भारतीय सिनेमा की सबसे सशक्त अभिनेत्रियों में से एक तब्बू ने फेमिना की अक्टूबर कवर स्टोरी में अपने करियर से जुड़ी कई अनसुनी बातें साझा कीं। मकबूल, चीनी कम, हैदर, दृश्यम और क्रू जैसी फिल्मों में दमदार अभिनय कर चुकीं तब्बू ने कहा कि उनके लिए फिल्में चुनना हमेशा दिल और दिमाग दोनों का निर्णय होता है।
कभी सौ ऑफर मिलते हैं, पर एक भी सही नहीं लगता
तब्बू ने बताया कि इंडस्ट्री में आज एक्टर्स के पास अवसरों की कमी नहीं है, लेकिन सही चुनाव करना ही सबसे मुश्किल काम है। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने 37 शो ठुकराए होंगे, ये मैं मजाक में कहती हूं, पर सच में मैंने बहुत ऑफर रिजेक्ट किए हैं। कभी-कभी सौ ऑफर मिलते हैं, लेकिन कोई भी दिल को नहीं छूता।”
निर्देशक पर भरोसा ही असली कुंजी
अपने फिल्म चयन की प्रक्रिया पर बात करते हुए तब्बू ने कहा, “सच कहूं तो सबकुछ डायरेक्टर पर निर्भर करता है। अगर मुझे निर्देशक पर भरोसा है, तभी मैं फिल्म करती हूं। वही फिल्म को दिशा देता है।” उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए सिर्फ किरदार नहीं, बल्कि पूरी टीम पर विश्वास होना जरूरी है।
फिल्ममेकिंग की थकाऊ प्रक्रिया से दूरी
तब्बू ने माना कि आजकल फिल्मों की प्रक्रिया काफी थकाऊ और लंबी हो गई है। उन्होंने कहा, “बहुत मेहनत, बहुत लोग और बहुत शोर-शराबा होता है। जब तक किसी फिल्म से मुझे कुछ बड़ा हासिल नहीं लगता, मैं उसका हिस्सा नहीं बनना चाहती।”
फिल्में देखने का भी अलग अंदाज़
तब्बू ने बताया कि वे फिल्मों को भी बहुत चयनित रूप से देखती हैं। “मेरे लिए सिनेमा देखने का असली मज़ा थिएटर में है, पॉपकॉर्न, चाय, अंधेरा और लाउडस्पीकर के साथ। लेकिन मैं हर फिल्म नहीं देख सकती। कभी मन लगता है, कभी ऊब जाती हूं।”
एक्टर नहीं, एक सोच हैं तब्बू
अपनी पहचान को लेकर उन्होंने कहा, “लोग कई तरह के लेबल लगाते हैं, लेकिन वो बस उनके नजरिए होते हैं। मैं अपने दोस्तों, मां और मीडिया के लिए अलग-अलग शख्स हूं।” तब्बू की यह ईमानदारी और आत्मविश्वास ही उन्हें इंडस्ट्री में अलग बनाता है – एक ऐसी अभिनेत्री जो सिर्फ किरदार नहीं चुनती, बल्कि सिनेमा की आत्मा को महसूस करती हैं।