ऑनलाइन गेमिंग के ख़तरों से आगाह करता है नाटक- 'ब्लू व्हेल'
ऑनलाइन गेमिंग की लत ख़तरनाक हो सकती है। टास्क पूरा करने की ज़िद जान भी ले सकती है। एंड्रॉयड मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे बच्चे कहीं खतरों का खेल तो नहीं खेल रहे? इसी थीम पर आधारित नाटक- 'ब्लू व्हेल, एक ख़तरनाक खेल' का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी), दिल्ली में मंचन किया गया।
सीनियर जर्नलिस्ट शकील अख़्तर के लिखे इस नाटक का निर्देशन बाल रंगमंच के मशहूर निर्देशक हफीज़ खान ने किया। एनएसडी के चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप के तहत खेले गए इस नाटक में 23 बाल कलाकारों ने हिस्सा लिया। नाटक की कोरियोग्राफी की कैलाश चौहान ने और सह-निर्देशन सुनील शर्मा ने किया। संगीत भूपेन्द्र देवकोटा (एसडी) ने दिया। मंच सज्जा कलीम जाफर और कमल कुमार की थी। ध्वनि और प्रकाश का संयोजन राघव प्रकाश मिश्रा और नितिन कुमार ने किया था।
शो में शामिल हुए प्रमुख लेखक-कलाकार
नाटक के प्रदर्शन में देश की एकमात्र महिला दास्तानगोई फौज़िया और सुपरिचित कवि, लेखक अपूर्व शिंदे विशेष रूप में से मौजूद थे। उन्होंने नाटक की प्रशंसा की व कलाकारों को थिएटर वर्कशॉप संबंधी सर्टिफिकेट प्रदान किए। स्कूली बच्चों के लिए इस नाटक के प्रदर्शन को ज़रूरी बताया।
नाटक में एनएसडी के रजिस्ट्रार प्रदीप के मोहंती, वरिष्ठ निर्देशक अखिलेश खन्ना, वेबपोर्टल हमरंग.कॉम के एडिटर और कहानीकार हनीफ़ मदार, दिल्ली के वरिष्ठ रंगकर्मी और दास्तानगोई के 100 से ज़्यादा शोज़ करने वाले मनोज सिकंदर धींगड़ा, लेखक और साइबर क्राइम एक्सपर्ट विवेक अग्रवाल और सीनियर जर्नलिस्ट, लेखक पं. मुस्तफ़ा आरिफ ने भी उपस्थिति दर्ज की। अभिमंच पर खेले गए इस नाटक को देखने दिल्ली रंगमंच के कलाकारों के साथ ही कई स्कूलों के बच्चे भी पहुंचे।
'विनर बनो या दुनिया छोड़ दो'
यह नाटक एक स्कूल में साथ-साथ पढ़ने वाले बच्चों अमाना (अहाना चंदेल) और करण (सिद्धांत शर्मा) जैसे किरदारों के इर्द-गिर्द घूमता है। अमाना और करण दोनों दोस्त हैं। दोनों के पास एंड्रॉयड मोबाइल है। दोनों ऑनलाइन गैमिंग के शौकीन हैं, मगर वे गेम के डेअरिंग टास्क को पूरा करने के खेल में अपनी जान गंवा बैठते हैं। ब्लू व्हेल गेम खेल रहा करण तो आख़िर तक यही कहता है- 'या तो विनर बनो या दुनिया को छोड़ दो!'
नाटक में सिर्फ बिगड़ैल बच्चों के किरदार भर नहीं है। इनमें अनुपम, सुयश और सना (अनुपम गुप्ता, रुद्र प्रताप, एतव्या) जैसे समझदार बच्चे भी हैं, जो मोबाइल, एप्स, ऑनलाइन गेम्स के साथ ही टेक्नोलॉजी के सुरक्षित उपयोग के बारे में जानते हैं। वेसाइबर क्राइम के खतरों से स्कूल के दूसरे बच्चों को बचाने के लिए चुपचाप एक मिशन की तरह काम करते रहते हैं।
(छायाकार : दीपक कुमार, रानावि, दिल्ली)
कैसे तैयार हुआ नाटक ब्लू व्हेल?
इस नाटक का बैकग्राउंड देश में 'ब्लू व्हेल' की वजह से बच्चों और नौजवानों के कथित सुसाइड की घटनाओं से जुड़ा है। मीडिया में आए दिन इस ऑनलाइन गेम की वजह से सुसाइड की खबरें आ रही हैं। कुछ मामलों में बच्चों के हाथ पर ब्लैड से बने 'ब्लू व्हेल' के निशान मिले हैं या उन्होंने खुद इस गेम में फंसकर मानसिक रूप से टूट जाने के बारे में बताया है। आधिकारिक स्तर पर पुष्टि तो नहीं हुई है लेकिन माना जा रहा है देश में अब तक 13 बच्चे इस गेम की वजह से सुसाइड कर चुके हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान इसे नेशनल प्रॉब्लम बताया था। केंद्र और राज्य सरकारें भी इस मामले में ज़रूरी कदम उठा रही हैं। इन हालात में ऐसे कार्यक्रम की ज़रूरत महसूस हो रही थी, जो बच्चों को इस तरह के खेलों से सुरक्षित रख सके। इसी बात के मद्देनज़र, चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप की निर्देशन टीम ने बच्चों के साथ मिलकर यह नाटक तैयार किया।
इंटरटेन्मेंट के साथ एजुकेशनल ड्रामा
मनोरंजन के साथ शिक्षा इस नाटक की बड़ी खूबी है। नाटक में 8 से लेकर 14 साल तक की उम्र के बच्चे अलग-अलग भूमिकाओं में नज़र आते हैं। प्रस्तुति के स्तर पर नाटक को दिलचस्प बनाए रखने के लिए निर्देशक टीम ने बेहद संतुलित तरीके से काम किया है। दृश्यों के संयोजन और गीत-संगीत ने भी इस नाटक को गति दी। इस तरह यह नाटक इंटरटेन्मेंट के साथ ज़रूरी संदेश देने में कामयाब रहा। इस नाटक को देखते वक्त भी दर्शक रोते, हंसते, ताली बजाते दिखे व वे बच्चों के अभिनय से प्रभावित हुए।
अहाना चंदेल, सिद्धांत शर्मा, अनुपम गुप्ता, रुद्र प्रताप और एतव्या के साथ ही नाटक में दक्ष आज़ाद, ईशिका पांडे, नरेन दत्ता, पूजा रजक, प्रियांशा आज़ाद, कृष सैनी, सिमर सग्गू, मुखी चक्रवर्ती, गार्गी सैनी, चहक राना, ऐशना त्रिवेदी, आरुषि सचान, छवि शर्मा, शगुन सिंह, आयुष कुमार, प्रथम खन्ना, आयुष्मान झा, अद्विक तनेजा और सोह्म गोयल ने भी सराहनीय काम किया।
स्कूली बच्चों के लिए ज़रूरी नाटक
इस नाटक के निर्देशक हफीज़ ख़ान बच्चों के रंगमंच के लिए 30 सालों से काम कर रहे हैं। वे बच्चों की कोई 150 वर्कशॉप कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमने कंफरटेबल ज़ोन से हटकर एक नए नाटक की रचना करने का प्रयास किया। नाटक का विषय बेहद प्रासंगिक है। अब इसके दूसरे शहरों में प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार की जा रही है।
एसोसिएट डायरेक्टर कैलाश चौहान और सुनील शर्मा ने कहा कि यह नाटक आम बच्चों की ज़िंदगी का आईना है। आज बच्चे घर और स्कूल में जैसा व्यवहार करते हैं, बोलते हैं, ग़लतियां करते हैं तथा वही सबकुछ इसमें है इसलिए इस नाटक को देखते समय दर्शक पहले सीन से जु़ड़ जाते हैं।
'ब्लू व्हेल' शकील अख़्तर का लिखा तीसरा नाटक है। इससे पहले वे निर्देशक हफीज़ ख़ान के साथ नाटक 'हेलो शेक्सपियर' लिख चुके हैं। वे कहते हैं कि 'ब्लू व्हेल' की स्क्रिप्ट पर काम करते हुए मुझे इसलिए अच्छा लगा, क्योंकि इस सब्जेक्ट के लिए बच्चे पहले से तैयार थे। वे खुद इसके बारे में सोच रहे थे इसलिए ड्रामा बनता चला गया। मुझे इस नाटक को लिखने को लेकर इसलिए भी खुशी है, क्योंकि यह नाटक आज की ज़रूरत है। अगर बच्चे सुरक्षित हैं, तो देश का भविष्य सुरक्षित है।
शकील अख़्तर 'इंडिया टीवी' में बतौर सीनियर एडिटर सेवारत हैं लेकिन थिएटर से जुड़े कलाकार होने की वजह से वे रंगमंच के लिए भी लिखते रहते हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश के कलाकारों के लिए एक प्रमोशनल वेबपोर्टल, इंदौर स्टूडियो.कॉम की संस्थापना भी की है।