उत्तरी आयरलैंड की राजधानी बेलफ़ास्ट की सड़कों से हर रोज़ाना जाने कितने लोग गुज़रते हैं, लेकिन इनमें से शायद कुछ ही ये बात जानते हों कि उनके पैरों तले 170 साल पुराना एक राज़ छिपा है। इस जगमगाते शहर के ठीक नीचे बहती है, फ़ारसेट नदी। इस नदी के नाम पर ही इस शहर का नाम बेलफ़ास्ट रखा गया है। बेलफ़ास्ट की तरक़्क़ी और समृद्धि में भी इस नदी का अहम रोल है। लेकिन आज ये नदी दुनिया की नज़रों से ओझल होकर ख़ामोशी से ज़मीन के नीचे बहती है।
आयरलैंड के प्राचीन इतिहास के प्रोफ़ेसर और 'रिवर ऑफ़ बेलफ़ास्ट: ए हिस्ट्री' के लेखक डेस ओ राइली कहते हैं कि शहर के व्यापारिक केंद्र हाई स्ट्रीट में अगर आज किसी से इस नदी के बारे में पूछा जाए, तो हो सकता है कोई भी इसका जवाब ना दे पाए। आज लोग ये भूल चुके हैं कि बेलफ़ास्ट को शहर की शक्ल में पनपने का मौक़ा फ़ारसेट नदी ने ही दिया था।
आज जहां शहर के बड़े दौलतमंद इलाक़े हाई स्ट्रीट और विक्टोरिया स्ट्रीट आबाद हैं, वहां कभी रिवर लगान और फ़ारसेट नदी का मुहाना होता था। आज यहां मशहूर सेंट जॉर्ज चर्च है। लेकिन ये चर्च भी एक प्राचीन गिरजाघर की जगह पर बनाया गया है। बताया जाता है कि आठ सौ साल पहले श्रद्धालु यहां प्रार्थना करने आते थे। उनकी ख़्वाहिश होती थी कि वो फ़ारसेट नदी सुरक्षित तौर पर पार कर लें।
चूंकि इस नदी के मुहाने पर अक्सर दलदली मिट्टी जमा रहती थी और पानी का उफान तेज़ रहता था। जब पानी की लहरें कमज़ोर पड़ती थीं, तभी इसमें नावें दौड़ाई जाती थीं।
1600 में स्कॉटलैंड और इंग्लैंड से ईसाई धर्म के प्रोटेस्टेंट फ़िरक़े को मानने वाले लोगों ने यहां आना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उन्होंने फ़ारसेट नदी पर घाट बनाने शुरू कर दिए। हाई स्ट्रीट में आज बड़ी-बड़ी दुकाने हैं, लेकिन एक दौर था जब यहां जहाज़ चलते थे। बड़े-बड़े जहाज़ इन घाटों पर आकर रूकते थे। जिनमें शराब, मसाले और तंबाकू लदा होता था।
आबाद करने वाले को किया बर्बाद
बड़े जहाज़ों से सामान उतारने के बाद छोटी-छोटी नौकाओं से पूरे आयरलैंड में पहुंचाया जाता था। स्कॉटलैंड और इंग्लैंड से जितने लोग यहां आए वो सभी व्यापारी वर्ग से थे। लिहाज़ा उनके यहां आने से बेलफास्ट में व्यापारिक गतिविधियां बड़े पैमाने पर होने लगीं। शराब की फ़ैक्ट्रियां, कपड़ा मिलें और अन्य फ़ैक्ट्रियां खुलने लगीं। इन फ़ैक्ट्रियों ने ही आगे चलकर यहां औद्यौगिक क्रांति को जन्म दिया।
अठारहवीं सदी के अंत तक फ़ारसेट नदी ने ही बेलफ़ास्ट को दुनिया का सबसे ज़्यादा कपड़ा तैयार करने वाला शहर बना दिया। उस दौर में यहां की कपड़ा फैक्ट्रियों में क़रीब 50 हज़ार लोग काम करते थे जो फ़ारसेट नदी के ज़रिए ही बेलफ़ास्ट तक पहुंचते थे। इस नदी ने शहर की तस्वीर ही बदल कर रख दी थी लेकिन आज ये नदी एक गटर से ज़्यादा कुछ नहीं।
'हिडेन हिस्ट्री बिलो अवर फ़ीट: द आर्कियोलॉजिकल स्टोरी ऑफ़ बेलफ़ास्ट' के लेखक रुआइरी ओ बोइल का कहना है जिन फ़ैक्ट्रियों को फ़ारसेट नदी ने आबाद किया था, उन्हीं फ़ैक्ट्रियों के कचरे ने इसे तबाह कर दिया। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत होते होते, नदी से इतनी ख़तरनाक बदबू आने लगी कि शहर की कमिश्नरी ने इसे पूरी तरह बंद करने का आदेश दे दिया और 1848 में दस लाख ईंटो से नदी को दफ़न कर दिया गया।
'अहमियत' के लिए अभियान
शहरी पुरातत्त्वविद ओ-बोइल का कहना है कि भले ही ये नदी आज किसी को नज़र ना आती हो, लेकिन इसका ये मतलब हरगिज़ नहीं है कि ये ख़त्म हो चुकी है। ज़मीन के नीचे ये आज भी बहती है, लेकिन एक गटर की शक्ल में।
आयरलैंड के इतिहास में छोटी-छोटी नदियों का बड़ा योगदान रहा है। लोगों को इन नदियों की अहमियत से वाक़िफ़ कराना बोइल का मिशन बन चुका है। इस काम में वो अकेले नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों में नज़रअंदाज़ कर दी गई नदियों को फिर से ज़िंदगी देने की कोशिश शुरू कर दी गई है। हाल ही में बेलफ़ास्ट सिटी काउंसिल ने फ़ारसेट नदी की अहमियत का जश्न मनाने के लिए पूरे शहर में कार्यक्रम का आयोजन किया था।
प्रोफ़ेसर ओ-बोइल का कहना है कि एक दौर था जब फ़ारसेट नदी के किनारे लोगों की चहल पहल रहती थी। चूंकि सारी व्यापारिक गतिविधियां यहीं से शुरू होती थीं, लिहाज़ा यहां बड़े-बड़े गोदाम, रेस्टोरेंट और सराय आबाद होने लगे। हाई स्ट्रीट की तंग गलियों में बड़े-बड़े व्यापारी रहते थे। लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए नदी को पार करना पड़ता था। इसीलिए यहां एक छोटा सा फुट ब्रिज बनाया गया। ब्रिज स्ट्रीट का नाम इसी फुटब्रिज के नाम पर है।
हाई स्ट्रीट की पतली गलियां मल्लाहों के लिए बांध का काम करती थीं। यहां भारी संख्या में मल्लाह रहते थे। इसीलिए हाई स्ट्रीट में जितने पुराने पब हैं उनमें ज़्यादातर के समुद्री नाम हैं- जैसे मरमेड इन।
उत्तरी आयरलैंड के डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्फ्रास्टक्चर रिवर के इंजीनियर फ़्रैंकी मेलन के मुताबिक़ जबसे इस नदी को पाटा गया है तब से अब तक डिपार्टमेंट के सिर्फ़ दो ही मेम्बर्स को इसके अंदर जाकर इसे देखने की इजाज़त मिली है। मेलन बताते हैं कि नदी पर जिस तरह की पतली ईंटो से मेहराबें बनाई गई हैं वो महज़ आधा मीटर मोटी हैं। इनके ऊपर लकड़ी के खूंटे लगा दिए गए हैं। 1800 में इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल काफ़ी मुश्किल था। लेकिन अच्छी बात ये है कि इतना वक़्त गुज़र जाने के बाद भी ये सही सलामत है। सिर्फ़ एक हिस्से में थोड़ी सी दरार पड़ी है जहां से पानी रिस रहा है।
मेलन बताते हैं कि वर्षों पहले उनके पूर्वज इसी नदी के सहारे आयरलैंड की लिनेन फ़ैक्ट्री में काम करने आए थे। और फिर यहीं बस गए। इस नदी से जुड़ी बहुत सी कहानियां हैं। मेलन ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मानते हैं कि उन्हें आयरलैंड में बसाने वाली नदी को वो देख सकते हैं। लेकिन आने वाली नस्लें तो शायद इसका नाम भी ना सुन पाएं।