विदेश में कई तरह के सुपरहीरो पर आधारित फिल्में बनाई जाती हैं जिन्हें हमारे देश में भी काफी पसंद किया जाता है। कुछ निर्माताओं ने देसी सुपरहीरो गढ़ने की कोशिश की, लेकिन ज्यादातर नाकाम रहे हैं। मि. एक्स, मि. इंडिया, कृष, जी.वन जैसे कुछ उदाहरण हमारे सामने हैं। इनमें से रितिक रोशन अभिनीत कृष ही सफलता हासिल कर पाया। सुपरस्टार शाहरुख खान नाकाम रहे।
रेमो डिसूजा ने 'ए फ्लाइंग जट्ट' के जरिये एक प्रयास किया है जिसमें टाइगर श्रॉफ लीड रोल में हैं। टाइगर के पिता जैकी श्रॉफ भी शिवा का इंसाफ में सुपरहीरो बन चुके हैं।
सुपरहीरो की कहानी लगभग एक जैसी होती है। सुपर पॉवर हासिल करने के बाद दुनिया को बुरी शक्ति से बचाना होता है और सभी जानते हैं कि सुपरहीरो इस काम में सफल साबित होगा। बात प्रस्तुतिकरण पर आ टिकती है। सुपरहीरो यह कैसे करता है इसमें सभी की दिलचस्पी रहती है।
रेमो डिसूजा को हम गरीबों का रोहित शेट्टी मान सकते हैं। वे रोहित शेट्टी जैसी मनोरंजक फिल्में गढ़ते हैं हालांकि रोहित जैसे स्टार्स और बजट उन्हें नहीं मिलते हैं। कम बजट और छोटे सितारों के साथ उन्होंने 'फालतू' और 'एबीसीडी' सीरिज की सफल फिल्में बनाई हैं। ये फिल्में खामियों से भरपूर थीं, लेकिन मनोरंजन का तत्व इन फिल्मों में ज्यादा था, लिहाजा दर्शकों ने इन फिल्मों को सफल बनाया। 'ए फ्लाइंग जट्ट' में रेमो अपनी दिशा भटक गए। बहुत कुछ एक ही फिल्म में समेटने के चक्कर में मनोरंजन पीछे छूट गया।
पंजाब में रहने वाला अमन (टाइगर श्रॉफ) डरपोक किस्म का इंसान है जो अपनी मां (अमृता सिंह) के साथ रहता है। इनकी जमीन पर एक पुराना पेड़ है जिसे लोग पूजते हैं। उद्योगपति मल्होत्रा (केके मेनन) को यह जमीन चाहिए क्योंकि इसमें उसका फायदा है। जब पैसे से बात नहीं बनती तो मल्होत्रा अपने गुंडे राका (नाथन जोंस) को पेड़ काटने के लिए भेजता है। अमन और राका की लड़ाई होती है। अमन पेड़ से टकराता है और उसे दिव्य शक्तियां हासिल हो जाती हैं। वह फ्लाइंग जट्ट बन असहाय लोगों की सहायता करता है। इधर राका भी सुपरविलेन बन जाता है। प्रदूषण के जरिये वह शक्ति हासिल करता है। इसके बाद क्या होता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
रेमो डिसूजा ने इस कहानी को लिखा है जो बहुत ही साधारण है। शुरुआती आधा घंटा किरदारों को जमाने में करने में खर्च किया गया है। इसके बाद जब अमन को जब शक्ति हासिल होती है तब फिल्म थोड़ी रोचक होती है। हालांकि यहां पर लेखक और निर्देशक की कल्पना का अभाव नजर आता है जबकि शक्ति हासिल होने के बाद कई मनोरंजक दृश्य सोच जा सकते थे।
इंटरवल तक फिल्म किसी तरह लड़खड़ाते हुए पहुंचती है, लेकिन इंटरवल के बाद वाला हिस्सा दर्शकों को थका देता है। यहां पर से मनोरंजन बैकफुट पर चला जाता है और पर्यावरण का मुद्दा फिल्म को कुछ ज्यादा ही गंभीर बना देता है। रेमो का मजबूत पक्ष मनोरंजक फिल्म बनाना है। संदेश देने वाली फिल्म बनाने की योग्यता उनमें नहीं है।
प्रदूषण से ताकत हासिल करने वाला राका और फ्लाइंग जट्ट की भिड़ंत मजा नहीं देती। सुपरहीरो जब ताकतवर लगता है जब विलेन भी ताकतवर हो। यहां पर विलेन के प्रति नफरत पैदा नहीं होती। वह एक मशीन जैसा लगता है इसलिए सुपरहीरो के कारनामे भी रोमांचित नहीं करते।
दूसरे हाफ में कई बातों का समावेश फिल्म में किया गया है। फ्लाइंग जट्ट के दोस्त की बेवजह मौत दिखा कर इमोशन पैदा करने की नाकाम कोशिश की गई है। फिल्म को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया गया है, लेकिन बिना सिचुएशन के ये प्रयास निरर्थक लगता है।
फिल्म की शुरुआत में मल्होत्रा को बहुत ताकतवर विलेन के रूप में पेश किया गया है, लेकिन बाद में उसे भूला ही दिया गया है। रोमांस केवल इसलिए डाला गया है कि फिल्म में रोमांस होना चाहिए। अमन और कीर्ति का रोमांस बहुत ही फीका है। सुपरहीरो की फिल्मों में क्लाइमैक्स जबरदस्त होना चाहिए, लेकिन इस मामले में 'ए फ्लाइंग जट्ट' कंगाल साबित होती है।
निर्देशक के रूप में रेमो डिसूजा तय नहीं कर पाए कि वे किस दर्शक वर्ग के लिए फिल्म बना रहे हैं। उनकी फिल्म न बच्चों को खुश करती है और न वयस्कों को। हास्य सीन पर उनकी पकड़ नजर आती है, लेकिन जब ड्रामा गंभीर होता है तो उनके हाथों से फिल्म फिसल जाती है। साधारण लड़के से सुपरहीरो बनने वाले हिस्से को तो उन्होंने अच्छे से दिखाया, लेकिन इसके बाद वे फिल्म को कैसे आगे बढ़ाएं समझ ही नहीं पाए। मां-बेटा, दोस्त, अमीर विलेन, गोरी चमड़ी वाला ताकतवर गुंडा जैसे चिर-परिचित फॉर्मूले यहां नहीं चल पाएं।
फिल्म के अन्य पक्ष भी कमजोर हैं। सचिन-जिगर एक भी ऐसी धुन नहीं दे सके जो याद रह सके। तकनीकी रूप से फिल्म औसत है। रेमो जैसे कोरियोग्राफर होने के बावजूद गानों की कोरियोग्राफी भी औसत दर्जे की रही है। सीजीआई इफेक्ट्स कहानी से मेल नहीं खाते।
टाइगर श्रॉफ पूरी फिल्म में बुझे-बुझे नजर आएं। वे खुल कर अभिनय नहीं कर पाएं। न तो वे ऐसे इंसान लगे जो ऊंचाई से घबराता है और न ही सुपरहीरो के रूप में ताकतवर लगे। जैकलीन फर्नांडीस की याद तो निर्देशक को इंटरवल के बाद आती है। जैकलीन तो इस फिल्म को भूल जाना ही पसंद करेगी। टाइगर के दोस्त के रूप में गौरव पांडे जरूर थोड़ी राहत देते हैं। अमृता सिंह ठीक रही हैं। विलेन के रूप में केके मेनन एक ही तरह का अभिनय कर अपनी प्रतिभा को बरबाद कर रहे हैं। नाथन जोंस हट्टे-कट्टे जरूर लगे, लेकिन दहशत पैदा नहीं कर पाए। उनके बोले गए संवाद अस्पष्ट हैं।