भिंडी बाजार इनकॉर्पोरेशन : फिल्म समीक्षा

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निर्माता : करण अरोरा
निर्देशक : अंकुश भट्ट
कलाकार : केके मेनन, प्रशांत नारायण, पियूष मिश्रा, पवन मल्होत्रा, शिल्पा शुक्ला, दीप्ति नवल, कैटेरीना लोपेज, वेदिता प्रताप सिंह
सेंसर सर्टिफिकेट : ए
रेटिंग : 1.5/5

अपराध की दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इस दुनिया के लोग प्यार, दोस्ती, रिश्ते सब कुछ भूल जाते हैं। रास्ते में पड़ने वाली बाधा को हटाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस विषय को लेकर कई फिल्में पहले भी बनी हैं और यही कहानी है ‘भिंडी बाजार’ की।

फिल्म का प्रस्तुतिकरण में निर्देशक और स्क्रीनप्ले लेखकों ने कुछ नया करने की कोशिश की है और इसमें उन्हें असफल मिली है। कई उतार-चढ़ाव देकर दर्शकों को चौंकाने की कोशिश की गई है, लेकिन ये प्रयास साफ नजर आते हैं। फिल्म एक रूटीन ड्रामा लगता है जो किसी तरह का असर नहीं छोड़ पाता है।

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मुंबई के भिंडी बाजार में जेबकतरों का एक गैंग है जिसका प्रमुख है मामू (पवन मल्होत्रा)। पांडे (पियूष मिश्रा) कभी मामू के लिए काम करता था, लेकिन विवादों के चलते उसने अपना गैंग बना लिया। दोनों गैंग के सदस्य एक-दूसरे को मारने का कोई असवर नहीं छोड़ते।

इधर मामू के गैंग के कुछ युवा सदस्य जैसे तेज (गौतम शर्मा) और फतेह (प्रशांत नारायणन) मामू बनना चाहते हैं ताकि उनका राज चले। लगातार वे षड्यंत्र रचते रहते हैं। कहानी में कुछ महिला पात्र भी हैं, जिनकी वफादारी किसके प्रति है, ये पता लगाना बहुत मुश्किल है।

यह कहानी बार-बार अतीत और वर्तमान में झूलती रहती है। श्रॉफ (केके मेनन) और तेज शतरंज खेल रहे हैं और तेज उसे अपनी कहानी सुनाता रहता है। शतरंज के खेल और तेज की जिंदगी को आपस जोड़ने की कोशिश निर्देशक ने की है, लेकिन बात नहीं बन पाई।

थोड़ी-थोड़ी देर में श्रॉफ, तेज और शतरंज के दृश्य बीच-बीच में आते रहते हैं जो न केवल खीझ पैदा करते हैं बल्कि कहानी में भी रूकावट डालते हैं। तेज का प्रेम प्रसंग ठूँसा हुआ लगता है।

निर्देशक अंकुश भट्ट पर रामगोपाल वर्मा का बहुत ज्यादा प्रभाव है। उन्होंने रूटीन कहानी को अलग तरह से प्रस्तुत करने की कोशिश की, लेकिन काम में सफाई ना होने के कारण बात नहीं बन पाई।

संवादों में गालियों का उपयोग अखरता है क्योंकि वे घटनाक्रम से मेल नहीं खाती। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक शोरगुल से भरा है जो फिल्म देखते समय व्यवधान उत्पन्न करता है।

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अभिनय की बात की जाए तो पवन मल्होत्रा, प्रशांत नारायण, गौतम शर्मा, पियूष मिश्रा प्रभावित करते हैं। मामू की साली के रूप में वेदिता प्रताप सिंह असर छोड़ती हैं। दीप्ति नवल ने पता नहीं क्यों दोयम दर्जे की भूमिका स्वीकार की। छोटे-से रोल में जैकी श्रॉफ निराश करते हैं। केके मेनन के पास सिवाय शतरंज खेलने के कुछ करने को नहीं था। कैटेरीना लोपेज के आइटम नंबर का ठीक से उपयोग नहीं किया गया।

कुल मिलाकर ‘भिंडी बाजार’ में सब कुछ बासी-सा लगता है।

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