आज से तकरीबन दस दिन पहले जब मैं बिहार चुनाव में सबसे अधिक चर्चा में रहे राज्य के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय से जेडीयू में शामिल होने के बाद बात कर रहा था तब उन्होंने बहुत ही सहज ढंग से कहा था कि “देखिए विकास भाई बहुत सी अड़चनें है राजनीति में, चारों तरफ मकड़जाल ऐसा हैं कि हमारे जैसा आदमी कहां तक और कितनी दूर तक जा पाएगा?
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से ठीक पहले राज्य के डीजीपी पद को छोड़ कर वीआरएस लेने वाले गुप्तेश्वर पांडेय ने जब यह बातें मुझसे कहीं तो इन बातों पर मैंने ज्यादा गौर नहीं किया क्योंकि जब गुप्तेश्वर पांडेय यह बातें मुझसे कह रहे थे उससे कुछ घंटे पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने खुद उनको जेडीयू की सदस्यता दिलाई थी और उनका चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा था।
जेडीयू में शामिल होने के बाद “वेबदुनिया” से बातचीत में गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा था कि “नीतीश कुमार जी पर विश्वास कर राजनीति में आए है और वहीं अब मुझे जैसा काम देंगे और मेरे लिए वहीं तय करेंगे कि मुझे क्या करना हैं क्या नहीं करना है। अब नीतीश जी सब आगे का तय करेंगे कि किस तरह हमारा उपयोग करना है”।
ऐसे में गुप्तेश्वर पांडेय को जेडीयू की तरफ से टिकट नहीं मिलना और फिर उनका फेसबुक पर भावुक पोस्ट लिखकर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का एलान करना काफी चौंकाने वाला है। गुप्तेश्वर पांडेय ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा कि “अपने अनेक शुभचिंतकों के फ़ोन से परेशान हूँ। मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूँ। मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूँगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें। मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है”।
जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखने वाले गुप्तेश्वर पांडेय एक बार फिर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते रह गए। ऐसा नहीं है कि गुप्तेश्वर पांडेय चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे,“वेबदुनिया” को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि शायद की कोई ऐसा जिला हो जहां से लोगों ने उनसे अपने यहां से चुनाव लड़ने की मांग नहीं की हो, रोज हजारों की संख्या फोन कॉल आ रहे है,लोग खुद आकर उनसे अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कह रहे है।
कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहरता है और बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के खाकी छोड़ खादी पहनने के मामले में भी इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। 2009 में वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले गुप्तेश्वर पांडेय भाजपा से टिकट नहीं जुटा सके थे और तकरीबन नौ महीने बाद वापस नौकरी में लौट आए थे।
सुशांत सिंह मौत के बाद अपने बयानों देश भर में सुर्खियों में आए फिर विधानसभा चुनाव की तरीखों के एलान से ठीक पहले बिहार डीजीपी का पद छोड़कर वीआरएस लेने वाले गुप्तेश्वर पांडेय एक अदद टिकट का जुगाड़ नहीं कर सके है ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि क्या बिहार के ‘रॉबिनहुड’ पांडेय जी सियासी “एनकाउंटर” के शिकार बन गए।