मैं सरकार से नाराज हूं : रिचा चड्ढा

अपने उसूलों और आदर्शों के साथ फिल्म इंडस्टट्री में चल पाना मुश्किल है। ये वो इंडस्ट्री है जहां हर कोई अपने बेटे या बेटी के लिए करियर बनाना चाहता है। यह ठीक भी है। कल अगर मेरा बेटा मुझे करता है कि उसे फिल्मों में काम करना है तो मैं मना थोड़ी करूंगी। मैं भी मदद ही करूंगी। 
 
कई बार आपने लोगों को देखा होगा कि अवॉर्ड देते समय वे बहुत गुणगान करते हैं, लेकिन पीठ पीछे कहते हैं कि इसका कैरेक्टर ठीक नहीं है। ऐसे लोगों की बीच सर्वाइव करना बहुत मुश्किल होता है। मेरा तो ये मानना है कि बॉलीवुड को अब काम पर ध्यान देना होगा, वरना बहुत जल्द हम हमारी पहचान खो देंगे। एक से बढ़ कर एक हॉलीवुड फिल्में देश में आएंगी और हमें वाइपआउट कर देंगी। 
 
ये कहना है रिचा चड्ढा का जो इन दिनों अपनी फिल्म फुकरे रिटर्न्स के प्रमोशन में बिजी हैं। उनसे बात कर रही हैं वेबदुनिया संवाददाता रूना आशीष। रिचा की फिल्म फुकरे रिटर्न्स में उनके साथ वरुण, मनजोत सिंह, पुलकित सम्राट और प्रिया आनंद भी दिखाई देने वाले हैं।  
 
आपके हॉलीवुड प्रोजेक्ट के बारे में बताइए। 
उसका नाम है लव सोनिये। इसमें काम करने में बहुत मजा आया। फिल्में बनाने का उन लोगों का तरीका बहुत अच्छा लगा।  सब कुछ साफ सुथरा था। सलीके से काम होता था। अगर उन्हें मालूम पड़ा कि आराम नहीं हुआ है तो फिर वो लोग आपको आराम करने का भी समय देते हैं। हमारे यहां तो काम करते रहो। पूरी दुनिया में दो लोग ही 12 घंटे काम करते हैं,  चायनीज और इंडियन। वैसे शायद हम लोगों की सफलता का कारण भी ये है। 
 
आपके करियर की शुरुआती फिल्म हो या अभी की, सबमें आपका कैरेक्टर निखर कर आता है, तो कोई बात जो आपको आगे बढ़ाती हो? 
ओए लकी के समय तो ऐसा हुआ कि मेरा फिल्म करने का मन ही नहीं रहा। मुझे लगता था कि क्या है ये? तीन महीने तकफिल्म करो, फिर छ: महीने इंतजार करो। फिर फिल्म रिलीज होगी तो वो भी ती-चार हफ्ते के लिए सिनेमा हॉल में चल जाए तो बड़ी बात है। मैं थिएटर बैकग्राउंड से हूं तो मुझे आदत है एक-एक शो कम से कम तीन चार महीने तक करते रहने की। वो तो 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' करने के बाद समझ में आया और लगा कि ये मीडियम ही ऐसा है। और वो क्या चीज है जो मुझे आगे बढ़ाती है तो वो है मुझे किरदारों को जीने की इच्छा होती है। जब मैंने मसान जैसी फिल्में भी की जिनमें मुझे कम पैसे मिले, लेकिन मेरी इच्छा थी कि मैं ऐसी लड़की का किरदार करूं जो छोटे शहर की है। जितने भी लोग देखें वो समझ सकें मेरे काम को। 
 
आपने मुंबई में घर ले लिया?
नहीं। मैं अभी भी किराए के घर में ही रहती हूं। हां, किराया बहुत भारी चुकाती हूं। पहले रोड बनवाओ, हवा साफ करो, ट्रैफिक की समस्या सुलझाओ, तब जा कर मैं मुंबई को प्रॉपर्टी टैक्स भरूंगी। वैसे मैं इतनी ओवरक्राउडेड सिटी में नहीं रहना चाहती हूं।  मैं एक सूफी इंसान हूं। कहीं भी जमीन ले कर घर बनाऊंगी। अपने साथ कुछ जानवर रख लूंगी। 
 
किस तरह के जानवर? 
सभी तरह के गधा, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, हाथी, ऊंट। मैं एक संस्था रेसक्यू के लोगों के साथ साथ काम करती हूं। वे भी जानवरों के लिए काम करते हैं। मैं शहरों में रह सकती हूं, लेकिन मेरा मन अभी भी ऐसी ही जगहों पर रमता है। 
 
मुंबई के ट्रैफिक से कैसे दो-चार होती हैं आप? 
मेरा कई बार शूट मुंबई स्थित कोलाबा में होता है। मेरे घर से वहां पहुंचने में कम से कम ढाई घंटे लग जाते हैं। मैं तो ड्रायवर को भेज देती हूं। फिर मैं सो जाती हूं या उतने समय में वर्क आउट कर लेती हूं। जैसे ही समय करीब आने लगता है मैं अपने चेहरे को ढंक कर लोकल से कोलाबा की तरफ निकल जाती हूं। लोकल में लोग ना पहचाने इसके लिए स्कार्फ या स्टोल के अलावा आंखों को बड़े से गॉगल्स से ढंक लेती हूं। सिर्फ 40-50 मिनिट में कोलाबा पहुंच जाती हूं। 
 
अगर किसी ने पहचान लिया तो? 
तो क्या हुआ? वे लोग या लेडीज कंपार्टमेंट में बैठीं महिलाएं कहेंगी कि फोटो या सेल्फी लेनी है। मैं कहूंगी ले लो। इसके बदले में मुझे सोने या खाने का समय मिल जाता है तो क्या बुरा है। 
 
लगता है बहुत नाराज हैं आप सरकार से, कभी ट्रैफिक तो कभी कोई और बात को लेकर। 
हां, मैं इतना टैक्स भरती हूं, लेकिन कोई सहूलियत नहीं मिलती।  ना मेरे लिए दवाइयां फ्री है, ना पढ़ाई। मेरी कमाई का 33 प्रतिशत सरकार के पास जा रहा है, लेकिन मुझे कुछ नहीं मिलता है। मैं हाल ही में स्वीडन में थी। वहां 50 से 55 प्रतिशत टैक्स है, लेकिन बदले में आपको हेल्थ चेकअप फ्री मिलता है। कितने भी साल पढ़िए, 25 साल या 30 साल, आपकी पढाई फ्री.। बच्चों के दांतों में रूट कनाल हो या और कोई समस्या, सरकार खर्च उठाएगी। आप बूढ़े हो गए हैं तो आपका खर्च सरकार उठाएगी, यानी आपके लिए सरकार हर काम करेगी। 

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