एंटीइनकमबेंसी फेक्टर को भांपा : भाजपा और जदयू दोनों ने समय रहते बिहार की जनता के मूड को भांप लिया था। दोनों ही दलों ने इसी हिसाब से चुनावी रणनीति तैयार की। भाजपा अगर नीतीश को छोड़ देती तो भी जीत संभव नहीं थी और उनके साथ भी चुनाव लड़ने पर हार दिख रही थी। ऐसे में भाजपा ने नीतीश को साथ लिया लेकिन चिराग पासवान पर भी हमला नहीं बोला। नतीजतन चिराग की लोजपा ने अधिकांश भाजपा उम्मीदवारों का विरोध नहीं किया और उनकी जीत का रास्ता आसान हो गया। नीतीश के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी इसलिए उनकी सीटें कम आई।
भाजपा ने नहीं किया नीतीश के चेहरे का इस्तेमाल : भाजपा को जैसे ही नीतीश कुमार से जनता की नाराजगी का अहसास हुआ उसने चुनाव में नीतीश के चेहरे से दूरी बनाई। इससे उन्होंने अपने मतदाताओं को बनाए रखने में मदद मिली। उधर नीतीश को वोटरों के गुस्से का सामना करना पड़ा और उसे 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। चुनाव में भाजपा को 21, वीआईपी को 4 और हम को 3 सीट का लाभ हुआ और इस नुकसान की भरपाई हो गई।
पीएम मोदी का चेहरा : बिहार में राजग के बेहतरीन प्रदर्शन का श्रेय पीएम मोदी को दिया जा रहा है। महागठबंधन के पास नरेंद्र मोदी के कद का कोई नेता नहीं था और उन्होंने इसका भरपूर फायदा भी उठाया। उन्होंने न सिर्फ तेजस्वी यादव पर बड़े हमले किए बल्कि लालू प्रसाद यादव के राज की खामियों और नीतीश कुमार के शासन की खूबियों को भी लोगों तक पहुंचाया। लोगों को उनकी 'जंगलराज के युवराज' वाली बात समझ में आ गई और बिहार में नीतीश राज का रास्ता साफ हो गया।