बैंक चोर बने रितेश देशमुख कभी भी बैंक नहीं गए

बैंक चोर रितेश देशमुख की आने वाली फिल्म का नाम है। इसमें वे बैंक लुटने वाले चोर बने हैं। रितेश का कहना है कि फिल्म का विषय मार्मिक है, लेकिन इसमें कॉमेडी भी भरपूर है। आइए जानें क्या कहते हैं रितेश इस फिल्म के बारे में: 
 
एक चोर मुंबई का और दो दिल्ली के 
'बैंक चोर' बहुत ही मार्मिक विषय वाली कहानी है। फिल्म में तीन लोग हैं जिन्हें पैसों की जरूरत है तो उन्हें लगता है कि बैंक लूटना सबसे आसान रास्ता है पैसे पाने का। इनमें से मैं मुंबई का 'बैंक चोर' हूं और बाकी के दोनों दिल्ली के। तो यहां हमने बहुत ही मार्मिक बातों पर लड़ाई की है। 
 
दिल्ली बनाम मुंबई 
फिल्म में जब हम तीनों बैंक में रॉबरी करने जाते हैं तो गड़बड़ हो जाती है। हम आपस में लड़ने लगते हैं कि दिल्ली वालों को तो बुलाना ही नहीं चाहिए था। जब काम नहीं आता तो आते क्यों हैं काम करने के लिए? तब दिल्ली वाले चोर कहते हैं कि अगर हम मुंबई में काम न करें तो कौन काम करेगा? अब ये वो टॉपिक है, जो कुछ लोगों के लिए टची हो सकता है। हम सीन में इस बात पर भी लड़े कि मुंबई की रोड छोटी है और दिल्ली की चौड़ी।
 
मेरा किरदार 
मेरे कैरेक्टर का नाम चंपक चिपलूणकर है। एकदम मध्यमवर्गीय व्यक्ति, जो लोकल्स से सफर करता है। निर्देशक ने कहा कि तुम बिलकुल आम इंसान हो। अगर कभी बैंक भी लूटने को गए हो तो बिलकुल रोज के कपड़े पहनकर जाओगे। तो मैंने एक कत्थई कलर की पैंट और नीला शर्ट पहना है, जो कोई भी पहनता होगा। चंपक जूते पहनकर नहीं बल्कि सैंडल पहनकर चोरी करने जाता  है। वह भगवान से डरता है इसलिए हर काम करने के पहले पांडुरंगा 'देवा, देवा' कहकर बैंक में जाता और जब तिजोरी खोलने भी जाता है तो वास्तु के हिसाब से तिजोरी का दरवाजा खोलता है ताकि पैसा ज्यादा निकले।
 
मध्यमवर्गीय संस्कार 
मेरे लिए इस रोल में कुछ और भी बातें डालना इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि मैंने भी मध्यमवर्गीय संस्कार ही पाए हैं। मैं लातूर में जन्मा हूं। 1982 में जब बाबा (विलासराव देशमुख) मंत्री बने तब हम पहली बार मुंबई में आए थे। जब 1984 में वे 9 महीने के लिए मंत्री नहीं थे तो हम वापस लातूर लौट गए, मुंबई में हमारे पास घर ही नहीं था। तो मैं समझ सकता था कि एक आम इंसान कैसे सोचता होगा। फिल्म में सब्जी और चीजों के दाम की बातें हैं जिससे आम आदमी इस फिल्म में अपनी जिंदगी देख सकेंगे।
 
बैंक के बारे में कुछ नहीं पता 
मैं आज तक बैंक नहीं गया हूं। मुझे बैंक के बारे में कुछ नहीं समझता है। यहां तक कि मुझे तो चेक कैसे भरते हैं, ये भी नहीं आता। एक बार कॉलेज के जमाने में मेरे बाबा और मम्मी ने मेरा बैंक अकाउंट खोला था। लेकिन बैंक में पैसा भरना हो तो ये जरूरी नहीं है ना कि आप खुद जाओ। कोई और चला जाता था। फिर आजकल तो बैंक आपके मोबाइल में भी आ गया है।

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