कांतारा: ए लीजेंड चैप्टर 1 रिव्यू: ऋषभ शेट्टी का प्रीक्वल इतिहास, पौराणिकता और रोमांस का संगम

समय ताम्रकर

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025 (14:22 IST)
कांतारा: ए लीजेंड चैप्टर 1 ऋषभ शेट्टी द्वारा निर्देशित और अभिनीत एक महाकाव्यात्मक पीरियड ड्रामा है, जो दर्शकों को समय की गलियों से होते हुए चौथी शताब्दी के प्राचीन कर्नाटक तक ले जाता है। यह मूवी कांतारा (2022) से पहले की कहानी को उजागर करती है और उसी रहस्यमय लोककथा की जड़ों तक पहुंचती है, जिसने पहले ही दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस बार कहानी और भी गहराई में जाकर लोकपरंपराओं, देवी-देवताओं की आस्था, जनजातीय जीवन और राजा के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की यात्रा को सामने लाती है।
 
फिल्म की पृष्ठभूमि कर्नाटक के तटवर्ती क्षेत्र की है, जहां ‘भूत कोला’ जैसी प्राचीन परंपराएं और पौराणिक वृतांत आज भी जीवित हैं। नायक बर्मा (ऋषभ शेट्टी) एक साधारण इंसान है, लेकिन परिस्थितियां उसे अपने समाज और देवताओं की रक्षा के लिए योद्धा बना देती हैं। दूसरी ओर है बंदरगा राज्य का राजा कुलशेखर (गुलशन देवैया), जो अपने साम्राज्य के विस्तार और लालच में कांतारा की धरती और उसके लोगों का शोषण करता है। संघर्ष तब और तीव्र हो जाता है जब कुलशेखर, कांतारा की दिव्य शक्ति का अपमान करता है और गांव वालों को कैद कर लेता है। ऐसे समय में बर्मा का उठ खड़ा होना केवल विद्रोह नहीं, बल्कि अपनी भूमि और देवता की आत्मा को बचाने की चुनौती है।
 
कहानी में रोमांस की भी एक परत मौजूद है। कुलशेखर की बहन कनकावती (रुक्मिणी वसंथ) बर्मा से प्रेम करती है, और यह रिश्ता विरोधी पक्षों के बीच कहानी को और भी दिलचस्प बनाता है। कनकावती सिर्फ प्रेमिका नहीं, बल्कि एक मजबूत स्त्री पात्र के रूप में सामने आती हैं, जो अपने भाई की गलत राह को पहचानती है और अपनी पहचान बनाए रखती हैं। यह पहलू फिल्म को भावनात्मक गहराई और सामाजिक संदर्भ देता है।

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कांतारा चैप्टर 1 की सबसे बड़ी ताकत है इसकी विज्युअल अपील। अरविंद एस. कश्यप की सिनेमैटोग्राफी हर फ्रेम को जीवंत बना देती है। जंगल, पहाड़, नदी और कांतारा की रहस्यमयी भूमि को देखकर लगता है जैसे दर्शक खुद उस लोककथा का हिस्सा बन गए हों। जब बाघ का प्रवेश होता है या बर्मा दिव्य शक्तियाँ प्राप्त करता है, तो सिनेमाहॉल में माहौल जीवंत हो उठता है। क्लाइमैक्स का एक्शन सीक्वेंस रोमांच और भावनाओं दोनों को चरम पर ले जाता है।
 
संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी का अभिन्न हिस्सा हैं। बी. अजनिश लोकनाथ का संगीत दिल को छूता है। विशेषकर जब भूत कोला या पौराणिक दृश्य सामने आते हैं, तब ढोल-नगाड़ों की गूंज दर्शकों की आत्मा तक पहुंचती है। गीत कम हैं, लेकिन जो हैं, वे प्रसंग के अनुरूप हैं और फिल्म की गति को बनाए रखते हैं।

 
अभिनय की बात करें तो ऋषभ शेट्टी ने बर्मा के रूप में पूरी ऊर्जा और समर्पण के साथ अभिनय किया है। उनके अभिनय का जोर भावनाओं और शारीरिकता दोनों पर है। प्रेमी के रूप में वे सहज हैं, और जब वे दैवीय शक्ति से परिपूर्ण योद्धा बनते हैं, तो उनका रूप देखने लायक होता है। रुक्मिणी वसंथ ने कनकावती के रूप में दमदार छाप छोड़ी है। उनका किरदार कहानी को संतुलन और भावनात्मक गहराई देता है। गुलशन देवैया ने नकारात्मक किरदार कुलशेखर को प्रभावशाली तरीके से निभाया है, हालांकि कभी-कभी उनकी एक्टिंग नाटकीय लगती है। 
 
फिल्म का स्केल बड़ा है और हर दृश्य में भव्यता झलकती है। कांतारा चैप्टर 1 के कुछ हिस्से लंबे और धीमे लग सकते हैं, लेकिन निर्देशक ने दर्शकों को बाँधे रखने में सफलता पाई है। कांतारा (2022) से तुलना करना स्वाभाविक है, और जबकि उस फ़िल्म का क्लाइमैक्स शानदार अनुभव था, इस प्रीक्वल का समापन उतना जोरदार नहीं है। फिर भी, इसमें मौजूद गहराई और सिनेमाई सुंदरता इसे देखने लायक बनाती है।
 
कांतारा: ए लीजेंड – चैप्टर 1 केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि इतिहास, पौराणिकता और मानवीय भावनाओं का संगम है। यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों की झलक भी प्रस्तुत करती है। अपने कुछ कमजोर हिस्सों के बावजूद, यह फिल्म दर्शकों को एक अनूठा अनुभव देती है। 

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