नरगिस : फिल्म तारिकाओं की मदर इंडिया

WD Entertainment Desk

शुक्रवार, 3 मई 2024 (12:03 IST)
nargis dutt death anniversary: नरगिस अभिनेत्री के बजाय डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन सुनहरे संसार के रूपहले परदे पर जब वह आ गई, तो उसने अभिनय के व्यवसाय को प्रतिष्ठा दिलाई। 1957 में 'मदर इंडिया' के समय जब वह अपने जीवन की सफलता के शीर्ष पर थीं, उसने सफेद साड़ी बदलकर दुल्हन की लाल साड़ी पहन ली। सुनील दत्त से शादी के बाद सामाजिक कार्यों में संलग्न नरगिस ने 'अभिनेत्री' को और महत्वपूर्ण बनाया क्योंकि वह राज्यसभा की सदस्य मनोनीत की गई थी। नरगिस पहली भारतीय तारिका हैं जिसे कार्लोवी वारी के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कार मिला था। 

जद्दनबाई की फिल्म कंपनी का नाम 'संगीत' था। उनकी पुत्री कनीज फातिमा ने पांच वर्ष की आयु में 'तलाशे-हक' नामक फिल्म में छोटा-सा रोल किया था। 1943 में मेहबूब खान ने 'तकदीर' में कनीज को नरगिस के नाम से प्रस्तुत किया था। एक स्वंतत्र निर्माता के रूप में 'तकदीर' महबूब खान की पहली फिल्म थी। 
 
1957 में महबूब खान और नरगिस की 'मदर इंडिया' प्रदर्शित हुई, जो भारतीय चित्रपट का पहला महाकाव्य है। 1967 में नरगिस ने अपने भाई की फिल्म 'रात और दिन' को पूरा करने के लिए कुछ दिन काम किया परंतु 'मदर इंडिया' को उस यात्रा की मंजिल मानना चाहिए जो 'तकदीर' से प्रारंभ हुई थी। 

ALSO READ: Heeramani Review: कोठों से निकली साजिशें और तवायफों-नवाबों में शह-मात का खेल
 
1 जून 1929 को जन्मी नरगिस का अभिनय जीवन मात्र पंद्रह साल का था परंतु अभिनय छोड़ने के बाद तेईस साल तक वह फिल्मों से जुड़ी रहीं, अपने पति और बच्चों के माध्यम से। नरगिस ने पंद्रह साल में जो लोकप्रियता अर्जित की थी- निवृत्ति के 23 वर्षों में वह कायम रही। छठे और सातवें दशक की पीढ़ी ने नरगिस की फिल्में नहीं देखी थी, परंतु वे नरगिस की महानता के कायल थे। 
 
नरगिस ने अपनी छवि इतनी कुशलता से गढ़ी थी कि उसकी लोकप्रियता में कभी कमी नहीं आई। इसीलिए दक्षिण भारत के वासन ने सातवें दशक में पूरी फिल्म के बजट के बराबर धनराशि का प्रलोभन नरगिस को दिया जिसे उसने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। 
 
नरगिस की पहली फिल्म में दो नायक थे- मोतीलाल और चंद्रमोहन। उस समय नायिकाएं अभिनय में अतिरेक करती थीं और घोर नाटकीय थीं। पारसी थिएटर का अंदाज सबके अभिनय पर छाया था। नरगिस ने स्वाभाविकता पर जोर दिया, जो उसने मोतीलाल से सीखा। अत: वे भारतीय सिनेमा की पहली स्वाभाविक अभिनेत्री रहीं। 
 
नरगिस ने परंपरागत रोल के बदले आधुनिक पाश्चात्य असरवाली भूमिकाओं को चुना जिसके स्वच्छंद हाव-भाव युवा वर्ग के दर्शकों को बहुत पसंद आए। अंगरेजों से आजाद होने की प्रक्रिया के वर्षों में नरगिस की भूमिकाओं के उन्मुक्त रूप को लोगों ने बहुत पसंद किया। 
 
आजादी के बाद बदलते हुए समाज ने नरगिस की भूमिकाओं में अंतर्मन को देखा और इतना पसंद किया कि निर्माता नरगिस का नाम नायक के पहले देने लगे- यहां तक कि 'मदर इंडिया' में तो फिल्म के नाम के पहले ही नरगिस का नाम आया और एक निर्माता ने तो फिल्म का नाम ही 'नरगिस' रखा। 
 
नरगिस ने परंपरागत भूमिकाओं को भी नए स्वाभाविक अंदाज में प्रस्तुत किया। उन्हें अपनी जादुई आंखों के प्रभाव की पूरी जानकारी थी और उसका भरपूर प्रयोग भी उसने किया। उसने अपनी समवर्ती नायिकाओं की तरह हाथ-पैर हिलाने के बदले आंखों से भावों को अभिव्यक्त किया। इस तरह अपने नाम को सार्थक किया। 
 
नरगिस ने भारतीय सिनेमा के तीन महारथियों के साथ काम किया। उसने दिलीप कुमार के साथ सात फिल्में कीं जिसमें अंदाज, मेला, हलचल, दीदार और जोगन अत्यंत प्रभावशाली रही। 
 
नरगिस ने राज कपूर के साथ पंद्रह फिल्में की जिनमें अंदाज, आवारा, श्री 420, अनहोनी, चोरी-चोरी, अंबर महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। 
 
महबूब के साथ चार फिल्में कीं जिनमें तकदीर, हुमायूं और मदर इंडिया महान फिल्में सिद्ध हुईं। दिलीप और राज कपूर में नरगिस को लेकर व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा थी परंतु महबूब खान के साथ एक अनाम सृजानत्मक रिश्ता था।
 महबूब खान को उस समय भारी ठेस लगी जब नरगिस ने 'आन' में काम करने से इंकार कर किया। महबूब, दिलीप और राज कपूर, नरगिस के आभा मंडल से मंथमुग्ध थे और मध्य-काल के युग में होते तो नरगिस के लिए तलवारें चल जातीं और सिर कट जाते। ऐसे मनमोहक व्यक्तित्व की धन थीं नरगिस। 
 
नरगिस, मधुबाला की तरह सुंदर नहीं थी और न ही मीना कुमारी की तरह भूमिका में रम जाती थी। परंतु अभिनय और प्रस्तुतिकरण की तकनीक में इतनी निपुण थी कि अपनी कमजोरियों को छुपाकर, अपनी शक्तिशाली आंखों के प्रयोग से भारतीय दर्शक के अंतर्मन में पैठ गई। 
 
कैमरे और कोण की समझ के कारण नरगिस ने अपने 'प्रोफाइल' को ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग किया। भाग्य ने भी साथ दिया कि फरदून ईरानी, जाल मिस्त्री और राधू करमरकर जैसे निष्णात कैमरामेन उन्हें मिले। राज कपूर, महबूब खान और किदार शर्मा जैसे दिग्गज निर्देशकों के सृजन की धुरी थी नरगिस। 
 
अभिनय छोड़ने के बाद नरगिस ने कई सामाजिक कार्य किए और इस क्षेत्र में भी उन्हें इंदिरा गांधी जैसे व्यक्तित्व का साथ रहा। सामाजिक कार्यक्रमों में सफेद साड़ी और मोगरे के फूलों के प्रयोग से नरगिस ने नवधनाढ्यों की गहनों से लदी और बनारसी साड़ियों में लिपटी औरतों को परास्त किया। 
 
नरगिस के बहुआयामी व्यक्तित्व में कुछ ऐसा पारसनुमा जादू था कि जहां भी गईं वहां सृजन का वातावरण ही बनाया। विवाह के पश्चात सुनील दत्त को प्रेरित किया और 'मुझे जीने दो' तथा 'रेशमा और शेरा' जैसी फिल्में बनीं। 
 
नरगिस की मां मुसलमान थी और पिता हिंदू थे तथा पति भी हिंदू ही थे। उनके दो प्रेमियों में दिलीप मुसलमान थे और राज कपूर हिंदू थे। नरगिस कभी भी संकीर्ण सांप्रदायिकता की शिकार नहीं थी बल्कि उसने हिंदू-मुस्लिम सद्‍भाव बढ़ाने के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेहरूजी की वह अनन्य भक्त थीं और स्वयं नेहरूजी उसे बहुत स्नेह करते थे। 
 
आधुनिक भारत की प्रतिनिधि भूमिकाओं के प्रति विशेष मोह था और दूसरी अभिनेत्रियों की तरह संकीर्ण दायरे से ऊपर उठकर बदलते हुए समाज के प्रति वे सजग भी थी। व्यक्तिगत जीवन में आधुनिकता के प्रति इतना मोह होने के बावजूद नरगिस ने 'मदर इंडिया' की पारंपरिक स्त्री भूमिका में जान डाल दी। 
 
'मदर इंडिया' में सोलह साल की नवयुवती से सत्तर साल की दादी मां तक विशाल कैनवास था और नरगिस ने अपने अभिनय से मदर इंडिया को महानतम भारतीय फिल्म बना दिया। 
 
ALSO READ: संजय लीला भंसाली ने अपने पिता की अंतिम इच्छा के बारे में की बात, इस सिंगर का सुनना चाहते थे गाना

महबूब खान ने इसी कथा को 'औरत' के नाम से 1939 में सरदार अख्तर (उनकी पत्नी) के साथ बनाया था। वे चाहते तो मदर इंडिया का नाम भी औरत ही रखते परंतु नरगिस  के सुझाव और प्रभाव के कारण मेहबूब खान ने 'मदल इंडिया' जैसा विशुद्ध अंगरेजी नाम एक सौ प्रतिशत शुद्ध भारतीय कथा का रखा। 
 
नरगिस के दोनों प्रिय फिल्मकार महबूब खान और राज कपूर ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे जबकि नरगिस सीनियर केंब्रिज पास थी। इन बातों का यह अर्थ नही कि नरगिस के बिना महबूब और राज कपूर कुछ नहीं थे क्योंकि दोनों ही फिल्मकारों ने बिना नरगिस के भी कई महत्वपूर्ण फिल्में बनाई हैं। तात्पर्य सिर्फ इतना है कि नरगिस दूसरी अभिनेत्रियों की तरह नहीं होकर फिल्म निर्माण से सृजनात्मक भूमिका निवाह करती थीं। इस चिंतन और सहयोग के कारण ही वे अपनी समकाली अभिनेत्रियों में विशिष्ट स्थान रखती हैं। 3 मई 1981 को उनका निधन हुआ। 
 
प्रमुख फिल्में : 
*  पर्दानशी (1942) * तकदीर (1943) * आनबान (1944) * नरगिस (1946) * रोमियो जूलिएट (1947) * आग (1948) * मेला (1948) * बरसात (1949), अंदाज (1949) * आधी रात (1950) * जोगन (1950) * आवारा, दीदार (1951) * अंबर, आशियाना (1952) * आह (1953) * श्री 420 (1955) * चोरी चोरी (1956) *  मिस इंडिया (1957) * मदर इंडिया (1957) * परदेसी (1957) * अदालत, घर संसार, लाजवंती (1958) * रात और दिन (1967)
 
- जयप्रकाश चौकसे 
(पुस्तक 'परदे की परियां' से साभार)  

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी