'सामना' में लिखा है कि अक्षय कुमार को मुंबई शहर ने काफी कुछ दिया है, यहां तक की उनकी पहचान यहीं से बनी हैं, उन्होंने इस सपनों के शहर में अपार सफलता पाई है, लेकिन फिर भी उन्होंने कंगना के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला।
मुंबई का अपमान होता रहा, इसकी तुलना POK से कर दी गई लेकिन उन्होंने इसका विरोध नहीं किया, संपूर्ण नहीं तो कम-से-कम आधे हिन्दी फिल्म जगत को तो मुंबई के अपमान के विरोध में आगे आना ही चाहिए था, कंगना का मत पूरे फिल्म जगत का मत नहीं है, ऐसा कहना चाहिए था, कम-से-कम अक्षय कुमार आदि बड़े कलाकारों को तो सामने आना ही चाहिए था, क्या केवल मुंबई इन लोगों के लिए कमाई का जरिया है।
उन्होंने लिखा, दुनियाभर के रईसों के घर मुंबई में हैं लेकिन मुंबई का जब भी अपमान होता है, तो ये सभी गर्दन झुकाकर बैठ जाते हैं, मुंबई का महत्व सिर्फ पैसा कमाने के लिए ही है, फिर मुंबई पर कोई प्रतिदिन बलात्कार करे तो भी चलेगा, इन सभी को एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि ठाकरे के हाथ में महाराष्ट्र की कमान है, इसलिए सड़क पर उतरकर भूमिपुत्रों के स्वाभिमान के लिए राड़ा वगैरह करने की आवश्यकता आज नहीं है।
वहीं इस लेख में कंगना के हर बयान पर निशाना साधा गया है। जब बीएमसी ने उनके ऑफिस में तोड़फोड़ की थी, तब कंगना ने इसे राम मंदिर से जोड़ दिया था। अब सामना के जरिए इसे सिर्फ और सिर्फ कंगना का एक ड्रामा बताया गया है। उन्हें उनका पाकिस्तान वाला बयान बार-बार याद दिलाया जा रहा है।