दो पाम डी'ओर अवार्ड जीतने वाले केन लोच अपनी आखिरी फिल्म भी अवार्ड की दावेदारी के साथ कान फिल्म फेस्टिवल लेकर आए हैं। वो कहते हैं कि अब याददाश्त और नज़र दोनों कमज़ोर हो चली हैं इसलिए अब यह आखिरी फिल्म है। दस साल पहले ही लगा था कि यह डायरेक्टर अब काम नहीं करेंगे लेकिन यूके के राजनीतिक हालात बिगड़ते ही चले जा रहे थे।
ओल्ड ओक कहानी है डरहम शहर के पास के एक गांव की जहां आम लोग जिंदगी के तनाव से जूझ रहे हैं, और एक दिन अचानक उन्हें पता चलता है कि उनके गांव में सीरिया से आए रिफ्यूजी को लाया गया है। यहां से कहानी शुरू होती है जहां आम लोग एक दूसरे की मदद भी करते हैं लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें इन बेघरबार लोगों के अपने गांव में आने से तकलीफ है।
जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है हम उनके बीच के रिश्तों की मुश्किलों को और नजदीकी से देख पाते हैं। फिल्म देखते हुए कई बार एहसास होता है कि क्या यह बुजुर्ग डायरेक्टर वो दिखा रहे हैं जो वो खुद चाहते हैं कि कम्युनिटी में मौजूद हो। केन लोच की यह खूबी है कि वो बिना कुटील हुए उन लोगों की बात कह जाते हैं जो समाज के अत्याचारों को सह रहे हैं। यहां भी वो रिफ्यूजी की बात सामने लाने में कामयाब हैं और यह दिखाने में भी कि बिना झगड़ा किए भी दोनों तरफ की न सिर्फ बात सुनी जा सकती है बल्कि वक़्त के साथ साथ अनजानेपन की जो दीवार बीच में है उसे भी लांघा जा सकता है।
केन लोच का रिटायरमेंट कभी न हो और वो लगातार ऐसी शानदार फिल्में बनाते रहे लेकिन अगर सही मायनों में यह उनकी आखिरी फिल्म साबित होगी तो हम गर्व से कह सकते हैं कि हमने केन लोच को देखा है, उनकी फिल्मों को देखा है। यह वो डायरेक्टर है जो समाज को सहानुभूति और एक साथ रहने की, एक दूसरे को सहारा देने की बात करता है।