने दावा किया कि उसने लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर मौजूद चरमपंथी शिविरों पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' किया था।
आईएसआई को है जैश से परेशानी
इस बार, दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर ज़्यादा कुछ करने का दबाव है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक बेहद लिमिटेड थी, समय और टारगेट दोनों के लिहाज से, जिसकी वजह से पाकिस्तान ने इसके होने से भी इनकार किया था।
वैसे भारतीय सेना, यह स्वीकार कर चुकी है कि नुकसान पहुंचाने वाले चरमपंथी हमले पर उसे पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आनन फ़ानन में भी कार्रवाई करनी पड़े तो वह सक्षम है। लेकिन ऐसा कोई क़दम उस ख़तरे को बढ़ाता है और वहां तक पहुंचा सकता है जहां केवल युद्ध ही सामने हो।
यह डर तब और भी बढ़ जाता है जब दोनों मुल्कों के पास परमाणु हथियार हों। पाकिस्तान ने इन हथियारों के इस्तेमाल किए जाने के संकेत भी कई बार दिए हैं। बहरहाल, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पुलवामा हमले के बाद "गंभीर चिंता" जताते हुए ट्वीट कर उन आरोपों को ख़ारिज किया है, "जिसमें बिना किसी जांच के भारत सरकार और भारतीय मीडिया में इस हमले से पाकिस्तान का संबंध जोड़ा जा रहा है।"
हालांकि आत्मघाती हमले की जैश-ए-मोहम्मद ने जिस तरह से ज़िम्मेदारी ली है और उसका संस्थापक मसूद अज़हर जिस तरह से पाकिस्तान में आज़ाद घूम रहा है, उसे देखते हुए भारत के लोगों को किसी और सबूत की ज़रूरत ही नहीं है। वैसे पाकिस्तानी सेना की नियंत्रण वाली ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) को भी जैश-ए-मोहम्मद से समस्या रही है।
दरअसल जैश, लश्कर-ए-तैयबा जैसा चरमपंथी संगठन नहीं है जो पाकिस्तान की सेना के निर्देशों को मानता रहा है। जैश पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला करने से भी नहीं हिचकता रहा है। 2003 में संगठन पाकिस्तान के सैन्य शासक परवेज़ मुशरर्फ़ पर दो बार बेहद ख़तरनाक हमला कर चुकी है।
बावजूद इसके जैश की तरफ पाकिस्तानी सेना ने अपनी आंखें बंद रखी हैं तो इसकी वजह कश्मीर में तनावपूर्ण स्थिति बनाए रखने में संगठन की उपयोगिता है। हालांकि अब ये देखना होगा कि जैश-ए-मोहम्मद पर क्या कार्रवाई होती है- इसको लेकर भारत की ओर से काफ़ी दबाव होगा और चीन से भी ये संभव है क्योंकि माना जा रहा है कि चीन अब अज़हर की हिमायत करने से काफ़ी आगे निकल चुका है।
ऐसे में संभव है कि इस समूह को पाकिस्तान में बैन कर दिया जाए। भौगोलिक राजनीति से इतर, इस आत्मघाती हमले को स्थानीयता के अहम पहलू से भी देखना होगा। बीते एक साल के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों ने करीब 300 कश्मीरी चरमपंथियों को मारा गया है, इनमें से ज़्यादातर दक्षिण कश्मीर के थे, जहां ये हमला हुआ है।
ऐसे में चरमपंथी समूहों के सामने अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए बड़े हमले करने की ज़रूरत भी बन गई है। इस इलाके में जिन चरमपंथी संगठनों का दबदबा है उनमें हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन, आत्मघाती हमलों को गैर-इस्लामिक मानता है। ऐसे में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा पर ही ऐसे हमले करने की ज़िम्मेदारी है।
भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए ये गंभीर ख़ुफ़िया नाकामी है। पुलिस और ख़ुफ़िया एजेंसियों को इस सवाल का सामना तो करना ही पड़ेगा कि जैश-ए-मोहम्मद, भारतीय सेना के इतने बड़े काफिले पर हमला करने में कैसे कामयाब रहा, जिसमें विस्फोटकों की भारी मात्रा से लदी कार के इंतज़ाम से लेकर उसकी निगरानी, हमले का पूर्वाभ्यास और कई स्तरों वाली सुरक्षा व्यवस्था में सेंधमारी से जुड़े सवाल शामिल होंगे।
फिलहाल, भारत सरकार विकल्पों पर विचार कर रही है। आर्थिक तौर पर उसने क़दम उठाते हुए पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने का फ़ैसला कर लिया है, जिससे पाकिस्तान को कारोबारी फ़ायदे नहीं मिल पाएंगे। इसके अलावा भारत सरकार पाकिस्तान को राजनीतिक तौर पर भी अलग-थलग करने की बात कह रही है। लेकिन जब तक जैश-ए-मोहम्मद पर पाकिस्तान कोई कार्रवाई नहीं करता, तब तक ऐसे और हमले होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है)