'शिवाय' से सियाचीन में तैनात सिपाहियों की हिम्मत का हुआ अहसास : अजय देवगन

रूना आशीष

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016 (18:58 IST)
अजय देवगन की फिल्म 'शिवाय' दिवाली पर प्रदर्शित हो रही है। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय के साथ-साथ निर्देशन की जिम्मेदारी भी निभाई है। अब प्रचार में व्यस्त हैं। पेश है अजय से बातचीत के मुख्‍य अंश: 
 
अपनी व्यस्तता के बारे में अजय कहते हैं- 'मैं सच बताऊं, मैं पिछले 20 दिनों से सोया नहीं हूं और आज सुबह ही मुंबई लौटा हूं। जब यहां मैं मीडिया से मिलने आ रहा था तो होटल में आने के बाद मैंने मीडिया के दोस्तों से कहा कि मैं पहली बार इतना लेट हूं, तो प्लीज मुझे एक घंटा आराम कर लेने दीजिए। इन इंटरव्यूज के बाद मैं जाने वाला हूं मिक्सिंग पर। फिर जाऊंगा फिल्म की एडिटिंग और उससे जुड़े कुछ कामों पर और फिर जाऊंगा अपने ऑफिस जिसमें मुझे सुबह के 4-5 बज जाएंगे।'  
आपने 'शिवाय' के लिए बुल्गारिया में जाकर शूट किया, कैसा था वहां शूट करना?
वहां बहुत ठंड थी। मजा तो था,  लेकिन माइनस 20 या माइनस 25 डिग्री में काम करना पड़ता था। दोपहर के बाद वहां कोई खड़ा नहीं रह सकता था इतनी ठंड थी। ऐसे में पूरी युनिट वहां खड़ी रही है।
 
तो क्या अब आपको सियाचिन में तैनात सिपाहियों की हालत समझ में आती है?
बिलकुल। क्या आप जानते हैं कि वहां किसी को बैठने की भी जगह नहीं होती। कोई कैसे घंटों तक खड़ा रहे? आपको एक बात बता दूं कि वहां सिपाहियों को खाना पहुंचाना भी मुश्किल हो जाता है तो ऐसे में हेलीकॉप्टर से चॉकलेट के डिब्बे गिराए जाते हैं। सिपाही जहां-जहां खड़े होंगे, वहां-वहां वे डिब्बे गिरा दिए जाते हैं और हमारे सीमा के ये रक्षक भी इन डिब्बों पर खड़े होते या बैठते हैं। यहां एक बार जो ड्यूटी कर ले तो वो भी बहुत बड़ी बात होती है। छ: महीने की पोस्टिंग के बाद उनकी बदली कर दी जाती है।
 
इस फिल्म में वीएफएक्स की बात करें तो क्या कहेंगे आप? 
वीएफएक्स की कहूं तो मेरी अपनी कंपनी ने किए हैं। जो टीम है उसने बहुत अच्छे से काम किया है। सच कहूं तो अपने देश में वीएफएक्स मैंने शुरू किया था। आपको याद होगा कि मेरी एक फिल्म 'प्यार तो होना ही था' थी। उसके टाइटल सांग में जो पीछे स्क्रीन रोटेट हो रही है, वो मैंने ही किया था। उस समय किसी को ये मशीन चलाना नहीं आती थी। मेरी टीम शूट के समय होती थी लेकिन किसी को कुछ आता ही नहीं था, तो उन सबको मैं ही बताया करता था। अब मैं एडिटिंग, वीएफएक्स साउंड, एक्शन, निर्देशन सब कर चुका था, बस 'फूल और कांटे' के साथ एक्टिंग भी शुरू हो गई। लेकिन जितनी मुसीबत मुझे एक निर्माता बनकर उठानी पड़ती, उतनी किसी काम में नहीं होती है।
 
तो अब बताइए जब आप शूट कर रहे होते थे तो जाहिर है आपने अपने कैमरे को सेट किया होगा लेकिन इस बार कैमरे का बटन दबाने के लिए कोई और होता होगा, क्योंकि आप तो कैमरे के सामने होंगे ना?
हां, लेकिन जब मैं कैमरा सेट कर लेता था तो कोई उसे छेड़ नहीं सकता था। वैसे भी आप जब निर्देशक और एक्टर दोनों हों तो आप सेट पर बैठ नहीं सकते। कभी आप एक को सीन समझा रहे हो, तो कभी आप एक्टर को सीन की ब्रीफिंग दे रहे हैं। कभी कोई प्लानिंग कर रहे हैं तो आराम से बैठना तो नहीं मिलता है, न ही बात करना मिलता है। हां, आपको फिल्म में डबल मेहनत करनी पड़ती है।
 
आपने हाल ही में पाकिस्तानी कलाकारों के बारे में अपनी राय भी जाहिर की थी। आपका कहना था कि कलाकार कभी भी देश से बड़ा नहीं हो सकता?
मेरे हिसाब से पाक गायक और अभिनेता बड़े ही बेहतरीन कलाकार होते हैं। मेरी कुछ फिल्मों में तो इन्हीं गायकों ने गाने गाए हैं। अगर आपको याद हो तो मेरी एक फिल्म भी थी 'कच्चे धागे' जिसमें नुसरत फतेह अली ने संगीत दिया था। उनकी आखिरी फिल्म 'कच्चे धागे' ही थी। मैं तो कहता हूं कि मेरी जितनी भी फिल्में रही हैं उनमें सबसे बेहतरीन संगीत और संपूर्ण तरीके का संगीत इसी फिल्म में था। 
 
मुश्किल वो नहीं है, मुश्किल ये है कि जब कोई कलाकार काम करता है तो उसकी कोई बाउंड्री तो नहीं होती और वो कहीं से भी काम कर सकता है। जो बात मैंने कही थी वो ये थी कि हम भी जानते हैं कि ये सभी कलाकार हैं, कोई टेररिस्ट नहीं है। लेकिन जब आपके जवान बॉर्डर पर लड़ रहे हैं, उनके फैमिली वाले रो रहे हैं या उनके परिवार से कोई बेटा सीमा पर गया है ऐसे में कोई कहे कि हमें इससे मतलब नहीं है और हमें आराम से रहने दो, हमारे आर्ट और कल्चर को अलग रखो, हमें अपना काम करने दो, हम आराम से सोएंगे, वो लड़ रहा है न मेरे लिए, वो मरेगा लेकिन मैं अपना काम करूंगा तो वो बात गलत है। 
 
वो क्यों लड़ेगा? उसके लड़ने के लिए पहले उसे ये तो जताना पड़ेगा न कि देश सबसे पहले आता है और हम सब आपके साथ हैं। उनको और उनके परिवार को ये तो लगने दीजिए कि जो हुआ है उसमें हम सभी को दुख है। आप उनकी जगह जरा अपने आपको रखकर देखिए। उनको तो ये लगेगा न कि आपको कोई परवाह ही नहीं है। 
 
मेरे कहने का तात्पर्य ये था कि जब तक ये सब चल रहा है, जब तक प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हो जाती है तब तक हमें अपनी सिक्यूरिटी फोर्सेस के साथ खड़े रहना है। आप उनको ये फील नहीं करा सकते हैं कि आप अलग हैं और हम अलग हैं। मैं खुद भी ये ही चाहूंगा कि ये परेशानी जल्द से जल्द सॉल्व हो जाए। वहां के कलाकार यहां आएं और काम करें और हम वहां जाकर काम करें। लेकिन एक वक्त ऐसा आता है कि आपको निर्णय लेना पड़ता है।
 
क्या आपको लगता है कि आज के समय में अच्छे एक्टर्स की कमी हो गई है?
नहीं, मुझे नहीं लगता बल्कि कई नए और अच्छे एक्टर्स मौजूद हैं। वो हमसे ज्यादा प्रोफेशनल भी हैं। सभी नए एक्टर्स अच्छे हैं और हमसे ज्यादा तैयारी के साथ आए हैं और ये बात तो माननी पड़ेगी। हम जब आए थे तो कितने कच्चे खिलाड़ी थे। हम तो मस्ती करते रहते थे। हमारा तो काम में इंट्रेस्ट ही कितना था। जब हम इंडस्ट्री में आए थे तो एक इमोशनल
कनेक्ट था। अगर मेरे पास कोई प्रोड्यूसर आए और कह दे कि मेरी पिछली फिल्म नहीं चली है तो हम उसकी फिल्म बिना पैसे के भी कर देते थे बिना जाने हुए कि फिल्म चलेगी या नहीं। ये एक गलत प्रोफेशनल कदम था लेकिन सही भावनात्मक निर्णय। आज की पीढ़ी में ऐसा नहीं है। वो प्रोफेशनली सही है। अब वो भी क्या करे, इतना कॉंम्पिटिशन बढ़ गया है। तो जो रिश्तों की गर्माहट थी ना, वो चली गई है। आज के समय में रणवीर हैं, रणबीर हैं, आलिया हैं- सभी अच्छे हैं।
 
ऐसा क्यों होता है कि कुछ अभिनेता ही हैं जिनकी फिल्मों के हिट होने की संभावना होती है। आप हैं, अक्षय हैं जिनकी फिल्म आई तो कहते हैं कि बड़ी फिल्म है लेकिन ये बात नए एक्टर्स के साथ नहीं है। कह दिया जाता है कि एक और फिल्म आ रही है।
आप जितने भी लोगों की बात कर रही हैं उनके बारे में है कि हम 25 सालों से काम कर रहे हैं तो हमारा दर्शकों के साथ ज्यादा बड़ा इमोशनल कनेक्ट है। ये लोग अभी आए हैं। अगले 5-7 साल में ये भी उसी जगह आ जाएंगे, जहां आज हम लोग हैं। इसके अलावा एक अंतर है कि हमारी जो ऑडियंस है वो बहुत लॉयल रही है, लेकिन नई पीढ़ी के दर्शक आपके फैन नहीं हैं। अगर उन्हें प्रोमो पसंद आया तो वो फिल्म देखेंगे और नहीं आया तो वो नहीं जाएंगे फिल्म देखने। हम लोग बहुत लकी हैं, जो कह सकते हैं कि कोई फिल्म देखने आए या न आए लेकिन ये 100 लोग तो फिल्म देखने आएंगे ही आएंगे।
 
सुनने में आया है कि फिल्म का बजट बहुत ज्यादा है?
आई थिंक लोग बहुत गलत बातें कर रहे हैं। अब देखिए फिल्म का निर्माता भी मैं हूं। देखिए इस फिल्म का बजट भी उतना ही है जितना कि किसी भी फिल्म का हो सकता है। अगर फिल्म 10 रुपए में बनती है तो उसमें से 5 रुपए निर्माता, निर्देशक और एक्टर के होते हैं। पिक्चर के लिए बचते हैं 3 रुपए और 2 रुपए आप देते हैं प्रमोशन के लिए। यहां मैंने 10
के 10 पूरे पिक्चर में लगा दिए। अपने लिए 1 भी रुपया नहीं रखा, क्योंकि निर्देशक भी मैं हूं और एक्टर भी मैं ही हूं।
 
आप इतने सालों से यहां काम कर रहे हैं। आपको क्या लगता है कि ऐसी क्या चीज है, जो आपको इस इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए काफी है।
सबसे ज्यादा यहां जरूरी जो है, वो है ईमानदारी। जब तक आप अपने काम से ईमानदार हैं, जब तक आप में वो भूख है कि मुझे ये करना ही है, तब तक सब ठीक है। आप कुछ न कुछ करेंगे ही। और जिस दिन आपका पेट भर गया उस दिन आपका काम छुट जाएगा।
 

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