23 सितम्बर 1935 को लाहौर में जन्मे प्रेम चोपड़ा को अभिनय और फिल्म के प्रति प्यार मुंबई खींच लाया। संघर्ष करना आसान नहीं था। अपना खर्चा निकालना था। प्रेम चोपड़ा ने टाइम्स ऑफ इंडिया में नौकरी कर ली। वे सर्कुलेशन विभाग में थे। बंगाल, उड़ीसा और बिहार उनके जिम्मे था। उन्हें हर महीने 20 दिन का टूर करना होता था।
इस सुपरस्टार के साथ बनी लकी जोड़ी
प्रेम चोपड़ा जब विलेन के रूप में छा गए तब राजेश खन्ना का हीरो के रूप में नाम दौड़ रहा था। दोनों को साथ लेकर बनाई गई फिल्में जब सफल होने लगी तो उन्हें 'लकी पेयर' माना जाने लगा। 19 फिल्में दोनों ने साथ की जिसमें से 15 सुपरहिट रहीं। राजेश खन्ना जब कोई फिल्म साइन करते तो वितरक उनसे हीरोइन का नाम नहीं पूछते बल्कि यह पूछते कि क्या प्रेम चोपड़ा इस फिल्म में है। वितरकों का मानना था कि दोनों साथ हो तो फिल्म के सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं। राजेश खन्ना और उनके बीच गहरी दोस्ती थी और राजेश खन्ना की मृत्यु तक यह दोस्ती कायम रही।
राज कपूर को पूछने की हिम्मत कर बैठे
मेरा नाम जोकर की असफलता के बाद शो-मैन राज कपूर 'बॉबी' बना रहे थे। क्लाइमैक्स के लिए उन्हें एक विलेन की जरूरत थी। वे ऐसा अभिनेता चाहते थे जिसे देख कर ही दर्शक समझ जाए कि यह बदमाशी करेगा। रोल छोटा था। बावजूद इसके उन्होंने प्रेम चोपड़ा को फिल्म ऑफर की। राज कपूर के निर्देशन में काम करना तो प्रेम ने अपने लिए सौभाग्य की बात मानी। ये भी नहीं पूछा कि क्या रोल है और हां कर दी। शूटिंग शुरू हुई तो राज कपूर ने कहा कि बस एक ही संवाद बोलना है 'प्रेम नाम है मेरा... प्रेम चोपड़ा।' अब प्रेम चोपड़ा दंग रह गए कि छोटा सा रोल और संवाद भी नहीं के बराबर। बहुत हिम्मत जुटा कर राज कपूर से पूछ बैठे कि बस, इतना सा डायलॉग। राज कपूर ने कहा कि यदि फिल्म चल निकली तो यही डायलॉग लोगों की जुबां पर होगा और हुआ भी ऐसा ही। बॉबी के इस संवाद ने प्रेम चोपड़ा को बहुत प्रसिद्धि दिला दी।
महिलाएं भाग जाती थीं
प्रेम चोपड़ा अपनी भूमिका इतने डूब कर निभाते थे कि रियल लाइफ में भी लोग उन्हें विलेन ही समझते थे। ज्यादातर उन्होंने महिलाओं पर बुरी नजर डालने वाले खलनायक की भूमिकाएं निभाईं। जब भी वे अपने दोस्त या रिश्तेदार की पार्टियों में जाते थे तो महिलाएं उनसे खौफ खाकर छिप जाती थीं। इससे प्रेम चोपड़ा बहुत असहज महसूस करते थे।