छोटी सी गोली जिसने तालिबान को हराने में मदद की

मंगलवार, 27 मार्च 2018 (18:27 IST)
काबुल। यौन क्षमता बढ़ाने के काम आने वाली एक छोटी सी गोली वियाग्रा ने तालिबान के कट्‍टर लड़ाकुओं को हरवाने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। वैसे तो इस गोली का नाम सारी दुनिया के पुरुष याद रखते हैं कि लेकिन तालिबान लड़ाकों से मुकाबला जीतने के लिए यह गोली बहुत काम आई।
 
उल्लेखनीय है कि 27 मार्च 1998 को अमेरिका में वियाग्रा फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से स्वीकृति मिली थी। प्रसिद्ध दवा कंपनी फाइजर की इस दवा को टेंशन दूर करने के लिए बनाया गया था लेकिन इसके प्रभाव से लोगों की कुछ दूसरी तरह की टेंशन में आराम मिलने लगा और यह सारी दुनिया में सर्वाधिक बिकने वाली गोलियों में शामिल हो गई।  
 
बेहतर होगा कि आप हल्की बैंगनी रंग की इस गोली से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें भी जान लें। इस गोली ने मुस्लिम कट्‍टरपंथी गुट तालिबान को खत्म करने में मदद की हालांकि यह अभी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ इलाकों में सक्रिय है। वियाग्रा ने अफगानिस्तान के युद्ध में अमेरिका की मदद की है। 
 
तालिबान के खिलाफ जासूसी और मुखबिरी करवाने के लिए सीआईए ने कई बड़ी संख्‍या में अफगानों को वियाग्रा की रिश्वत दी। इन अफगान कबीलों के मुखियाओं की कई बीवियां होती हैं और सीआईए का मानना है कि वे फ्री की वियाग्रा पाकर खुश हो जाते थे।
 
दुनिया की सबसे ज्यादा नकली बनने वाली गोली भी है वियाग्रा। वियाग्रा आधिकारिक तौर पर दुनिया की सबसे ज्यादा नकल की जाने वाली गोली है। असली दवा के एक पत्ते में 4 ही गोलियां होती हैं। न कम न ज्यादा। इसी तरह इसका आकार भी हीरे की तरह होता है।
 
ये फूलों को ताजा रखती है। जानकारों का कहना है कि वियाग्रा की एक खासियत यह है कि इसकी थोड़ी सी मात्रा का घोल बनाकर पौधों में या फूलदान में रखे फूलों पर डाल दिया जाए तो फूल खिले-खिले रहते हैं और उनकी डंडियां तनी रहती हैं।
 
इस गोली ने शेरों और गैंडों की जान बचाने में उल्लेखनीय काम किया है। बाजार में वियाग्रा की बिक्री से पहले पुरुषों की यौन क्षमता को बढ़ाने के लिए गेंडें के सींगों या शेरों की हड्‍डियों की मदद ली जाती थी। वियाग्रा आने के बाद से इन दोनों जानवरों की जान बची।
 
इसकी अन्य खूबियां भी इस प्रकार हैं। यह गोली आपके दिमाग पर असर नहीं डालती और वियाग्रा सिफ शरीर पर असर करती है। लोगों के दिमाग और हार्मोन्स की कमी पर इसका कोई असर नहीं होता। यह सिर्फ खून का प्रवाह बढ़ाती है। यह गोली 80 प्रतिशत आदमियों पर असर करती है। डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में इसका असर काफी कम हो जाता है। कुछ प्रारंभिक शोधों से पता लगता है कि ये गोली कैंसर के इलाज में भी काम में आ सकती है
 
विदित हो कि 1990 के दशक के शुरुआत में छाती में संक्रमण के इलाज के लिए एक नई दवा 'सिल्डेनाफिल' पर एक्सपेरिमेंट किया जा रहा था। जब इस दवा से छाती के दर्द को कम करने में तो कोई मदद नहीं मिली लेकिन इससे पुरुषों को साइड इफेक्ट का सामना जरूर करना पड़ा। इसके चलते उन्हें निजी अंगों में इरेक्शन की समस्या का सामना करना पड़ता था।
 
हालांकि इस एक्सपेंरिमेंट में शामिल किए गए पुरुषों ने बेहतर सेक्स लाइफ की बात बताई। इसके बाद फाइजर ने चेस्ट इंफेक्शन पर इलाज की जगह नपुंसकता की समस्या, जिससे 40 के बाद की उम्र के लगभग एक तिहाई पुरुष जूझ रहे होते हैं, पर रिसर्च करने की ठानी। और आखिरकार 27 मार्च 1998 को यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन एजेंसी (एफडीए) ने इस ट्रीटमेंट को हरी झंडी दिखाई और अप्रैल में छोटी सी दिखने वाली नीली गोली अमेरिकी मेडिकल स्टोरों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगी।
 
इस दवा को सफलता भी तुरंत मिली। बिक्री के पहले दो हफ्ते में ही अमेरिका में इसको लेकर 150,000 प्रिस्क्रिप्शन लिखे गए। इसके अलावा दुनिया में बिकने से पहले ही वियाग्रा ने दुनियाभर का ध्यान खींचा। इसराइल, पोलेंड और सऊदी अरब में तो इसकी ब्लैक मार्केटिंग भी होने लगी और इसे अमेरिका में बिकने वाली कीमत से पांच गुना ज्यादा कीमत पर खरीदा जाने लगा। उस समय अमेरिका में वियाग्रा की कीमत 10 डॉलर थी। हालांकि कई दवा कंपनियों ने इसकी नकल करने की भी कोशिश की। साल 2011 में फाइजर के सर्वे के मुताबिक ऑनलाइन खरीदी जाने वाली 80 प्रतिशत वियाग्रा नकली होती है।

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