यदि ठीक से एडिट किया जाए और तीन-चार गाने बढ़ा दिए जाएँ तो फिल्म "स्ट्राइकर" में से तीन फिल्में बनाई जा सकती हैं। पहली फिल्म होगी कैरम और उससे होने वाले जुए पर। दूसरी होगी मुंबई में १९९२ में हुए दंगों और उसमें पुलिस की संदिग्ध भूमिका को लेकर और तीसरी मुंबई की गरीब बस्तियों पर...। यह फिल्म थ्री-इन वन है। इसमें हीरोइन भी दो-दो हैं।
इस फिल्म के डायरेक्टर हैं चंदन अरोरा, मगर बदकिस्मती से निर्माता भी वही हैं। अब खुद का शूट किया हुआ कोई दृश्य वे कैसे काटें? फिर तब तो काटना और मुश्किल हो जाता है जब पैसा भी अपना लगा हो। किसी भी सीन पर कैंची चलाते हुए लगता होगा कि हाय इतनी मुश्किल से इसे शूट किया गया था, इतने रुपए फुँक गए थे... तो क्या काटने के लिए? नहीं... इस सीन को भी फिल्म में रखेंगे, चाहे जो हो...। इस फिल्म के एडिटर के रूप में सुजीत उन्नीकृष्ण का नाम दिया गया है मगर साफ दिखता है कि उन्हें बिलकुल एडिटिंग नहीं करने दी गई है। बस किसी का नाम देना था सो दे दिया गया है।
चंदन अरोरा ने कैरम के अड्डों को खूब फिल्माया है। वहाँ पर लगने वाली बाजियाँ और उससे जुड़े माहौल को भी खूब उकेरा गया है। फिल्म में नायक की कमेंट्री बार-बार है। इतनी ज्यादा बार कि झुंझलाहट होती है। कई बार तो लगता है कि दृश्य क्यों दिखाए जा रहे हैं, एक बार में पूरी कहानी ही क्यों नहीं सुनाई जा रही। रामगोपाल वर्मा की अपराध फिल्मों में ऐसी कमेंट्री होती है, पर कहानी के जड़ पकड़ लेने के बाद कमेंट्री गायब हो जाती है। हो भी जाना चाहिए।
ये इस मायने में पीरियड फिल्म है कि 1992 का समय फिल्माती है, मगर बेहद कमजोरी के साथ। समझ ही नहीं पड़ता कि यह 2010 है या 1992। फिल्म में अनुपम खैर पुलिस अफसर बने हैं। मगर वे तीन स्टार वाले अफसर होकर ऐसे बात करते हैं जैसे कमिश्नर हों। "ए वेडनसडे" अनुपम खैर पर पूरी तरह हावी हैं। वे अभिनय का स्कूल चलाते हैं और इस रोल के मार्फत वे अभिनय स्कूल में यह सिखा सकते हैं कि एक फिल्म का असर दूसरी फिल्म के किरदार पर कैसे पड़ता है और उससे फिल्म का क्या हश्र होता है।
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फिल्म की पटकथा सबसे बड़ी भूल है। एक बार हीरो का चरित्र स्थापित हो जाने के बाद फिल्म में वही दिखाया जाना चाहिए जो जरूरी हो और जिसका रिश्ता क्लाइमेक्स से हो। यहाँ हीरो की दोनों लव स्टोरी फिजूल हैं। यह फिल्म आस जगाती है कि कुछ अच्छा देखने को मिलेगा पर मिलते हैं केवल अलग-अलग अच्छे शॉट। इनका एक-दूसरे से संबंध हो जाता तो एक अच्छी फिल्म बन सकती थी। सिद्धार्थ ने बढ़िया काम किया है। उनकी आवाज में मुंबइया भाषा में की गई कमेंट्री फिल्म की जान है।