ट्यूबलाइट इमोशनल फिल्म है: सलमान खान

सलमान की निजी जिंदगी में विदेशी हसीनाएं आती-जाती रहती हैं, चाहे वो सोमी अली हों, कैटरीना हो, लूलिया हों। वैसे ही उनकी फिल्म में भी विदेशी बाला आना कोई नई बात नहीं है। शुरुआत हुई फिल्म 'मैरीगोल्ड' की अली लार्टर से, फिर आईं जैकलीन फर्नांडीस। इस बार उनकी फिल्म 'ट्यूबलाइट' की हीरोइन चीन से आई हैं। अब उनका दिल चीनी जैसा है, ये तो मालूम नहीं लेकिन नाम है जू जू जिन्हें सलमान बहुत ही चिल्डआउट मानते हैं। सलमान कहते हैं कि जूजू बहुत प्रोफेशलन हैं। सेट पर भी वो बड़ी तमीज से पेश आती थीं। मुझे पहले तो लगा था कि शायद भाषा की वजह से एक्टिंग करने में दिक्कत महसूस हो लेकिन मैं यूं ही परेशान हो रहा था।
 
सलमान आगे बताते हैं कि एक बार उन्होंने सेट पर जू जू के लिए चायनीज खाना भी मंगवाया था लेकिन हमारे देश के चायनीज खाने को तो वो पहचान ही नहीं सकीं। उन्हें सिर्फ फ्राइड राइस समझ में आया। उनके देश में बनने वाला चायनीज और हमारे देश का बना चायनीज खाना बहुत अलग होता है। हमारे देश में बहुत सारे मसाले डलते हैं लेकिन चीन में ऐसा नहीं होता है। वहां कम मसाले वाला सादा खाना बनता है। उनकी फिल्म 'ट्यूबलाइट' से कुछ और जुड़े सवाल पूछे 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष ने।
 
फिल्म में भारत और चीन के युद्ध की पृष्ठभूमि है। आप इस युद्ध को किस तरह से देखते हैं?
देखिए ये फिल्म है और उसकी कहानी है। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता हूं। ये मेरे भी जन्म के पहले हुआ है।
 
आप इस फिल्म को चीन में रिलीज करने वाले हैं?
हमारी कोशिश तो है कि ये फिल्म वहां भी जाए। उसके लिए बातचीत भी कर रहे हैं। लेकिन चीन की अपनी एक पॉलिसी है कि वो सालभर में कुछ 50-60 विदेशी फिल्मों को ही प्रदर्शित करने की इजाजत देता है। तो देखते हैं कहां तक हमें सफलता मिलती है।
 
आपने कहा कि इस फिल्म ने आपको बहुत थका दिया है?
हां, ये फिल्म बहुत इमोशनल फिल्म है। कॉमेडी फिल्म में आप बहुत सारी बातें ओवरड्यू कर सकते हो लेकिन इमोशनल फिल्म में ध्यान देना होता है कि कहीं दर्शकों के लिए ज्यादा न हो जाए। आप एक ऐसी फिल्म कर रहे हैं जिसमें दो भाई हैं। एक जंग पर लड़ने जाता है तो दूसरे को उसे वापस लेकर आना होता है। तो आप कितने भी बड़े अभिनेता क्यों न हो, जब आप अपने सगे भाई के साथ काम करते हैं तो इमोशनल हो ही जाते हैं। जैसे ही कोई लाइन इस तरह की आई कि आप फिर से इमोशनल हो जाते हैं। फिर ऐसे सीन आप दिन के 6-6 घंटे कर रहे होते हैं। फिर मालूम पड़ता था कि एक और इमोशनल सीन आ गया तो मैं पूछता था फिर से रोना है क्या? अच्छा अगले दिन भी रोना है क्या? अब बात यहां खत्म नहीं होती है। मुझे कॉमेडी सीन भी करने हैं, फिर मुझे खुशी के आंसू भी रोने होंगे। जब बहुत इमोशनल सीन कर रहे थे तो लगा कि कितना भारी-भरकम सीन है। कभी दूसरा हल्क-फुल्का सीन था तो लगा कि कोई इमोशन ही नहीं है। मैं तो बहुत थक गया था।
 
आपने कोई तो रास्ता निकाला होगा?
मैंने सोचा कि एक सीन मैं रोने वाला इमोशन वाला रखता हूं, तो दूसरा थोड़ा अलग किस्म का ताकि बात संतुलन में रहे। वैसे भी आप खुद रोएं या ग्लिसरीन के आंसू- देखने वाले को मालूम नहीं पड़ता है। मुझे तो ग्लिसरीन ज्यादा ठीक लगता है। शॉट के लिए तैयार हो जाओ, फिर आंखों में डालो, फिर शॉट शुरू करो। आंसू टपकाओ और जैसे ही शॉट ओके हुआ कि आप मलमल के कपड़े से पोंछ दो और आप बिलकुल ठीक। लेकिन यहां तो मेरा अपना भाई था, तो कुछ ज्यादा ही इमोशनल हो गया था।
 
इसके पहले 'लिटिल बॉय' नाम से लगभग ऐसी ही फिल्म बन चुकी है। आपने वो फिल्म देखी है?
नहीं, मैंने नहीं देखी। मुझे तो बहुत बाद में मालूम पड़ा कि ऐसी कोई फिल्म हॉलीवुड बना चुका है, तो मैंने सबसे पूछा कि ऐसी कोई फिल्म है और क्या उस जैसा कुछ हमारी फिल्म में है? तो मुझे बताया गया कि हां कुछ चीजें ऐसी हैं इसमें, तो मैंने कहा कि उस फिल्म के राइट्स खरीद लेते हैं, क्योंकि कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए इसमें, आखिर फिल्म में निर्माता के जगह पर मेरी मां का नाम लिखा है।

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