लो साहब, यमला पगला दीवाना फिर से भी फ्लॉप हो गई। यह बात सभी जानते थे सिवाय देओल्स को छोड़ कर। इस सीरिज की दूसरी फिल्म को रिजेक्ट कर दर्शकों ने अपना फैसला सुना दिया था कि अब बस करो, लेकिन देओल्स हैं कि मानते ही नहीं। तीसरी फिल्म भी बना डाली जो पहले शो से असफल हो गई।
देओल्स इसी भ्रम में जी रहे हैं कि तीनों देओल्स इकट्ठे हो जाओ तो दर्शक फिल्म देखने टूट पड़ेंगे। यह जादू यमला पगला दीवाना में चल गया। अपने में भी कायम रहा, लेकिन बाद में असर खत्म हो गया।
भला कौन घटिया किस्म के जोक्स, दारू पीने वाले चिकन खाने वाले पंजाबी किरदारों, ढाई किलो का हाथ को बार-बार देखना चाहेगा। देओल्स अभी भी अपनी उसी इमेज को जी रहे हैं जो वर्षों पहले बनी थी। बदलने को तैयार ही नहीं।
वे कहते हैं कि उन्हें मार्केटिंग नहीं आती, लेकिन अब तो अपने फिल्म के प्रमोशन के लिए वे इंटरव्यू देने लगे हैं। टीवी शो में जाकर जो बोला जाए वो करने लगे हैं, लेकिन सिर्फ मार्केटिंग से फिल्में चल जाती तो आज शाहरुख खान की हालत खराब नहीं होती।
जरूरत है खुद को बदलने की। नई किस्म की कहानी चुनने की। आज के दौर के दर्शकों की पसंद जानने की। पिछले कुछ सालों से बॉलीवुड की फिल्मों में काफी परिवर्तन आ गया है, लेकिन बंगलों में बैठे देओल्स को इस बात की भनक ही नहीं। सनी देओल तो फिल्में ही नहीं देखते। बताइए, ऐसे में व्यापार कैसे चलेगा? अब सत्तर और अस्सी का दशक थोड़े ही है।
सनी और धर्मेन्द्र के फैंस अभी भी हैं। वे उन्हें बहुत चाहते हैं। लेकिन ऐसी फिल्में वे भी भला कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। यदि ये कुछ हट कर कमर्शियल फिल्में करें तभी तो फैंस टिकट खरीदेंगे। कब तक यार दोस्तों की फिल्में करते रहेंगे। जरूरत है नई टीम, नए निर्देशकों के साथ फिल्म करने की। जोखिम उठाने की। वैसे भी तो पिट रहे हैं।
शायद बात थोड़ी-थोड़ी सनी के समझ में आ गई है। इसीलिए उन्होंने ट्विटर पर फौरन लिख डाला कि एक्शन फिल्मों से वापसी करूंगा। एक्शन सनी का यूएसपी है। जरूरत है आज के दौर की एक्शन फिल्म की, ना कि अस्सी के दशक वाली एक्शन मूवी की।
उम्मीद कि गलतियों से सबक सीख देओल्स अपने आपमें बदलाव लाएंगे।