कन्नप्पा रिव्यू: क्यों उब गए दर्शक? अक्षय कुमार ने किया निराश, जानें क्या कमी है फिल्म में

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 27 जून 2025 (18:41 IST)
कन्नप्पा मूल रूप से तेलुगु में बनी फिल्म है जिसे हिंदी में डब कर रिलीज किया गया है। विष्णु मांचू ने इसमें लीड रोल निभाया है, लेकिन हिंदी भाषी दर्शकों के आकर्षण के लिए प्रभास और अक्षय कुमार जैसे सितारे भी इस फिल्म में हैं, हालांकि प्रभास का रोल आधी फिल्म में और अक्षय कुमार का रोल उससे भी छोटा है। 
 
फिल्ममेकर का दावा है ‍कि यह सत्य कहानी पर आधारित फिल्म है। तेलुगु दर्शकों के लिए इस फिल्म में पसंद आने योग्य बातें हो सकती हैं, ले‍किन हिंदी भाषी दर्शकों के लिए इसमें ज्यादा नहीं है। 
 
‘कन्नप्पा’ की कहानी थिन्नाडु (विष्णु मांचू) नामक शख्स के जीवन में आए बदलाव की है। वह जन्म से ही मूर्तिपूजा को सही नहीं मानता। इसके लिए उसके ‍पिता भी उससे नाराज हैं। नामली उससे शादी करने लिए अपने परिवार को छोड़ देती है। वे गांव छोड़ कर बाहर रहने लगते हैं। धीरे-धीरे थिन्नाडु में बदलाव आते हैं और वह शिव का परम भक्त बन जाता है। 
 
कहानी और स्क्रीनप्ले लिखने की ‍जिम्मेदारी भी विष्णु मांचू ने निभाई है। बतौर लेखक विष्णु ने अपनी बात कहने में बहुत ज्यादा समय लिया है। फिल्म शुरुआती घंटे में इतनी धीमी गति से चलती है कि बोरियत होने लगती है। पहला हाफ बहुत ही सुस्त है जिसमें न रोमांच है और न मनोरंजन। ऊपर से ढेर सारे किरदार और उनके कठिन नाम, याद रखने में मुश्किल होती है।  
 
प्रभास की जब फिल्म में एंट्री होती है तो थोड़ी चुस्ती फिल्म में भी आती है, लेकिन तब तक फिल्म आपको थका डालती है। क्लाइमैक्स चौंकाता है, लेकिन समग्र रूप से फिल्म दर्शकों पर असर नहीं छोड़ पाती।
 
फिल्म की लंबाई एक बड़ी समस्या है। तीन घंटे से ज्यादा लंबी फिल्म देखना आज के दर्शकों के लिए तभी संभव है जब चुंबक जैसा आकर्षण फिल्म में हो, जो कन्नप्पा में सिरे से मिसिंग है। एक और माइनस पॉइंट फिल्म के संवाद हैं, जो इस तरह से ‍लिखे गए हैं ‍कि अनुवाद सा लगता है, इससे किरदारों से दर्शक जुड़ नहीं पाते। 

 
जहां लेखक असफल रहें तो निर्देशक के रूप में मुकेश कुमार सिंह भी कोई कमाल नहीं कर पाए। ढेर सारे सितारे, बड़ा बजट होने के बावजूद उन्होंने ढीली-ढाली फिल्म बनाई है जो सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ती है और बिखरी सी लगती है। फिल्म में भव्यता भी ऐसी नहीं है कि दर्शक चकाचौंध में खो जाए। वीएफएक्स भी औसत से बेहतर हैं, लेकिन टॉप क्लास नहीं। अपने तकनीकी विभाग से भी वे बेहतर काम नहीं ले पाए। 

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बतौर अभिनेता विष्ण मांचू ने ईमानदारी से काम किया है और थिन्नाडु के परिवर्तन की मुश्किल यात्रा को विश्वसनीय तरीके से निभाया है। प्रीति मुकुंदन औसत रहीं। प्रभास के स्टारडम के कारण फिल्म के दूसरे हाफ में दर्शकों की रूचि थोड़ी जागती है, उनका काम अच्छा है। अक्षय कुमार इन दिनों हर फिल्म में जल्दबाजी में और अनिच्छुक से दिखाई देते हैं। भगवान शिव के रोल में भी उनका यही अंदाज देखने को ‍मिला और वे निराश करते हैं।
 
गीत-संगीत हिंदी दर्शकों के लिए कामचलाऊ है। बैकग्राउंड स्कोर कहीं-कहीं बेहद लाउड है। शेल्डन चौ की सिनेमैटोग्राफी ठीक है। 
 
कुल मिला कर ‘कन्नप्पा’ में वो इमोशन और भव्यता की बहुत कमी है जिसकी उम्मीद में दर्शक फिल्म का ‍टिकट खरीद कर अपना समय खर्च करते हैं। 
 

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