टेबल नं. 21 : फिल्म समीक्षा

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बैनर : नेक्स्ट जेन फिल्म्स प्रोडक्शन्स, इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : सुनील लुल्ला, विकी राजान
निर्देशक : आदित्य दत्त
कलाकार : परेश रावल, राजीव खंडेलवाल, टीना देसाई
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 48 मिनट

बिग बॉस, कौन बनेगा करोड़पति, खतरों के खिलाड़ी, सच का सामना जैसे रियलिटी और गेम शो की याद ‘टेबल नं.21’ देखते हुए आती है। हर शो का कुछ अंश ‘टेबल नं 21’ में नजर आता है और गेम का रोमांच और मजा इस फिल्म में मौजूद है।

विवान (राजीव खंडेलवाल) को नौकरी‍ की तलाश है। उसे और उसकी पत्नी सिया (टीना देसाई) को फिजी यात्रा का इनाम खुलता है। आने-जाने सहित सारी पांच सितारा सुविधाएं उन्हें फ्री में मिलती हैं। एक रिसॉर्ट में उनकी शादी की पांचवी वर्षगांठ को भव्य तरीके से मनाया जाता है।

यहां उनकी मुलाकात रिसॉर्ट के मालिक खान (परेश रावल) से होती है जो दोनों के आगे एक गेम खेलने का प्रस्ताव रखता है। आठ प्रश्न पूछे जाएंगे जो विवान और सिया की जिंदगी से संबंधित होंगे। हर प्रश्न का उत्तर हां या ना में देना होगा। सच बोलना होगा। हर जवाब के बाद एक टास्क पूरा करना होगा। इसके बदले में 21 करोड़ रुपये मिलेंगे।

विवान-सिया चुनौती स्वीकारते हैं और गेम शुरू होता है। धीरे-धीरे समझ में आता है कि यह गेम उतना आसान नहीं है जितना की दिखाई दे रहा था, लेकिन इस गेम का रूल है कि इसे आप बीच में छोड़ नहीं सकते हैं।

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हर प्रश्न के साथ कहानी आगे बढ़ती है क्योंकि उत्तर दोनों की जिंदगी से संबंधित है। उत्तर देने के पहले एक फ्लेशबैक दिखाया जाता है। यहां पर स्लमडॉग मिलियनेयर की याद आती है क्योंकि उसका प्रस्तुतिकरण भी कुछ इसी तरह का था। संजय दत्त की जिंदा भी याद आती है।

टेबल नं. 21 की खासियत ये है कि इसमें आगे क्या होने वाला इसका अंदाज लगाना मुश्किल होता है। दर्शकों की हालत विवान और सिया की तरह होती है, उन्हें भी पता नहीं रहता है कि कौन सा प्रश्न और टास्क उनका इंतजार कर रहा है।

शांतनु रे, शीर्षक आनंद और अभिजीत देशपांडे ने मिलकर स्क्रिप्ट लिखी है और वे दर्शकों को बांधने में सफल रहे हैं। परदे पर जो दिखाया जा रहा है उससे सहमत होते हुए हमें घटनाक्रम को देखना पड़ता है और फिर अंत में, ऐसा क्यों हुआ, का जवाब दिया जाता है, जिससे संतुष्ट हुआ जा सकता है।

थ्रिलर मूवी के नाम पर लेखक और निर्देशक ने कुछ छूट ली है और कुछ खामियां भी हैं, मसलन विवान और सिया का 21 करोड़ रुपये का गेम खेलने के लिए अचानक राजी हो जाना। एक बार भी उनके मन में संदेह नहीं उठता कि इतनी आसानी से उन्हें इतनी बड़ी रकम क्यों दी जा रही है?

सिया के कुछ ऐसे राज, जो विवान को भी नहीं पता रहते हैं, खान को मालूम रहते हैं, आखिर उसने ये सब जानकारी कैसे जुटाई इस बारे में भी रोशनी नहीं डाली गई है? लेकिन ये खामियां इतनी बड़ी नहीं है कि फिल्म देखते समय खलल पैदा करें। इन्हें इग्नोर किया जा सकता है।

निर्देशक आदित्य दत्त ने स्क्रिप्ट को खूबसूरती से परदे पर उतारा है। शुरुआती रीलों में फिल्म स्लो है, लेकिन गेम शुरू होते ही रफ्तार बढ़ जाती है और दर्शक पूरी तरह से फिल्म में डूब जाता है। उन्होंने सस्पेंस के प्रति उत्सुकता बनाए रखी है। फिल्म महज तीन किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है, लेकिन बोरियत नहीं फटकती है।

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अभिनय की बात की जाए तो सबसे ऊपर परेश रावल का नाम आता है। अपने टिपिकल अंदाज में उन्होंने खान का किरदार निभाया है। राजीव खंडेलवाल ने अपनी पूरी प्रतिभा का इस्तेमाल नहीं किया है। कई जगह वे असहज नजर आते हैं। टीना देसाई अभिनय के मामले में औसत हैं।

कुल मिलाकर टेबल नं 21 एक ऐसी थ्रिलर है जिसे देखते हुए न केवल टाइम अच्छे से पास होता है बल्कि कुछ नया भी देखने को मिलता है।

रेटिंग 3/5
1-बेकार, 2-औसत, 3-अच्छी, 4-बहुत अच्छी, 5-अद्भुत

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