वैज्ञानिकों का कहना है कि हम एक व्यक्ति के लिंग के बारे में सूंघकर पता कर सकते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य अवचेतन रूप से सेक्स की पहचान फरमोंस की सूक्ष्म गंध से करते हैं। पुरुष विशेष रूप से आकर्षित करने वाले व्यक्ति का इसी तरीके से पता लगाते हैं। अगर हम डियोडरेंट, परफ्यूम और धुले हुए कपड़ों की गंध को दूर कर लें तब भी हममें से ज्यादातर लोग एक विशिष्ट और विभिन्न गंध की ओर आकर्षित होते हैं और विशेष रूप से तब हम अपने लिए किसी साथी की तलाश करते हैं।
पहले के अध्ययनों में यह बताया गया था कि विभिन्न प्रकार के लिंग वाले लोग सेक्स फरमोंस पैदा करते हैं, लेकिन नई शोध से यह बात सामने आई है कि इन फरमोंस से हमारे अवचेतन में कुछ आकर्षण पैदा होता है। शोध में यह बात सामने आई है कि पुरुष विशेष रूप से सूंघकर अपने पसंदीदा लिंग की ओर आकर्षित होते हैं क्योंकि हमें यह पता लग जाता है कि गंध वाले व्यक्ति का लिंग क्या है। इन परीक्षणों में यह बात सामने आए हैं कि पुरुष न केवल महिलाओं की गंध को पहचान लेते हैं वरन समलैंगिक पुरुष दूसरे समलैंगिकों को भी पहचान लेते हैं।
इस अध्ययन के दौरान चाइनीज अकादमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिक और शोध के प्रमुख शोधकर्ता वेन झाओ ने कहा कि हमारे निष्कर्ष यह बताते हैं कि मनुष्यों के सेक्स फरमोंस मौजूद रहते हैं। हमारी नाक शरीर से होने वाले स्राव के आधार पर ही लिंग की पहचान कर लेती है जब इसके बारे सचेतन स्तर पर भी नहीं सोचें। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि पुरुषों में सक्रिय स्टेरॉयड एंडोस्टेडीनेंस और महिलाओं में एस्ट्राटेट्रानोल यह तय करती है कि हमारी गतिविधियां अधिक पुरुषोचित हैं या अधिक स्त्रियोचित।
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डेली मेल ऑनलाइन में विक्टोरिया वूल्सटन के एक लेख में बताया गया है कि पहले के अध्ययनों से यह पता लगा है कि मनुष्य के वीर्य और बगलों में एंड्रोस्टैडिनोन महिलाओं में एक सकारात्मक मूड बनाता है, लेकिन यह बात पुरुषों में नहीं पैदा होती है। इसी तरह एस्ट्राटेट्रानोल महिलाओं के मूत्र में पाया जाता है और इसका भी पुरुषों पर समान असर होता है। लेकिन, अभी भी यह बात स्पष्ट नहीं है कि क्या ये रसायन वास्तव में यौन संकेतकों का काम करते हैं? पर नए अध्ययनों के तहत पुरुष और महिलाओं, जोकि दोनों ही प्रकार के थे (कहने का अर्थ विषमलिंगी और समलिंगी थे), से कहा गया था कि एक स्क्रीन पर वे पॉइंट लाइट वॉकर्स (पीएलडब्ल्यूज) की गति को देखें।
पीएलडब्ल्यूज पंद्रह डॉट्स (बिंदुओं) से 15 बिंदुओं को देखने को कहा गया जो कि मानव शरीर के 12 बड़े जोड़ों के स्थान हैं और इनके साथ ही यह कूल्हा, सीना और सिर के जोड़ भी शामिल थे। इस अध्ययन में शामिल प्रत्येक व्यक्ति से पूछा गया कि डिजिटली मॉर्फ्ड चाल अधिक पुरुषोचित थी या स्त्रियोचित? इन भाग लेने वाले लोगों ने इस काम को कई दिनों की श्रृंखला के बाद पूरा किया और उन्हें इस दौरान पुरुष या महिला फरमोंस अथवा लोंग की गंध वाले एक कंट्रोल सॉल्यूशन (मिश्रण) के सम्पर्क में लाया गया। पुरुष फरमोंस को नियमित तौर पर विषमलिंगी महिलाओं को आकृष्ट किया और इससे पुरुष प्रभावित नहीं हुआ था।
इसी तरह से एस्ट्राटेट्रानोल की गंध ने विषमलिंगी पुरुषों को आकृष्ट किया, लेकिन इससे महिलाएं प्रभावित नहीं हुईं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि समलिंगी पुरुषों ने विषमलिंगी पुरुषों के प्रति वैसा ही आकर्षण अनुभव किया जैसा कि विषमलिंगी महिलाओं ने पुरुषों के प्रति महसूस किया था। उभयलिंगी या समलिंगी महिलाओं की उसी गंध के प्रति रिस्पांस ठीक वैसे ही थे जैसे कि विषमलिंगी पुरुषों और महिलाओं के। वेन झाओ का कहना है कि यह अध्ययन इस बात का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण है कि दो मनुष्य स्टेरॉयड्स परस्पर विरोधी सूचना देते हैं जो कि दो विभिन्न सेक्स ग्रुपों पर विभिन्न प्रकार से प्रभावी है। साभार - डेली मेल