गुलजार और आरडी की लाजवाब जुगलबंदी

हिंदी फिल्मों के सरगम के सफर में दो बातें साथ-साथ चलती रही हैं। पहली है संगीतकारों की जोड़ी। दूसरी है संगीतकार तथा गीतकार की जोड़ी का लय भरा तालमेल। यहां बात आरडी बर्मन और गुलजार की हो रही है। आरडी आज भी अपने संगीत के बल पर हमारे बीच हैं और उनके गाने आज भी युवाओं को झूमने पर मजबूर कर रहे हैं।

यूं तो आरडी ने कई गीतकारों के साथ काम किया है लेकिन उनकी जोड़ी गुलजार के साथ कुछ ऐसी जमी की वह लाजवाब होकर रह गई। गुलजार के गीत हों या गजलें वह कविता की तरह चलते रहते हैं। साथ ही गुलजार ने गद्य गीत अधिक लिखे हैं। उन्हें सरगम के सात सुरों में बांधना बहुत टेढ़ा मामला है। मगर आरडी ने गुलजार की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर चलते हुए ऐसी धुनें रची हैं कि सुनने वाले चकित रह जाते हैं। ऐसा तालमेल, मेलोडी, रिद्म दूसरे संगीतकार-गीतकारों में देखने-सुनने को नहीं मिलता। गुलजार अपनी शायरी में नए मुहावरों और नई उपमाओं को लेकर आए, तो आरडी ने अपने संगीत से उन्हें इतना जीवंत कर दिया कि संगीत शरीर धारण कर श्रोता के सामने आकर मान खड़ा हो गया हो। हालांकि आरडी को शिकायत रहती थी कि गुलजार इस तरह गीत लिखते हैं जैसे अखबार में छपी खबर हो। आरडी के हाथ में गाना लिखा कागज थमा कर कहते कि अब इसकी धुन बनाओ। बेचारे आरडी अपना सिर पीट लेते, लेकिन बाद में वे ऐसी धुन लेकर आते कि सभी चकित रह जाते।

 
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गुलजार के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर बंगला साहित्य का जबरदस्त प्रभाव है। इसके अलावा उन्होंने अधिकांश बांग्ला फिल्मकारों के साथ काम किया है। उनका लिखा पहला गीत बिमल राय की फिल्म बंदिनी के लिए था, जिसमें सचिन दा का संगीत था। उनका आरडी से परिचय तो फिल्म 'परिचय' (1972) से हुआ, जब वह अंग्रेजी फिल्म 'द साउण्ड ऑफ म्युजिक' से इन्सपायर होकर परिचय फिल्म बना रहे थे।

फिल्म परिचय के लिए जो पहला गीत आरडी ने कम्पोज किया, उसकी दिलचस्प कहानी पंकज राग ने अपनी पुस्तक धुनों की यात्रा में विस्तार से लिखी है। इस फिल्म के निर्माण के दौरान गुलजार एक होटल में रहते थे। आरडी ने पहले गाने की धुन बनाई और रात के एक बजे होटल पहुंच गए। गुलजार को जगाया। अपनी कार में बैठाया और जुहू तथा बान्द्रा की सुनसान सड़कों पर मोटर कार दौड़ाते रहे। बीच-बीच में गाड़ी रोक कर डेश बोर्ड का ठेका लगाते गीत तथा धुन सुनाते रहे। यह गीत किशोर कुमार के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक माना जाता है-

मुसाफिर हूं यारो
न घर है न ठिकाना,
मुझे चलते जाना है
बस, चलते जाना।

 


गुलजार ने कई बार संवाद या बातचीत शैली में गीत लिखे और आरडी ने उन्हें ऐसी धुनों से संवारा कि वे आज भी सुने और सराहे जाते हैं। गुलजार के बोलों को आरडी की धुनें और धार देती हैं। आरडी के जाने के बाद गुलजार उन्हें बहुत मिस करते हैं क्योंकि वे ऐसे संगीतकार थे जो गुलजार के शब्दों मधुरता की लड़ी में पिरोना खूब जानते थे। संगीत के महासागर से इस जोड़ी ने जो नायाब मोती अपने श्रोताओं को दिए हैं, उनमें से कुछ की बानगी यहां प्रस्तुत हैं :

इस मोड़ से जाते हैं (आँधी/ लता-किशोर)
हमें रास्तों की जरूरत नहीं है (नरम-गरम/ आशा)
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं (आँधी/ लता-किशोर)
बीती ना बिताए रैना (परिचय/ भूपेन्द्र-लता)
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है (इज़ाजत/ आशा)
सिली हवा छू गई, सिला बदन छिल गया (लिबास/ लता)
आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख्वाब हैं (घर/ किशोर-लता)
आने वाला पल, जाने वाला है (गोलमाल/ किशोर)
तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं (मासूम/ लता-अनूप घोषाल)
खाली हाथ शाम आई है (इजाजत/ आशा भोसले)
मुसाफिर हूं यारों न घर है ना ठिकाना (परिचय/ किशोर कुमार)
कतरा कतरा मिलती है (इजाजत/ आशा भोसले)
रोज रोज आंखों तले (जीवा/ आशा-अमित कुमार)
आजकल पांव जमीं पर (घर/ लता मंगेशकर)
पिया बावरी (खूबसूरत/ आशा-अशोक कुमार)
बेचारा दिल क्या करे (खुशबू/ आशा)
राह पे रहते हैं (नमकीन/ किशोर)

 

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