फिल्म 'सूरमा' के निर्देशक शाद अली से वेबदुनिया की खास बातचीत

'मैं संदीप सिंह के बारे में जानता था। आप स्पोर्ट्स देख रहे हैं, तो थोड़ी-बहुत मालूमात होती है। लेकिन संदीप के बारे में मुझे विस्तार से तब मालूम हुआ, जब मैंने उनके हाथों की लिखी जीवनी पढ़ी। चित्रांगदा ने मुझे संदीप की जीवनी दी थी। जब पढ़ा, तब समझ में आया कि वो क्या है?
इस हफ्ते फिल्म 'सूरमा' लोगों के सामने आई है।'
 
फिल्म के निर्देशक शाद अली से फिल्म के बारे में बात कर रही हैं 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष
 
आप कुछ समय अंतराल पर निर्देशन कर रहे हैं। कोई खास वजह?
 
मेरी फिल्म 'सूरमा' पर मैंने दूसरे ही दिन से काम करना शुरू कर दिया था, मतलब 'ओके जानू' रिलीज हुई और 'सूरमा' पर काम शुरू कर दिया। हां, 'किल दिल' के समय मैं लगभग 7 सालों के बाद निर्देशन में लौटा था। 'किल दिल' के पहले करीब 3 साल तक मैं 'रावण' के लिए मणि सर के पास चला गया था। आने के बाद फिर स्क्रिप्टिंग करने में 2 साल लग जाते हैं, फिर 'किल दिल' बनाई।
 
निर्देशक बनने के बाद असिस्टेंट बनना कैसा लगता है?
 
मैं तो होस्टेस में रह चुका हूं, तो मुझे आदत है हर 2-3 सालों में रीयूनियन में जाते रहने की। मणि सर के साथ काम करने के लिए जाते रहना मेरे लिए बिलकुल वैसा ही है। मुझे भी मजा आता है उनके साथ काम करने में। वैसे भी उन्होंने ही तो मुझे सब कुछ सिखाया है। मैं तो जाता रहता हूं उनके पास। उन्हें भी मेरे आने से अच्छा लगता है कि अब उन्हें कम चिल्लाना होगा या भागा-दौड़ी कम करनी होगी और अब उनके काम थोड़ी आसानी से हो जाएंगे। मैं और मणि सर आपसी कंपनी का लुत्फ लेते रहते हैं।
 
बतौर निर्देशक आपको लगता है कि 'सूरमा' के जरिए लोगों के हॉकी को लेकर प्यार जागेगा?
 
बिलकुल। हालांकि इस फिल्म में हॉकी की बात कम की गई है लेकिन जो भी ये फिल्म देखेगा, उसे अपने परिवार के बारे में जरूर सोचने का मौका मिलेगा। संदीप सिंह भी जब कठिन समय से गुजर रहे थे, तो उनके परिवार और भाई ने ही उनका साथ निभाया था। संदीप ने खुद कितना संघर्ष किया। इस फिल्म में हॉकी भी बहुत अच्छी लग रही है। लोग फिल्म देखेंगे तो उन्हें हॉकी से प्यार हो ही जाएगा।
 
जीते-जागते इंसान की बायोपिक बनाना आसान होता है या मुश्किल?
 
दोनों। लेकिन अगर जिसके जीवन पर फिल्म बन रही हो, अगर वो आपके साथ हो तो फिल्म बनाना आसान हो जाता है। आप एक ईमानदार फिल्म बना रहे हैं। 'सूरमा' के बनते समय और आज भी संदीप सिंह हमारे साथ में हैं। ये पूरी फिल्म उनकी निगरानी में बनी हुई है और 'सिनेमैटिक लिबर्टी' जैसे शब्द या बात का इस्तेमाल करना ही है, ऐसा कोई कानून तो नहीं है ना। 
 
फिल्म की हीरोइन के लिए चित्रांगदा को ही क्यों नहीं लिया गया, वो तो निर्माता भी हैं?
 
उनके पास अपनी बहुत सारी फिल्में हैं। वो अभी भी शूट कर रही हैं। जब 'सूरमा' बन भी रही थी तब भी वो अपनी फिल्मों में मसरुफ थीं। जब उन्होंने मुझे 'सूरमा' की कहानी दी थी, हम तबसे इस बात पर स्पष्ट थे कि चित्रांगदा सिर्फ निर्माता होंगी, न कि अभिनेत्री। 

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आप जाने-माने परिवार से ताल्लुक रखते हैं, तो क्या कोई बायोपिक आप अपने घर वालों पर बनाएंगे?
 
काम चल रहा है। मेरी नानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल पर बायोपिक बनाना चाहता हूं। अभी लिखना शुरू करने वाला हूं। वैसे भी मैं बचपन में अपने नाना कर्नल प्रेम सहगल और कैप्टन लक्ष्मी सहगल यानी नानी के पास ही पला-बढ़ा हूं। 

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