सिनेमाघर खुलने की इजाजत मिल चुकी है, इसके बावजूद हर शहर में गिने-चुने सिनेमाघर खुले हैं। मल्टीप्लेक्स में एक या दो स्क्रीन ही चालू किए गए हैं जिनमें महज दो या तीन शो प्रतिदिन दिखाए जा रहे हैं। सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर वाले तो हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं कि महीनों से लटके ताले को खोला जाए।
दरअसल कोई फिल्म ही दिखाने को नहीं है। दर्शक नई फिल्म तो देखने आते नहीं, तो भला पुरानी फिल्में कौन देखेगा? जो शो चल रहे हैं उनमें गिनती के दर्शक फिल्म देखने पहुंच रहे हैं। इतने में तो सिनेमाघर के बिजली का खर्चा भी नहीं निकलता। फिल्म उद्योग वालों की हालत खस्ता है। बड़े निर्माता अपनी फिल्म तभी रिलीज करना चाहते हैं जब पूरी कैपिसटी के साथ फिल्म दिखाने की इजाजत मिले। फिलहाल जो हालात है उसे देखते हुए तो इस दो-तीन महीने इस बात के आसार नहीं हैं। तब तक सिनेमाघर वाले जूझते रहेंगे।