कहने को तो सात अप्रैल को लाली की शादी में लड्डू दीवाना, मिर्जा जुलियट, मुक्ति भवन, ब्लू माउंटेंस और प्लेनेट ऑफ अवतार (डब) जैसी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ, लेकिन एक फिल्म में भी इतना दम नहीं है कि दर्शक इन्हें देखने के लिए टिकट खरीदें।
मल्टीप्लेक्स वालों ने तो एक या दो या तीन शो में इन फिल्मों को चलाना ही मुनासिब समझा। किसी तरह वे इन फिल्मों को खींच रहे हैं। ये फिल्में सिंगल स्क्रीन के लायक ही नहीं है, फिर भी जिन्होंने इन फिल्मों को लगाया उसमें से ज्यादातर ने दूसरे दिन ही फिल्म को उतार दिया।
इन फिल्मों में बड़े सितारे नहीं हैं। न ही इनका प्रचार-प्रसार हुआ है। फिल्म अच्छी हो तभी माउथ पब्लिसिटी काम करती है, लेकिन इसके लिए भी कुछ दर्शकों को फिल्म देखना पड़ती है। छोटे शहरों में तो इनमें से अधिकांश फिल्में रिलीज ही नहीं हुई। मुक्ति भवन की फिल्म समीक्षकों ने तारीफ जरूर की, लेकिन इससे दर्शक अप्रभावित ही रहे।
इन फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन बेहद कम रहे। सभी का जोड़ लगा लो तो भी करोड़ तक बात नहीं पहुंच पा रही है। बुरे हाल सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के हैं। पुरानी या डब फिल्मों का ही उन्हें सहारा है जिनके जरिये किसी तरह सप्ताह पूरा किया जाएगा। अगले सप्ताह फास्ट एंड फ्यूरियस 8 तथा बेगम जान प्रदर्शित होगी। कम से कम यह उम्मीद तो की जा सकती है कि इन फिल्मों जैसा हाल इन दोनों फिल्मों का नहीं होगा।