मैं और चार्ल्स : फिल्म समीक्षा

'वो सम्मोहित करने वाला, 14 भाषा का जानकार और बुद्धिमान है।' मीटिंग में एक पुलिस वाला चार्ल्स की तारीफ में कुछ शब्द कहता है। दरअसल पुलिस वाले भी उससे खौफ खाते थे क्योंकि स्टाइलिश चार्ल्स ने रहस्य का ऐसा आवरण ओढ़ रखा था कि उसकी ताकत का सही अंदाजा लगाना मुश्किल था। 
 
सूट-बूट पहने, कानून का जानकार, किताब पढ़ने वाला, अंग्रेजी फिल्मों का शौकीन और फ्रेंच लहजे में अंग्रेजी बोलने वाले चार्ल्स की 30 से ज्यादा गर्लफ्रेंड थीं और उसकी ये बातें उसे अन्य चोर-उचक्कों से जुदा करती थी। अपने लुक के प्रति इतना सतर्क‍ कि अखबारों में अपनी पुरानी फोटो देख उसे चिढ़ होती थी और वह अपनी नई फोटो प्रेस के पास पहुंचाने के लिए कहता था। 
 
पुलिस ऑफिसर अमोद कांत उसे एक सामान्य चोर ही मानते थे और उनका कहना था कि मीडिया ने ही उसे हीरो की तरह बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर दिया है जिसका वह लाभ उठाता है।
 
70 और 80 के दशक में चार्ल्स शोभराज एक शातिर अपराधी के रूप में उभरा और उसकी लाइफ से प्रेरित फिल्म 'मैं और चार्ल्स' निर्देशक प्रवाल रमण ने बनाई है। 
थाईलैंड में कई सुंदरियों की हत्या करने के बाद चार्ल्स को मौत की सजा होती है और वह भाग कर भारत आ पहुंचता है। विदेशी महिलाओं का वह शिकार करता है। अपने सम्मोहक व्यक्तित्व का उपयोग करते हुए वह पहले उनके साथ सोता है और फिर हत्या कर उनका पासपोर्ट अपने पास रख लेता है। पासपोर्ट के जरिये वह हर बार अपनी पहचान बदल लेता है। गोआ में उस समय हिप्पी कल्चर का बोलबाला था। ड्रग्स और सेक्स की धुंध में चार्ल्स को अपराध करने में आसानी होती थी। 
 
चार्ल्स के पीछे पुलिस ऑफिसर अमोद कांत लगा हुआ है। चूहे-बिल्ली का खेल उनके बीच चलता है, लेकिन पूरा खेल चार्ल्स की मर्जी से चलता है। 
 
सीरियल किलर, सेक्स, ड्रग्स, हत्याएं और चार्ल्स शोभराज का आकर्षक किरदार, एक थ्रिलर फिल्म बनाने के सारे सूत्र लेखक और निर्देशक प्रवाल रमण के हाथों में थे, लेकिन इसका पूरी तरह उपयोग वे नहीं कर पाए।
 
चार्ल्स के जीवन के बारे में जानने की ज्यादा से ज्यादा उत्सुकता रहती है, लेकिन फिल्म उतनी बातें दिखाती नहीं हैं। 1986 में चार्ल्स तिहाड़ जेल से भाग निकला था और इसी घटना पर फिल्म को फोकस किया गया है। जेल से निकलने की वह किस तरह योजना बनाता है, अपने इर्दगिर्द मौजूद लोगों का किस तरह यकीन जीतकर उनमें विश्वास जगाता है और किस तरह से वह घटना को अंजाम देता है यह फिल्म में दिखाया गया है, लेकिन चार्ल्स की लाइफ केवल इसी घटना के इर्दगिर्द ही नहीं घूमती थी। 
 
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निर्देशक प्रवाल रमन का प्रस्तुतिकरण उलझा हुआ है। उन्होंने पहले सारी घटनाओं को दिखाया है, जो क्यों हो रही है इस बात को उन्होंने छिपाए रखा है और अंत में सारी घटनाओं को जोड़ बताया गया है कि ऐसा क्यों हो रहा था। दिक्कत की बात यह है कि इस वजह से फिल्म में कन्फ्यूजन पैदा हो गया है और वो थ्रिल नदारद है जिसकी तलाश में दर्शक इस तरह की फिल्में देखते हैं। 
 
रणदीप हुडा फिल्म की जान हैं। उन्होंने चार्ल्स के करिश्माई व्यक्तित्व को इस तरीके से पेश किया है कि दर्शक भी सम्मोहित हो जाते हैं। हालांकि उनके द्वारा बोले गए कुछ संवाद लहजे के कारण अस्पष्ट हैं। आदिल हुसैन की एक्टिंग भी दमदार है, लेकिन  उनके और टिस्का चोपड़ा के बीच वाले दृश्य कमजोर हैं ‍जिसमें आदिल असहज भी नजर आते हैं। मुंबई पुलिस ऑफिसर सुधाकर के रूप में नंदू माधव अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। रिचा चड्ढा का रोल छोटा जरूर है, लेकिन उनकी अदाकारी देखने लायक है।
 
कमियों के बावजूद यदि फिल्म में रूचि बनी रहती है तो ये इसके स्टाइलिश लुक, चार्ल्स के किरदार और रणदीप के अभिनय के कारण। तकनीकी रूप से फिल्म बढ़िया है। प्रवाल रमन की शॉट टेकिंग बेहतरीन है। कैमरावर्क, लाइट एंड शैडो, कलर स्कीम, बैकग्राउंड म्य‍ुजिक और उम्दा माहौल के कारण 'मैं और चार्ल्स' अच्छी फिल्म होने का आभास कराती है। 
 
बैनर : वेव्ज़ सिनेमाज़, सिनेज़र नेटवर्क 
निर्माता: राजू चड्ढा, अमित कपूर, विक्रम खाखर 
निर्देशक : प्रवाल रमन 
संगीत : आदित्य त्रिवेदी, विपिन पटवा, सौगात उपाध्याय, शुभ्रदीप दास 
कलाकार : रणदीप हुडा, रिचा चड्ढा, टिस्का चोपड़ा, आदिल हुसैन, मंदाना करीमी
सेंसर सर्टिफिकेट : ए 
रेटिंग : 2.5/5 

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