आ गया हीरो गोविंदा छाप फिल्म है

1989 में आई फिल्म ताकतवर से लेकर हीरो नंबर 1, कूली नंबर 1 और डू नॉट डिस्टर्ब तक की फिल्म करने वाले गोविंदा और डेविड धवन को साथ में फिल्म किए लगभग 8 साल हो गए हैं लेकिन इन दोनों के बीच की दूरी कम होने नहीं वाली है। कम से कम गोविंदा के कहने पर से तो ये ही लगता है। अपनी अगली फिल्म 'आ गया हीरो' के इंटरव्यू के दौरान बात करते हुए गोविंदा ने कहा कि मैंने डेविड से कहा कि तुम मेरे साथ 18वीं फिल्म कर लो तो वो मेरा टाइटल, फिल्म और सब्जेक्ट ले गया- चश्मेबद्दूर। उस फिल्म में उसने ऋषि कपूर को ले लिया। 
 
जब मैंने फोन लगाया और पूछा कि तुम क्या कर रहे हो? तो वे बोले कि देख मैं क्या कर रहा हूं, क्या पिक्चर बनाई है मैंने। फिर मैंने उसे कहा कि तुम तो बहुत बदमाश आदमी हो यार। चलो अब कम से कम मेरे साथ 18वीं फिल्में कर लो या एक कैमियो ही करवा लो, नहीं तो मैं तुम्हें 7 साल तक मिलूंगा नहीं। उसे समझ नहीं आया कि कि मैं क्या कह रहा हूं। आज ठीक 7 साल हो गए और मैं उससे नहीं मिला हूं। मैं उससे 9वें साल में मिलूंगा। देखिए तब क्या समय होता है। मैं उनसे रिक्वेस्ट किए जा रहा था कि मुझे एक शॉट तो दे दीजिए लेकिन पता नहीं उनकी सोच को क्या हो गया? 


 
लोग आपकी तुलना वरुण धवन से करते हैं? 
वरुण की तुलना सलमान से क्यों नहीं करते? मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि इन लोगों की बॉडी सलमान जैसी है। इन्हें कहे कि ये कह दें कि ये सलमान जैसे हैं। वहां पर जाकर इन लोगों की हालत खराब हो जाती है, क्योंकि मालूम है कि जिस दिन सलमान जैसी कह देंगे, तो दूसरे दिन से फिल्में नहीं मिलेंगी। आगे काम भी नहीं चलेगा। वे बाकी के दो खान्स के खिलाफ खड़े नहीं रह सकते। मैं भी अगर एमपी होता तो भी ये लोग ऐसा नहीं कहते। ये फिल्म लाइन का तरीका है कि अगर थोड़ा-सा आपका डाउन फॉल चल रहा हो और मालूम पड़े कि ये जगह खाली पड़ी है तो बस इसमें घुस जाओ। 
 
वरुण गोविंदा इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि पहले तो वह निर्देशक का बेटा है। गोविंदा होने के लिए मासूम, अनपढ़ और गांव से आया हुआ होना पड़ेगा। ये लोग तो सोचने के बाद जुबान से दो शब्द निकालते हैं। वरुण, गोविंदा हो नहीं सकता। पिछले 6 सालों में उसने अपने पिता के साथ दो पिक्चरें की हैं और मैंने उसके पिता के साथ 17 फिल्में की हैं। वरुण की तुलना मेरे साथ गलत है। इसे कहते हैं माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम!
 
'आ गया हीरो' के बारे में बताइए अब? 
नर्वस भी हूं और एक्साइटेड भी हूं। फिल्म में मैं एक पुलिस वाले की भूमिका में हूं, जो एक्टिंग करता है। एक्टिंग के जरिए पता लगाता है कि क्या हो रहा है। इस फिल्म में वो पुलिस वाला डॉन बना है। फिल्म में बहुत सारी मस्ती, गाने और डायलॉग होंगे। यह फिल्म पूरी गोविंदा छाप है। आशा है लोगों को पसंद आएगी। 
 
क्या आप मानते हैं कि कि आजकल फिल्म मेकिंग बहुत बदल गई है? 
जी हां, बहुत बदल गई है। आप इससे अलग भी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि पैसे मिलने के तरीके बहुत अलग हो गए हैं यहां। अत: यह जरूरी हो जाता है कि बाहर निकलें, मेहनत करें, लोगों से मिलें। ये सब कर रहे हैं हम। दक्षिण से फिल्में लेकर आने की सोच मैं ही लेकर आया था मुंबई में। मेरी जितनी भी फिल्में चली हैं, वे दक्षिण से प्रभावित रही हैं, चाहे वो शोला और शबनम, आंखें या राजा बाबू हों। हमें उस समय ये सोच मिली थी कि गोविंदा के राइटर्स बड़े नहीं होते, निर्देशक बड़े नहीं होते, निर्माता बड़े नहीं होते तो गोविंदा बड़ा आदमी कैसे बनेगा? तो मैं इंस्पायर हो गया अच्छे लोगों से।

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