'केसरी' के जरिए अक्षय कुमार सारागढ़ी और देश के सभी वीरों को अपनी तरफ से याद कर रहे हैं और उनका सम्मान करने की मंशा रखते हैं। अपनी आने वाली फिल्म 'केसरी' के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान अक्षय ने 'वेबदुनिया' से बातचीत की।
पग पहनकर एक्शन करना कितना मुश्किल रहा काम करना?
मेरी पग एक से डेढ़ किलो की थी। इसे पहनने में लगभग 30 से 40 मिनट का समय लगता था। बहुत भारी होती है ये पग। फिर वो आपके सिर से बिलकुल सटकर बांधी जाती है। ऐसी भारी पग में उछलना या गटके करना बहुत मुश्किल था मेरे लिए। और तो और, तलवारबाजी करना भी बहुत मुश्किल भरा हो जाता था। लेकिन पता नहीं कुछ तो बात होती ही है ऐसी पग पहनने में। आप अचानक से बहुत ज्यादा जिम्मेदार महसूस करने लगते हैं। वो पग आपके सिर से बहुत करीब कसकर बांधी जाती है तो आपका सारा ध्यान सिर्फ एक जगह ही सिमटकर रह जाता है। आप कुछ और नहीं सोच पाते। ये अपने आप होता है या कोई वैज्ञानिक कारण है इसमें? ये तो नहीं पता लेकिन आपकी रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी हो जाती है।
आगे अक्षय बताते हैं कि इसके ऊपर मैंने कड़ा भी पहना है, जो लोहे का बना होता है और ये समय आने पर हथियार की तरह काम आता है। ये कॉस्ट्यूम शायद मेरे जिंदगी के सारे रोल्स में से बहुत कठिन कॉस्ट्यूम रही हो।
आपको देखने और चाहने वाले कई तरह के लोग हैं। कॉलेज जाने वाले भी, बच्चे भी और बड़े भी। कभी इस बात को लेकर लगता है कि कहीं मुझसे कोई दिल न दुख जाए?
मैं कोई ऐसा काम करूंगा ही नहीं कि किसी का दिल दुखे या कहीं से कहीं तक मैं गलत कहलाऊं। मैं हर तरीके की फिल्म करता हूं। एक्शन हो या कॉमेडी हो या देश के वीरों के लिए हो। करियर के शुरू में मुझसे गलती हुई थी कि मैं सिर्फ एक्शन फिल्मों तक ही सीमित था लेकिन फिर बाद में मुझे लगा कि मैं तो एक दायरे में बंध गया हूं। उस दिन सोचा और अलग-अलग तरह की फिल्में करना शुरू कर दीं।
आपने 'केसरी' करते वक्त कुछ सीखा?
मैंने एक शहीद के दिल और मस्तिष्क के बारे में नई बात सीखी। शहीद जो होता है, वो जवान होता है। जिंदगी को अपने तरीके से देख रहा होता है। जब उसे गोली लगती है, तो शायद उसे 1 या 2 मिनट मिलते होंगे कुछ सोचने के लिए। उन 2 मिनट में वो क्या देखता और सोचता है, वो मुझे सीखने को मिला।
कुछ शेयर करेंगे?
नहीं, ये वो भावना है, जो मैं अपने तक ही रखना चाहता हूं। आप जाकर फिल्म देखेंगे तो सोचेंगे और जानेंगे मेरी इस सीख के बारे में।
देश ने हाल ही में पुलवामा जैसा मंजर देखा है। इस दौरान आपके ऐप भारत के वीर की भी बहुत जगह पर चर्चा हुई है?
हां, मैं उन सारे देशवासियों को धन्यवाद कहता हूं जिसने भारत के वीर में अपना योगदान दिया है। हमारी ये ऐप अभी तक सभी चुने हुए 200 सैनिकों के घर 15 लाख की तय राशि पहुंचा चुकी है। इसमें सारी राशि शहीदों के घर वालों के हाथ में जाती है और इसमें सरकार या एनजीओ का कोई जरिया नहीं लिया गया है।
आगे कुछ और करने की ठानी है?
अब मेरे काम भारत के वीर में हम लोग दिव्यांग सैनिकों के लिए काम करना चाहते हैं। जहां हमारी बात सरकार से होने वाली है कि कारगिल (1999) के बाद जितने भी सैनिक लड़ाई या युद्ध में अपने अंग खो चुके हैं और दिव्यांग हो गए हैं, उन्हें भी हम मदद कर सकें।
आपका रीजनल सिनेमा को लेकर क्या विचार है?
मैंने 2 मराठी फिल्में प्रोड्यूस की हैं। मुझे मराठी फिल्मों के कंटेंट हमेशा से पसंद आते रहे हैं। अगर आपको देश के दिल में जाकर बसना है, तो आपको रीजनल सिनेमा में पहुंचना ही होगा। मैं खासकर के मराठी फिल्मों की बात करता हूं। मराठी की इतनी बेहतरीन फिल्में हैं। उनका कंटेंट हो या उनके नाटक हो, बहुत ही बेहतरीन हैं। मैं तो भोजपुरी फिल्में भी करना चाहता हूं साथ ही तेलुगु, तमिल कन्नड़ भी। मैंने कन्नड़ में एक फिल्म 'विष्णु विजय' नाम की भी की है।