क्या आपको पता है कि महान संगीतकार एसडी बर्मन किस फुटबॉल क्लब के फैन थे?

महान संगीतकार एसडी बर्मन, मन्ना डे, नौशाद साहब के अलावा किशोर दा... ये सभी भारतीय संगीत जगत के रसिकों के लिए 'सुर संगम' का ऐसा खजाना छोड़कर गए हैं, जो कभी खाली नहीं होगा। बर्मन दादा के बारे में एक नई जानकारी सामने आई है कि वे संगीत के साथ ही साथ फुटबॉल के जबरदस्त फैन हुआ करते थे। खेल में उनकी टीम कभी हार जाती तो कई दिनों तक वे कोई धुन तक नहीं बनाते थे।
 
 
विविध भारती पर शुक्रवार 5 अक्टूबर को 'विविधा' के अंतर्गत जब वरिष्ठ उद्घोषक कमल शर्मा द्वारा तैयार किए गए कार्यक्रम 'सरगम के सितारे' के संपादित अंश सुनाए गए तो उसमें मन्ना डे ने उक्त खुलासा करते हुए सचिन देव बर्मन (एसडी बर्मन) के बारे में कई दिलचस्प किस्से साझा किए।
 
मन्ना डे ने बताया कि बर्मन दादा बहुत बड़े म्यूजिशियन के साथ ही साथ बहुत मजाकिया किस्म के इंसान थे। उन्हें फुटबॉल के खेल का जबरदस्त शौक था और उनकी प्रिय टीम 'ईस्ट बंगाल' हुआ करती थी जबकि उनके बेटे राहुल देव बर्मन और मेरी (मन्ना डे) फेवरेट टीम 'मोहन बागान' थी।

मुंबई में 'रोवर्स कप' में अकसर फाइनल में ईस्ट बंगाल और मोहन बागान का मुकाबला होता था। यदि ईस्ट बंगाल की टीम हार जाती तो बर्मन दादा गमजदा हो जाते थे और कई दिनों तक कोई धुन नहीं बनाते थे। और यदि ईस्ट बंगाल मोहन बागान को हरा देती तो वे इतने खुश हो जाते थे कि मुझे और राहुल को अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाते थे।
 
मन्ना डे ने बताया कि बर्मन दादा की खासियत थी कि वे किसी भी धुन को तब तक नहीं ओके करते थे, जब तक कि उससे पूरी तरह संतुष्ट न हो जाएं और गाएंगे भी तो उसमें पूरी तरह डूबकर। यही कारण है कि उनका संगीत और आवाज सुनते ही बनती है। कभी आप उनका वो गीत सुन लीजिए...डोली में बिठाई के कहार बीते दिन खुशियों के चार, देके दुख मन को हजार...।
 
दशकों तक एसडी बर्मन से नौशाद साहब का संबंध रहा और उनके जाने के बाद नौशाद ने ही उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया। बर्मन दादा के बारे में नौशाद ने कहा, 'जब भी उनका नाम जेहन में आता है तो बंगाल का लोक संगीत तैर-सा जाता है। हालांकि हुस्न खूबी से शास्त्रीय संगीत को भी उन्होंने बहुत ऊंचाइयां प्रदान कीं। नौशाद के लिए मन्ना डे द्वारा गाया और बर्मन दादा के संगीत से सजा गीत 'तेरे नैना तलाश करे जिसे...' बेहद पसंदीदा रहा।
 
एसडी बर्मन ने दूसरे संगीतकारों को भी हमेशा सराहा। सच्चा संगीतकार प्रेम का पुजारी होता है। उन्होंने संगीत के माध्यम से लोगों को प्रेम करना सिखाया। वे रसभरी धुनों से अपना प्यार बांटते रहे। उनमें एक से बढ़कर एक मीठी धुन बनाने की प्यास थी। उन्होंने जो भी संगीत दिया, उस संगीत से हमारी भी प्यास बढ़ती ही चली गई। 'आज मोहे अंग लगा ले जन्म सफल हो जाए...' गीत का संगीत प्यास को बढ़ाते ही चला जाता है...।
 
भारतीय सिनेमा ने एक वह दौर भी देखा है, जब हर फिल्म में एक 'कैबरे' का होना अनिवार्य हुआ करता था। सचिन देव बर्मन ने कैबरे को भी ऐसा संगीतबद्ध किया कि वह आज भी कर्णप्रिय है। मसलन 'रेशमी उजाला है... मखमली अंधेरा.., आज की रात... ऐसा कुछ करो... हो नहीं सवेरा...।'
 
बर्मन दादा के गीत कभी मुस्कुराने पर मजबूर करते हैं, कभी उमंग भरते हैं और कभी भावुक कर देते हैं। दर्द का ऐसा बादल उमड़ता है, जो हमारी पलकों को भिगो देता है। आप उनका संगीतबद्ध किया गीत ये गीत सुन लीजिए... 'अबके बरस भेज भैया को बाबुल सावन ने लीजो बुलाय रे, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां देजो संदेशा भियाय रे…'।
 
एक समय था, जब बर्मन दादा की धुनों के जरिए भारतीय संगीत में गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम हुआ करता था। संगीत की सरिताएं बहा करती थीं। लेकिन अब वैसी धुनों की संस्कृति लुप्त होती जा रही है। नीरव बंजरता में आज भी वो महान संगीतकार याद आते हैं.. 'ओ रे माझी...मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार…'।
 
किशोर कुमार का मजेदार किस्सा : अशोक कुमार जब पहली बार कोलकाता में एसडी बर्मन के घर अपने छोटे भाई किशोर कुमार को लेकर पहुंचे तो परिचय कराते हुए कहा, 'दादा, ये भी गाता है...। बर्मन दादा ने कहा सुनाओ कुछ... तब किशोर कुमार ने मजे लेकर बर्मन दादा का गाया बंगाली गीत उन्हीं की स्टाइल में सुना दिया। वो बोले ओ अशोक... तुम्हारा भाई तो मेरी नकल करता है लेकिन गाता बहुत अच्छा है।
 
रात में घर आकर सुनाई धुन : किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बर्मन दादा धुन के पक्के थे। एक बार रात 11.30 बजे फोन किया कि 'ऐ किशोर क्या कर रहा है? मैंने कहा सो रहा हूं... वो बोले, मैं तेरे घर के नीचे खड़ा हूं, एक धुन बनाई है, जो सुनानी है, दरवाजा खोल ऊपर आ रहा हूं।'
 
जब खाने के बहाने बुलाया और बंद कर दिए दरवाजे : एक फिल्म में मुझे गवाने के लिए उन्होंने चाल खेली। वो मांसाहार बहुत अच्छा पकाते थे। बोले, किशोर घर आ, तेरे लिए मैंने कुछ बनाया है। फिर जब मैं खाना खा चुका था, तब उन्होंने दरबान से कहा, दरवाजे बंद कर कर दो। कहीं ये भाग नहीं जाए, मुझे इससे एक गीत गवाना है... ये आसानी से पकड़ में नहीं आता...। फिल्म 'आराधना' के सभी गीतों में संगीत में भले ही सचिन देव का नाम आता हो लेकिन असल बात तो ये थी कि ये संगीत उनके बेटे राहुल देव बर्मन ने कंपोज किए थे, क्योंकि तब बर्मन दादा बीमार हो गए थे...।
 
किशोर जब एसडी बर्मन की कसौटी पर खरे उतरे : फिल्म 'मिली' का मशहूर गीत 'बड़ी सूनी-सूनी है...' की रिकॉर्डिंग के वक्त भी बर्मन दादा इतने ज्यादा बीमार थे कि अस्पताल पहुंच गए। जिद थी कि इस गीत को अपनी देखरेख में रिकॉर्ड करेंगे लेकिन तब किशोर कुमार ने उन्हें आश्वस्त किया कि आपकी इच्छा के अनुरूप ही इस गीत को मैं गाऊंगा और न पसंद आए तो हटा देंगे। आखिरकार गीत रिकॉर्ड हुआ और अस्पताल में टेप ले जाकर उन्हें सुनाया। वे संतुष्ट हुए और यह गीत बाजार में आया। ...तो ऐसे महान संगीतकार थे सचिन देव बर्मन।

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