बुढ़ापे में गोविंदा के बुरे दिन...

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मुंबई की फिल्मी दुनिया में बुढ़ापा पाप है। उम्र भले ही बढ़ जाए, चेहरे की चमक कम नहीं होना चाहिए। जिस्म की कसावट कायम रहना चाहिए। फिर चाहे प्लास्टिक सर्जरी कराइए या जिम में आठ घंटे बिताइए।

सलमान, शाहरुख और आमिर चालीस पार हैं, पर पच्चीस के लगते हैं और जरूरत पड़ने पर बीस साल के लड़के का रोल भी कर लेते हैं। मगर गोविंदा ऐसे नहीं हैं। वे पैंतालीस से ज्यादा के हैं और पचास के आसपास लगते हैं।

नाटा कद। देसी खान-पान। कहते हैं कि शूटिंग के दौरान जब तमाम कलाकार हेल्दी खाना खाते थे, गोविंदा अपनी माँ के हाथ का अचार और पराठे भकोसा करते थे। थोड़े से मोटे तो वे पहले से ही थे, बाद में और हो गए। कसरत की कमी ने चेहरे पर भी बुढ़ापे के निशान बना दिए। तोंद किसी भी तरह के कपड़ों से नहीं छुपती।

राजेश खन्ना भी उतार के दिनों में गंजे और मोटे हो गए थे। कई फिल्में उन्होंने ज्यादा वजन और गंजे सिर के ही साथ की। नतीजा यह हुआ कि फिल्में बुरी तरह पिटीं। हिन्दी भाषी दर्शकों और दक्षिण भारतीय अहिन्दी भाषी दर्शकों में फर्क है। सबको पता है कि रजनीकांत बूढ़े हैं, गंजे हैं, विग लगाते हैं। मगर वे असल रजनीकांत को नहीं, पर्दे पर दिखने वाले चमत्कारी रजनीकांत को चाहते हैं। हमारे यहाँ बूढ़ा अभिनेता नहीं चलता।

गोविंदा अभी एक फिल्म में आ रहे हैं। फिल्म का नाम ही उनकी उम्र का पता देता है। नाम है - "नॉटी एट फोर्टी"। जगमोहन मूँदड़ा की इस फिल्म में गोविंदा विदेश में बसे चालीस साल के ऐसे अधेड़ हैं जो वास्तविक अर्थों में कुँवारा है। जिसे अंग्रेजी में कहते हैं वर्जिन...। मगर इसे शादी करना है।

मान्यता यह है कि पुरुष चालीस साल की उम्र में एक बार शरारती हो जाता है। जैसे दीये की लौ बुझने से पहले भभकती है, उसी तरह मर्द भी बुझने या मंद पड़ने से पहले एक बार भभकता है। इसी को कहते हैं नॉटी एट फोर्टी...। जाहिर है यह कहावत अंग्रेजी की है और मुमकिन है अंग्रेज या किसी और विदेशी कौम के लोग चालीस की उम्र में शरारती होते हों।

अपने यहाँ तो चालीस की उम्र में लोग अपने बच्चों की शादी की चिंता करने लगते हैं, शरारत कहाँ से करेंगे। तीस साल की उम्र से जहाँ मानसिक बुढ़ापा आने लगता है, वहाँ चालीस की उम्र में इश्कबाजी कैसे होगी?

जरूरी नहीं कि ये कहावत भारतीय संदर्भ में भी उतनी ही सही हो। हाँ कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जो कभी बूढ़े नहीं होते। मगर ये बात गोविंदा के लिए ठीक नहीं है। वे बूढ़े हो गए हैं।

काश कि वे अपने चेहरे को उस तरह लिफ्ट करवा लेते जैसे शेखर सुमन ने कराया है। काश कि वे उस तरह जिम जाते जैसे सलमान जाते हैं। काश कि उनमें फिट रहने और रोल के हिसाब से अपने को टोन करने की वैसी लगन होती जैसी आमिर खान में है। गोविंदा आलसी और लापरवाह रहे। उन्होंने यही सोचा कि अभिनय के आगे इन सबका क्या काम? मगर फिल्म एक अलग ही तरह का आर्ट है। इसमें आपकी तस्वीर का महत्व ज्यादा है।

गोविंदा का जगमोहन मूँदड़ा की फिल्म करना ऐसा है जैसे सेना का रिटायर्ड मेजर किसी स्कूल का सिक्योरिटी इंचार्ज बन जाए। जगमोहन मूँदड़ा हास्य फिल्म बना रहे हैं ये ठीक है, मगर उनकी फिल्म में गोविंदा हैं, ये ठीक नहीं है। फिल्म विश्व कप के दौरान कभी भी लग सकती है। गोविंदा को इस तरह देखना उनके चाहने वालों के लिए दुखद है।

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