अमिताभ बच्चन की अपने लंबे करियर में कई निर्देशकों के साथ जोड़ी जमी, चाहे वो 'अमर अकर एंथनी' वाले मनमोहन देसाई हो, 'जंजीर' वाले प्रकाश मेहरा हो, 'दीवार' वाले यश चोपड़ा हो या 'शोले' वाले रमेश सिप्पी हो। इन निर्देशकों ने अमिताभ की एंग्री यंग इमेज वाली छवि को खूब भुनाया। एक और निर्देशक हैं जिनके साथ अमिताभ ने कई फिल्में की जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री ऋषि दा कहती हैं यानी कि ऋषिकेश मुखर्जी। जहां 1970 और 80 के दशक में अमिताभ “एंग्री यंग मैन” के रूप में लोकप्रिय थे, वहीं ऋषिकेश ने उन्हें संवेदनशील, कोमल और जटिल पात्रों में उतारकर उनकी अभिनय क्षमता के अन्य पहलुओं को सामने लाया। ऋषिकेश मुखर्जी और अमिताभ बच्चन की जोड़ी बॉलीवुड के उन दुर्लभ कॉम्बिनेशन में से है, जिन्होंने अभिनेता की बहुमुखी प्रतिभा को बड़े पर्दे पर निखारा। ऋषिदा की फिल्मों में अमिताभ का कलाकार बाहर आया और उन्हें विविध भूमिकाएं निभाने को मिली। ऋषि दा ने उन्हें 'एंग्रीयंग मैन' छवि से बिलकुल अलग, संवेदनशील, जटिल और टूटने वाले मानवीय पात्रों में परखने का मौका दिया। आनंद (1971), अभिमान (1973), नमक हराम (1973), मिली (1975), चुपके चुपके (1975), आलाप (1977), मंजिल (1979) जुर्माना (1979) और बेमिसाल (1982) फिल्मों में ऋषिकेश ने अमिताभ को ऐसी भूमिकाएं दीं, जो उनकी “गुस्सैल नायक” वाली छवि से बिलकुल अलग थीं। 'मिली' में जरूर वे 'एंग्रीयंग मैन' के रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन यह गुस्सैल नायक प्रकाश मेहरा या रमेश सिप्पी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले गुस्सैल नायक से बिलकुल जुदा था।
आनंद (1971): संवेदनशील चिकित्सक का रोल
आनंद यूं तो राजेश खन्ना की फिल्म के रूप में याद की जाती है, लेकिन इसमें एक सशक्त किरदार डॉ. भास्कर का भी था जिसकी भूमिका अमिताभ बच्चन ने की थी, जो मुख्य किरदार आनंद के साथ संबंधों में भावनात्मक गहराई जोड़ता है। आनंद से अमिताभ और ऋषिदा का सफर साथ में शुरू हुआ। आनंद बनाते-बनाते ऋषिदा जैसा निष्णात निर्देशक अमिताभ की प्रतिभा को भांप चुका था और मन बना चुका था कि वह इस प्रतिभा के साथ आगे भी फिल्म बनाते रहेगा। 'आनंद' में अमिताभ की भूमिका छोटी जरूर थी, लेकिन उनके अभिनय ने भावनाओं की सूक्ष्मता को प्रभावी ढंग से दर्शाया। यही वजह है कि उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार भी मिला। ऋषिकेश ने अमिताभ को इस रोल के जरिए यह दिखाने का मौका दिया कि उनका अभिनय सिर्फ उग्रता पर आधारित नहीं है, बल्कि कोमलता और भीतर के दमन को भी व्यक्त कर सकता है।
अभिमान (1973): आत्मगौरव और मनोवैज्ञानिक जटिलता
Abhimaan में अमिताभ एक प्रसिद्ध गायक का किरदार निभाते हैं, जो अपने अहंकार और वैवाहिक जीवन की नाजुकताओं के बीच संघर्ष करता है। यहाँ अमिताभ ने भावनात्मक त्रीवता और अंदरूनी असुरक्षा का अद्भुत मिश्रण पेश किया। ऋषिकेश ने उन्हें एक ऐसे किरदार में रखा, जो गहराई और संवेदनशीलता दोनों दर्शाता है। अमिताभ ने बिना लाउड हुए अपने किरदार के अहंकार को बखूबी परदे पर उकारा जो अपनी गायक पत्नी की सफलता से विचलित हो जाता है।
नमक हराम (1973): दोस्ती और सामाजिक संघर्ष
दो सुपरसितारे राजेश खन्ना और अमिताभ ने दो ही फिल्में साथ की थी और दोनों के ही निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे। आनंद के बाद Namak Haraam में दोनों ने साथ में स्क्रीन शेयर की। यह दो दोस्तों की कहानी थी जो धीरे-धीरे अलग ही रूप ले लेती है। अमिताभ का किरदार धीरे-धीरे सामाजिक संघर्ष और व्यक्तिगत सिद्धांतों के बीच बदलता है। ऋषिकेश ने उन्हें मित्र की संवेदनशील भूमिका दी, जिसमें भावनात्मक बहाव और अंततः आत्मावलोकन की झलक थी। यह रोल उनके गुस्सैल हीरो वाले अवतार से पूरी तरह अलग था जिसमें ग्रे शेड्स भी नजर आते हैं।
मिली (1975): प्रेम और देखभाल की कहानी
Mili में अमिताभ ने कठोर दिखने वाले, लेकिन अंततः संवेदनशील व्यक्ति का रोल निभाया, जो दुनिया से नाराज है और खुद को दुनिया की निगाहों से बचा कर रखना चाहता है। यहां अमिताभ के किरदार को कम डॉयलॉग दिए गए इसलिए बतौर कलाकार अमिताभ को कम शब्दों में भाव गढ़ना, आंखों और बॉडी लैंग्वेज के जरिए कहानी बयान करना था और उन्होंने शानदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। ऋषिकेश के सादगी भरे निर्देशन ने अमिताभ को अपनी भावनाओं को सूक्ष्म और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने का अवसर दिया।
चुपके चुपके (1975): हास्य और सूझबूझ
Chupke Chupke में धर्मेन्द्र लीड रोल में हैं और अमिताभ की भूमिका उनकी तुलना में छोटी है, लेकिन धर्मेन्द्र के दबदबे में भी वे असर छोड़ जाते हैं। इस कॉमेडी में अमिताभ ने हास्यपूर्ण और सुझबुझ भरे किरदार का अभिनय किया। ऋषिकेश ने उन्हें “एंग्री यंग” छवि से पूरी तरह अलग रोल देकर उनकी कॉमिक टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी का फायदा उठाया। यह दर्शकों का दुर्भाग्य रहा कि अमिताभ ने बहुत ही कम हास्य भूमिकाएं अदा की।
आलाप (1977): कलाकार का संघर्ष
Alaap में अमिताभ ने एक संगीत से जुड़े युवा का किरदार निभाया, जो अंततः आत्ममंथन करता है। ऋषिकेश ने उन्हें संवेदनशील, गंभीर और आत्मावलोकन करने वाले पात्र में रखा, जो उनकी पहले की उग्र छवि से बिलकुल अलग था। इस फिल्म का मूड उदास, गंभीर और सूक्ष्म था, और अमिताभ ने उसी अनुरूप अपनी ऊर्जा को नियंत्रित रखा। यह फिल्म रिलीज हुई तब अमिताभ बहुत बड़े स्टार थे और अपनी छवि के विपरीत उन्होंने रोल करने का जोखिम उठाया था।
मंजि़ल (1979): संघर्षशील युवा और आत्ममंथन
Manzil में अमिताभ ने अजय का किरदार निभाया, जो एक महत्वाकांक्षी युवक है और ऊंचाई पाने की कोशिश में कई झूठ बोलता है, लेकिन अंततः अपने कर्मों के परिणामों से जूझता है। ऋषिकेश मुखर्जी ने यहाँ अमिताभ के “भटके हुए” नायक को यथार्थ की जमीन पर लाकर खड़ा किया। इस फिल्म का गीत “रिमझिम गिरे सावन” आज भी याद किया जाता है और उसमें अमिताभ का संयमित अभिनय यह दर्शाता है कि रोमांटिक दृश्यों में भी वे कितनी सहजता से भावनाएं जगा सकते हैं।
जुर्माना (1979): स्वार्थी से संवेदनशील का सफर
Jurmana में अमिताभ ने शुरुआत में स्वार्थी, हल्का-सा घमंडी पात्र निभाया, जो कहानी के साथ बदलता और सुलझता है। ऋषिकेश ने इस परिवर्तन की भावनात्मक जटिलता को बड़े विस्तार से दिखाया। ऋषिकेश ने अमिताभ के चेहरे और विरामों से अभिनय करवाया, जहाँ शब्दों से ज्यादा उनकी आँखें बोलती हैं।
बेमिसाल (1982): नैतिकता और त्याग का प्रतीक
बेमिसाल एक प्रेम त्रिकोण आधारित फिल्म है जिसमें दो दोस्तों को एक ही स्त्री से प्यार हो जाता है। बेमिसाल में अमिताभ का किरदार पूर्णतः आदर्शवादी और नैतिकता के प्रति प्रतिबद्ध था। ऋषिकेश ने उन्हें ऐसा रोल दिया, जिसमें अभिनय में गहराई और आंतरिक संघर्ष की जरूरत थी। यह रोल ऐसे युवक का है जो त्याग कर रहा है और बाहर से उसे अपने इस त्याग को छिपाकर बुराइयों को दर्शाना है। अमिताभ ने इसे बड़ी सूक्ष्मता और प्रभावशाली ढंग से निभाया।
ऋषिकेश ने अमिताभ को केवल “हीरो” नहीं, बल्कि संवेदनशील और जटिल पात्रों में उतारा। उन्होंने अमिताभ की आंखों, आवाज़ और बॉडी लैंग्वेज का उपयोग करके भावनाओं को प्राकृतिक और असरदार ढंग से दिखाया। अमिताभ की बहुमुखी प्रतिभा ऋषिकेश की निर्देशकीय सूझबूझ से पूरी तरह सामने आई।
ऋषिकेश मुखर्जी और अमिताभ बच्चन का रचनात्मक रिश्ता यह साबित करता है कि सिनेमा में लोकप्रियता से अधिक अहम संवेदना होती है। ऋषिकेश ने अमिताभ की “एंग्री यंग मैन” छवि को तोड़ा, और दर्शकों को दिखाया कि उसी व्यक्ति के भीतर एक कोमल, आत्मसंवेदनशील, सोचने वाला मनुष्य भी बसता है। उनकी यह साझेदारी बॉलीवुड के इतिहास में निर्देशक और अभिनेता की सबसे परिपक्व जोड़ी के रूप में से एक है।