"ये कहानी 1948 के समय की है जब हमारे देश ने पहली बार ओलिंपिक गेम्स में गोल्ड मैडल जीता था, लेकिन उस समय देश में इतन सब कुछ हो रहा था कि ये बात कहीं दब कर रह गई। उस समय राजनीतिक हलचल बहुत ज्यादा हो रही थी। वैसे 'गोल्ड' की असल कहानी 1936 से शुरू होती है, जब हम लोग ब्रिटिश इंडिया के तौर पर हॉकी खेल रहे थे। उस वक्त हमारा मैच जर्मनी से हुआ था और खेल देखने खुद हिटलर भी आए थे। हमने यानी ब्रिटिश इंडिया ने पांच या छ: गोल दाग दिए थे, जिससे हिटलर नाराज़ हो गए और गुस्से में मैच आधा छोड़ कर चले गए थे। उन्होंने तो हमारे एक स्टार प्लेयर को कहा भी था कि खेल छोड़ कर जर्मनी की आर्मी में भर्ती हो जाए।" फिल्म गोल्ड के बारे में वेबदुनिया संवाददाता रूना आशीष से बात करते हुए अक्षय ने फिल्म और देश के इतिहास से जुड़ी कुछ बातों को शेयर किया।
अक्षय आगे बताते हैं "मैं भी इतना सब नहीं जानता था। फिल्म की निर्देशक रीमा कागती ने मुझे यह सब जानकारी दी। 1936 में जब हम लोग जीत गए तो उस समय सारे खिलाड़ियों ने इंग्लैंड के राष्ट्रगान पर सलामी भी दी थी। फिर वो समय आया जब 1948 में आज़ाद भारत ने गोल्ड जीत लिया। इत्तेफाक देखिए, उस समय ओलिंपिक इंग्लैंड में हुए थे। फाइनल भी इंग्लैंड और आजाद भारत के बीच हुआ था, जिसमें हम लोग जीत गए थे। मुझे ऐसा लगा कि कैसे हम उनके 200 साल उनके गुलाम रहे और फिर उनकी ही ज़मीन पर जाकर उन्हें हरा कर आए। जैसे मालिकों से ग़ुलाम जीत कर आ रहा हो। मेरी एक और फिल्म 'एयरलिफ्ट' में भी ऐसा ही हुआ था, जब हमारे देश के एक लाख सत्तर हजार लोगों को एयर लिफ्ट किया गया था और इस वजह से हमारा नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में है। ऐसी बातों को इतिहास में दबाने से अच्छा है कि उन्हें हम फिल्मों के माध्यम से लोगों को दिखाएं। कहीं भी इन दोनों बातों का ज़िक्र कहीं गूगल के दो पन्नों में ना रह जाए। मुझे बहुत गर्व होता है कि मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा बन पाया।"
ऐसी जब फिल्में करते है तो क्या ध्यान में रखते हैं?
एक वाकया बताता हूं, मैं अपने पड़ोसियों से बातें कर रहा था और बात एलियन अटैक की आई तो उनके बच्चे ने कहां अरे अमेरिका बचाएगा। तब लगा कि हम बचपन से हॉलीवुड फिल्में देखते आए हैं और सोचते रहे हैं कि एलियन अटैक हो या आतंकवादी हमला हो तो अमेरिका बचाएगा। मैं उसे बदलना चाहता हूं कि कहीं कुछ भी हो तो भारत बचाएगा। मैं मेरे देश को ब्रैंड इंडिया बनते देखना चाहता हूं। इतना सोच कर फिल्म करता हूं। वे 300 लोगों के साथ अगर कोई जंग या लड़ाई जीत लेते हैं तो हॉलीवुड वाले फिल्म बना देते हैं जबकि हमारे 21 सिखों ने मिल कर हज़ारों को हराया है तोफिल्म क्यों ना बनाई जाए। बस ब्रैंड इंडिया के लिए ऐसी फिल्में करना चाहता हूं।
आपको लगता है कि टॉयलेट जैसी फिल्में कर लेने से देश सुधर रहा है?
मैं इसके लिए फिल्म नहीं करता हूं। मैं उपदेश देने वाला नहीं हूं। आपने फिल्म देखी, आपको पसंद आई, आप ने अपने आप में तब्दीली कर ली, अपना घर साफ रख लिया या आपके घर के आस पास सफाई कर ली बस मेरा काम हो गया। फिर भी मुझे बहुत गर्व है इस बात का कि पहले हमारे देश में जिन लोगों को शौचालय की सुविधा नहीं होती थी उसका आंकड़ा 54 प्रतिशत था जो अब 32 प्रतिशत रह गया है।
और पैडमैन के ज़रिए?
पहले जहां लड़कियां इस विषय पर बात नहीं करती थीं अब तो ऑफिसों में कह देती हैं कि मेरे पीरियड्स हैं और मैं बाथरूम जा रही हूं। पहले इन सब बातों को छुपा कर दबा कर रखा जाता था। शर्म के परदे में रखा जाता था। वैसे मुझे कभी समझ में नहीं आया कि इसमें छुपाना क्या है? ये तो नैसर्गिक चीज़ है।
क्या गोल्ड के ज़रिए देश में हॉकी को बढ़ावा मिलेगा?
इस फिल्म के द्वारा मैं बताना चाहता हूं कि इस खेल के ज़रिए हमारे देश को ओलिंपिक में पहली बार गोल्ड मिला। कम से कम एक तो खेल खेलिए। अब क्रोएशिया जैसे छोटे से देश की बात कर लें तो मुश्किल से वो चर्चगेट से बोरीवली तक की दूरी बराबार का देश होगा, लेकिन फुटबॉल वर्ल्ड कप के फाइनल तक पहंच गया। वहां बच्चे से ले कर बूढ़े सभी को कम से कम एक खेल खेलना ज़रूरी बनाया गया है। मैं कहता हूं गिल्ली डंडा खेलो, कबड्डी या खो खो खेलो, लेकिन आउटडोर खेलो क्योंकि इससे आपके दिमाग को ऑक्सीजन मिलेगी और आप फिट रहेंगे। अगर हमारे देश में खेल को ज़रूरी बना दिया गया तो देश में कई तब्दीलियां आ जाएंगी।